वॉशिंगटन/नई दिल्ली,19 जुलाई। डोनाल्ड ट्रंप ने मिल्वौकी में हुए रिपब्लिकन नेशनल कन्वेंशन में राष्ट्रपति पद की नामांकन आधिकारिक रूप से स्वीकार किया। इस दौरान अपने संबोधन में ट्रंप ने अमेरिकी की सुरक्षा के लिए बड़े कदम उठाने का एलान किया। रिपब्लिकन पार्टी ने भी राष्ट्रपति चुनाव के लिए जो अपनी नीतियों का एलान किया है, उसमें से एक है कि अमेरिका भी इस्राइल की तरह मिसाइल डिफेंस सिस्टम आयरन डोम को विकसित करेगा और उसकी पूरे देश में तैनात की जाएगी। अब ट्रंप ने भी इसका एलान किया है।
अमेरिका के पास क्यों नहीं होना चाहिए आयरन डोम?
ट्रंप ने मिल्वौकी में रिपब्लिकन कन्वेंशन में अपने संबोधन के दौरान कहा कि ‘इस्राइल के पास एक आयरन डोम है। उनके पास मजबूत मिसाइल डिफेंस सिस्टम है। इस्राइल पर 300 से ज्यादा मिसाइलें दागी गईं थी, लेकिन इनमें से सिर्फ एक मिसाइल निशाने पर लगी थी। अन्य देशों के पास इस तरह का सिस्टम क्यों नहीं होना चाहिए और हमारे पास ऐसा क्यों नहीं है? हम हमारे देश के लिए ऐसा ही आयरन डोम बनाएंगे और ये सुनिश्चित करेंगे कि कोई भी हमारे देश की तरफ आंख उठाकर नहीं देख सके और हमारे लोगों को नुकसान न पहुंचा सके।’
ट्रंप ने जून में विंस्कोंसिन में एक रैली के दौरान कहा था कि ‘अपने अगले कार्यकाल में हम हमारे देश के लिए एक आधुनिक आयरन डोम बनाएंगे। एक ऐसा आयरन डोम, जिसे पहले कभी नहीं देखा गया होगा और यह सिस्टम पूरे देश के लिए बनाया जाएगा।’
क्या है आयरन डोम?
आयरन डोम को इस्राइल ने हवाई हमलों से बचने के लिए विकसित किया था। यह कम दूरी और मध्यम दूरी के मिसाइल हमलों के खिलाफ इस्राइल के लिए एक ढाल की काम करता है। अरबों डॉलर की इस हथियार प्रणाली ने बीते अप्रैल में ईरान की तरफ से किए गए हवाई हमलों में सफलतापूर्वक इस्राइल की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ईरान की तरफ से इस्राइल पर करीब 300 मिसाइल और ड्रोन्स दागे थे, लेकिन ईरान आयरन डोम की वजह से इस्राइल को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सका था।
कैसे काम करता है आयरन डोम?
जैसे ही दुश्मन इस्राइल पर रॉकेट दागता है तो आयरन डोम में लगा रडार सिस्टम उसे पहचान लेता है। पहचानने के साथ ही रडार सिस्टम रॉकेट को ट्रैक करता है और फिर कंट्रोल सिस्टम इंपैक्ट प्वाइंट का पता करता है। इसमें पता लगाया जाता है कि रॉकेट अगर अपने तय लक्ष्य पर गिरा तो कितना नुकसान होगा और अगर उसे हवा में मार गिराया जाए तो वह कितनी दूरी पर फटेगा ताकि कोई नुकसान न हो। इसके बाद कंट्रोल सिस्टम से मिले कमांड पर लॉन्चर से मिसाइलें दागी जाती हैं, जो रॉकेट को हवा में इंटरसेप्ट करके हवा में ही तबाह कर देती हैं।
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