कोरबा,26 मार्च । सुगंधा सिटी, रामपुर को आखिरकार न्यायालय ने भी अवैध करार दे दिया है। इस मामले में 13 फरवरी 2024 को जिला एवं सत्र न्यायालय कोरबा ने अपने निर्णय में विजय बुधिया समेत अन्य द्वारा कलेक्टर के डायवर्सन की अर्जी रद्द कर देने के विरुद्ध दायर याचिका को खारिज कर दिया है। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि विजय बुधिया व अन्य, वादी के रुप में सुगंधा सिटी के 50 एकड़ भूमि पर विधिवत स्वत्व प्राप्त होना एवं उसके आधार पर वर्तमान कब्जा को विधिवत स्वत्व प्राप्त करने की बात को प्रमाणित करने में असफल रहे। प्रकरण में यह बात सामने आईं कि कोरबा तहसील कार्यालय के पीछे निर्मित सुगंधा विहार कॉलोनी का निर्माण व्यवसायी/बिल्डर विजय बुधिया ने शासकीय मद की भूमि पर अवैध तरीके से कराया था। जिला एवं सत्र न्यायालय कोरबा में दायर की गई इस याचिका पर सुगंधा सिटी नामक 50 एकड़ की इस वादभूमि के मामले में कलेक्टर एवं जिला दंडाधिकारी की पूर्व कार्यवाही को उचित करार देते हुए रद्द कर दिया।
न्यायालय द्वितीय अपर जिला न्यायाधीश, कोरबा जिला कोरबा में पीठासीन अधिकारी कृष्ण कुमार सूर्यवंशी के न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया गया था। वादभूमि के वादियों में ट्रांसपोर्ट नगर कोरबा निवासी विजय बुधिया, पति-श्यामसुंदर बुधिया, देशीराम, पिता-फागुराम, पुनीराम, पिता-फागुराम, चौतराम पिता-रामदयाल यादव, तिजराम, पिता-जैतराम यादव, नान्हीरामं, पिता-डोकरी यादव, जरहाराम, पिता भोजराम यादव, समारिन यादव, पति-भोजराम यादव, राधे, पिता- बुडवा यादव, छोटू यादव, पिता-बुडवा यादव, गौरीबाई यादव, पति-बुडवा यादव, मोटू यादव, पिता- कोन्दी यादव, मंगल यादव, पिता अनंदराम यादव, जयमंगल यादव, पिता-अनंदराम यादव सभी की ओर से मुख्तयारआम देशीराम और सुगंधा सिटी में रहने वाले अनिता जैन, पति-आरके आजाद, प्रमोद कुमार वर्मा, पिता-दुर्गा प्रसाद वर्मा, जगजीत सिंह, पिता-गुरदीप सिंह, समीना खातून, पति-रज्जाक अली, विधि नाग, पिता नंदकिशोर नाग, प्रभु दयाल मिश्रा, पिता-स्व केदारनाथ, अशोक केशरवानी, पिता नारायण प्रसाद व रामसारिक सिंह, पिता-स्व. भूषण सिंह समेत कुल 28 लोगों की ओर से वाद प्रस्तुत किया गया था। वादियों की ओर से अधिवक्ता किशोर तिवारी और प्रतिवादी रहे छत्तीसगढ़ शासन कार्यालय कलेक्टर कोरबा की ओर से लोक अभियोजक रोहित राजवाड़े ने पक्ष रखा।
वादीगण द्वारा ग्राम-रामपुर तहसील एवं जिला कोरबा स्थित क्रमशः खसरा नंबर-92, 93, 98, 142, 143, 162/2, 181, 201, कुल खसरा- 8 रकबा क्रमशः 0.63, 0.42, 1.20, 0.30, 0.14, 0.20, 0.24, 0.91 कुल रकबा-4.04 एकड़ के स्वत्व की घोषणा एवं स्थायी निषेधाज्ञा के लिए कलेक्टर के विरुद्ध पेश किया था। विजय बुधिया व अन्य ने अपने वाद में कहा कि कोरबा कलेक्टर द्वारा बिना कोई नोटिस या सुनवाई का अवसर दिए वादभूमि के डायवर्सन को निरस्त कर दिया। इसके साथ ही वादभूमि यानि सुगंधा सिटी की जमीन को राजस्व अभिलेख में शासकीय मद में दर्ज कर दिया गया। वादीगणों ने वादभूमि को स्वत्व और आधिपत्य की भूमि होने तथा प्रतिवादी के द्वारा वादभूमि को नजूल मद में दर्ज करने की कार्यवाही अवैध व शून्य होने की घोषणा करने और प्रतिवादी के द्वारा वादभूमि के राजस्व अभिलेख में विधि की प्रक्रिया के बिना कोई फेरबदल करने व बेदखल न करने हेतु स्थायी निषेधाज्ञा प्रदान किये जाने का निवेदन कोर्ट से किया था।
0 कुछ साबित नहीं कर सके सुगंधा सिटी वाले
दोनों पक्ष को सुनने के उपरांत न्यायालय ने निष्कर्ष दिया है कि विजय बुधिया व अन्य वादीगण खसरा नंबर 92, 93, 98, 142, 143, 162/2, 181 एवं 201 के लोग शासकीय भूमि खसरा नंबर 203/2 पर अवैध कब्जा न करते हुए अपनी भूमि पर काबिज हैं, यह प्रमाणित नहीं कर सके। यह भी प्रमाणित नहीं किया जा सका कि वादीगण को बिना सुनवाई का अवसर दिए बनावटी आधारों पर कलेक्टर कोरबा ने 09 सितंबर 2013 को आदेश पारित कर वादभूमि का डायवर्सन निरस्त किया गया है, जो कि अवैध एवं शून्य है। इसी तरह प्रतिवादी, वादीगण के स्वत्व की भूमि में अवैध रूप से हस्तक्षेप कर रहे हैं, यह भी प्रमाणित नहीं हो सका। न्यायालय ने निर्णय उपरांत आदेश जारी किया है कि वादीगण वादभूमि का विधिवत स्वत्व प्राप्त होना एवं उसके आधार पर वर्तमान कब्जा को विधिवत स्वत्व प्राप्त करना प्रमाणित करने में असफल रहा है, जिस कारण से वादीगण को किसी प्रकार की स्थाई निषेधाज्ञा प्रदान नहीं की जा सकती। अतः वादीगण का वाद निरस्त करते हुए निम्नलिखित डिक्री प्रदान की जाती है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे। अधिवक्ता शुल्क प्रमाणित होने पर या सूची अनुसार जो न्यून हो देय होगा।
0 क्या दर्ज कराई जाएगी एफआईआर..?
इस मामले में न्यायालय सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि जिस 50 एकड़ जमीन पर सुगंधा सिटी का निर्माण कराया गया है, वह जमीन उक्त स्थल से पीछे दूसरी जगह पर है और राजस्व अमले से सांठगांठ कर कूटरचना कराते हुए पीछे की जमीन को आगे लाकर दूसरे खसरा नंबर में सेट किया गया और कालोनी विकसित की गई है। इस मामले में कलेक्टर को आवेदन पूर्व में ही दिया जा चुका है लेकिन इस आवेदन पर अग्रिम कार्रवाई लंबित है। सवाल यह है कि क्या कूटरचना कर जमीन फेरबदल के इस मामले में जिला प्रशासन अग्रिम वैधानिक कार्रवाई के लिए प्रकरण पुलिस के सुपुर्द करेगा या मामला रफा-दफा हो जाएगा?
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