छत्तीसगढ़ में हसदेव जंगल के बचाव और विरोध के नाम पर लगातार राजनीति और षड्यंत्र सामने आते रहे हैं। इस बीच एक विदेशी निजी संस्था द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य में एक एनजीओ छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संचालक आलोक शुक्ला को हजारों डालर का विदेशी धन, पुरस्कार के रूप में मिला है। इससे छत्तीसगढ़ राज्य में आदिवासियों के विकास का विरोध करने वाली संस्था के संचालक के विदेशी आकाओं से रिश्ता अब खुलकर सामने आ गया है।
छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य के पास संचालित कोयला खदान को बंद करवाने के लिए चलाये जा रहे हसदेव बचाव आंदोलन में एक बड़ी खबर का खुलासा हुआ है जहाँ हसदेव बचाव आंदोलन को चलाने वाले आलोक शुक्ला को वाशिंगटन में गोल्डमैन पुरूस्कार मिला और साथ ही 2 लाख डॉलर की राशि जिसका मूल्य भारतीय मुद्रा में लगभग 1 करोड़ 70 लाख रूपए है। इससे पता चलता है की लम्बे समय से आलोक शुक्ल पर विदेशी फंडिंग लेकर इस आंदोलन को चलाये जा रहे आरोप सहीं साबित हुए हैं। इसी वर्ष जनवरी में इसके एनजीओ का रजिस्ट्रेशन रद्द होने के बाद से सीधे विदेशी धन प्राप्त करना मुश्किल होने के बाद, ये एक नया रास्ता तैयार किया गया है, जिससे देश विरोधी ताकतें अपने देश को आगे बढने से रोकने की मुहीम चालू रख सके। साथ ही भारत को 2047 तक विकसित देश बनने से रोकने और महत्वपूर्ण ऊर्जा नीति के विरोध में आंदोलन जारी रख सके।
उल्लेखनीय है कि लम्बे समय से आलोक शुक्ला छत्तीसगढ़ की केवल एक ही खदान को निशाना बना रहे थे जिससे इन पर एक एजंडा के तहत यह आंदोलन करने का आरोप लगते आये हैं जो की इस पुरस्कार के बाद सही साबित होते नज़र आ रहे हैं। आलोक शुक्ला ने कोयला खदान को बंद करवाने का असफल प्रयास कर ना केवल छत्तीसगढ़ राज्य के राजस्व का नुक्सान किया बल्कि उस खदान प्रभावित क्षेत्र में 5000 लोगों के रोज़गार को भी अपने इस आंदोलन के तले कुचलने की कोशिश की, आलोक शुक्ला को कुछ समय पहले हसदेव में अराजकता फैलाने एवं आदिवासियों को भ्रमित कर आंदोलन करवाने के लिए छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा एक शराबखाने (BAR) से गिरफ्तार भी किया गया था। जो गोल्डमैन पुरूस्कार आलोक शुक्ला को मिला है वह पुरस्कार मेधा पाटकर को भी मिल चूका है और हसदेव बचाव आंदोलन के लिए मेधा पाटकर भी एक बार रायपुर दौरा कर चुकी हैं। आलोक शुक्ला और उनके जैसे तथाकथित एक्टिविस्टों को 10 दिन दस शहरों में घुमाकर अमेरिका में कई प्रेस कांफ्रेंस करवाई जायेगी जहाँ भारत सरकार की खदानो को लेकर विकासशील नीतियों के खिलाफ आलोक शुक्ला भारत की छवि खराब करेंगे जबकि एक तरफ तो सरकार द्वारा यह सुनिश्चित किया गया है की हसदेव क्षेत्र में हर तरफ अच्छा काम किया जाए, चाहे वह पर्यावरणीय चिंताएं हो या आदिवासियों के संरक्षण में किए जाने वाले उपाय हो। पर्यावरण को बचाने के लिए सरकार द्वारा कई अच्छे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जैसा की 11.50 लाख पेड़ तो कोयला निकले जा चुकी भूमि पर लगाए गए हैं। इसके अतिरिक्त 40 लाख पेड़ और लगाए गए। सूत्रों की माने तो इस आंदोलन जीवी की संस्था द्वारा लाखों रुपए का सोशल मीडिया पर झूठे तथ्यों के प्रचार में खर्चा किया जाता रहा है। यहां तक कि महंगे सिनेमा सितारे, बॉलीवुड एक्टर एक्ट्रेस भी इस प्रोपोगेंडा में हायर किए जा चुके है।
पर्यावरण बचाने आज तक एक भी पेड़ नहीं लगाया और न ही आदिवासियों के विकास के लिए कोई प्रयास किया हो, लेकिन इनका शोषण करके विदेशी धन जरूर प्राप्त करते रहे।
अब देखना यह है की क्या इसके विदेशी ताकतों से मिले होने के इस सबूत के बाद भी आदिवासी अपनी भलाई और बुराई में भेद जान पाते हैं या अभी भी इनका शोषण एनजीओ द्वारा किया जाता रहेगा।
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