देवू की अधिग्रहित जमीन किसानों से वापस लेने की कवायद शुरू

कोरबा 16 मई। प्रशासन ने 25 साल पहले देवू कंपनी द्वारा रिस्दी की अधिग्रहित जमीन को किसानों से वापस लेने की कवायद शुरू कर दी है। बस्तर के लोहंडीगुड़ा में उद्योग के लिए अधिग्रहित किसानों की भूमि लौटाने वाली कांग्रेस सरकार के राज में तालाबंदी के दौरान यह कार्रवाई शुरू की गई। इसका विरोध सामने आकर प्रभावित हितग्राहियों ने किया। पर पुलिस बल के सामने किसी की एक न चली।

साउथ कोरिया की कंपनी देवू ने रिस्दी में एक हजार मेगावाट क्षमता का बिजली संयंत्र लगाने की योजना तैयार की थी। वर्ष 1994-95 में करीब 525 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया। इसमें किसानों की 275 एकड़ निजी भूमि शामिल रही। इसकी वजह से 156 किसान प्रभावित हुए। विद्युत संयंत्र का कार्य शुरू होता, इससे पहले की कंपनी ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया और योजना खटाई में चली गई। कांग्रेस की सरकार ने सत्ता में आते ही अपने वादे के मुताबिक बस्तर में आदिवासियों की अधिग्रहित जमीन वापस लौटा दी। रिस्दी के ग्रामीणों ने भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को सामूहिक रूप से आनलाइन आवेदन कर जमीन वापसी की मांग रखी है। इस बीच अचानक शनिवार को कोरबा तहसीलदार सुरेश साहू भारी पुलिस बल के साथ रिस्दी पहुंचे और सीमांकन कार्रवाई करने लगे। प्रशासनिक अमले ने एक्सिवेटर से देवू की अधिग्रहित जमीन की सीमा पर गड्ढे करने का कार्य भी शुरू करा दिया है। ग्रामीणों ने मौके पर पहुंचकर तहसीलदार से जानकारी लेने का प्रयास किया तो उन्होंने केवल इतना कहा कि देवू कंपनी के वकील ने जमीन के सीमांकन का आवेदन किया है। इस आधार पर यह कार्रवाई की जा रही है। यह खबर लगते ही रिस्दी बस्ती में हड़कंप मच गया। काफी संख्या में बस्ती के लोग व कुछ भाजपा कार्यकर्ता भी मौके पर पहुंच गए और लाकडाउन के दौरान नियम विरूद्ध कार्रवाई किए जाने का आरोप लगाते हुए विरोध प्रदर्शन करने लगे। इस तरह के हालात निर्मित होने की आशंका प्रशासन को पहले से ही थी। लिहाजा काफी संख्या में पुलिस कर्मी तैनात किए गए थे। खासतौर पर महिला पुलिसकर्मियों की संख्या अधिक रही। मामला गर्म होने पर अतिरिक्त बल भी बुलवा लिया गया। ग्रामीण सीमांकन की कार्रवाई रुकवाने का प्रयास करते, उससे पहले ही उन्हें शांत कर दिया गया।

अखंड मध्यप्रदेश के दौर में अधिग्रहण

देवू के लिए रिस्दी की यह जमीन जब अधिग्रहित की गई, उस दौरान अखंड मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार थी। एक हजार मेगावाट विद्युत संयंत्र के लिए रिस्दी की 275 एकड़, रिस्दा का 12.89 एकड़, पंडरीपानी का 4.83 व कुरूडीह की 15.35 एकड़ किसानों की और 250 एकड़ शासकीय भूमि चिन्हांकित की गई थी। केवल रिस्दी के किसानों की जमीन का ही अधिग्रहण किया जा सका था।

100 करोड़ गारंटी राशि का विवाद हाई कोर्ट में

देवू पावर इंडिया लिमिटेड ने जमीन अधिग्रहण के दौरान मध्यप्रदेश सरकार के पास 100 करोड़ बतौर गारंटी राशि जमा किया था। योजना फ्लाप होने के बाद कंपनी ने पहले जबलपुर हाई कोर्ट में गारंटी राशि वापसी के लिए वाद दाखिल किया। पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद यह मामला हाई कोर्ट बिलासपुर में स्थानांतरित हो गया। वर्तमान में यह विचाराधीन है।

क्या कहते हैं प्रभावित

तीन लाख एकड़ की जमीन अब दो करोड़ की

रिस्दी के किसान श्रवण साहू ने बताया कि 25 साल पहले उसकी करीब ढाई एकड़ कृषि जमीन का अधिग्रहण किया गया। उसे करीब सवा तीन लाख रुपये एकड़ के हिसाब से मुआवजा मिला। आज इस जमीन की कीमत दो करोड़ प्रति एकड़ हो गई है। हमें या तो उसी आधार पर अभी मुआवजा राशि दी जाए, या फिर हमें हमारी जमीन वापस लौटाई जाए।

न मूलभूत सुविधा मिली न नौकरी

किसान नारायण सिंह कंवर ने कहा कि जमीन अधिग्रहण के कई साल बाद तक संयंत्र लगाने का कोई काम शुरू नहीं हुआ। इससे उन्हें व उनके परिवार को खामियाजा भुगतना पड़ा। अधिग्रहण के दौरान स्वास्थ्य, आवास सुविधा के अलावा नौकरी का आश्वासन दिया गया था। उनके पास जीविकोपार्जन का एक मात्र साधन यह कृषि भूमि है। जब कहीं कुछ नहीं सूझा तो वापस वह अपनी जमीन पर फसल लेने लगे। अब अचानक बेदखली की कार्रवाई की जाएगी, तो भला क्या करेंगे। सात सात तक यही अधिग्रहित जमीन पर उद्योग स्थापना का काम न शुरू किया जाए तो वह जमीन स्वतः किसानों का हो जाता है। इस नियम का भी उलंघन किया जा रहा है।

लोहंडीगुड़ा में 1760 किसानों को लौटाई सरकार ने जमीन

बस्तर के लोहंडीगुड़ा में टाटा स्टील ने जून 2005 में 5.5 मिलियन टन सालाना क्षमता का स्टील प्लांट लगाने का अनुबंध सरकार से किया था। दस गांव के 1760 किसानों की 1784 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित की गई थी। 2016 में टाटा ने प्लांट लगाने में असमर्थता जता दी। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के दौरान इस तरह की अधिग्रहित जमीनों को किसानों को वापस लौटाने अपने घोषणा पत्र में किया था। सत्ता संभालते ही सबसे पहले लोहंडीगुड़ा के किसानों को जमीन लौटाई गई। रिस्दी के किसान भी अपनी जमीन वापस मांग रहे हैं।

आखिर लाकडाउन में क्यों लगाई गई भीड़

इस पूरे मामले में ग्रामीणों का कहना था कि आखिर सीमांकन की इतनी क्या हड़बड़ी थी कि कोरोना संक्रमण के इस दौर में लाकडाउन के दौरान पूरे अमले के साथ पटवारी व आरआइ की टीम लेकर तहसीलदार को पहुंचना पड़ा। इसकी वजह से एक जगह ग्रामीण एकत्रित हुए और भीड़ की स्थिति निर्मित हुई। इस सवाल पर तहसीलदार का कहना था कि आवश्यक प्रशासनिक कार्य चल रहा है। कोविड-19 के नियमों का पालन करते हुए सीमांकन की कार्रवाई की जा रही।

वर्जन

देवू कार्पोरेशन के वकील ने अपने अधिपत्य क्षेत्र की जमीन का सीमांकन कर वस्तुस्थिति की रिपोर्ट मांगी है। इस आधार पर केवल सीमांकन की कार्रवाई की जा रही। अभी तक जमीन खाली थी, इसलिए किसान अपनी फसल ले रहे हैं।

  • सुरेश साहू, तहसीलदार कोरबा

वर्जन

100 करोड़ की गारंटी राशि का मामला हाई कोर्ट बिलासपुर में विचाराधीन है। कोर्ट ने अधिग्रहित किए गए रिस्दी के जमीन का वर्तमान स्टेटस मांगा है। इसके लिए उन्होंने तहसीलदार को सीमांकन का आवेदन दिया है। फिलहाल किसी को बेदखल करने की कार्रवाई नहीं की जा रही।

  • बीबी दासगुप्ता, अधिवक्ता, देवू कार्पोरेशन