कैसे कहेंगे? चीं…ची…करती आई चिड़िया!…

हमारे भारतवर्ष में त्योहार- पर्वों की तरह विशेष दिनों की भी कोई कमी नहीं है । पूरी दुनिया वर्ष भर किसी न किसी विशेष दिन के आयोजन में व्यस्त रहती है । इन्हीं खास दिनों में एक खास दिन 20 मार्च को “गौरैया दिवस” के रूप में मनाया जाता है । वास्तव में यह दिवस गौरैया के संरक्षण से जुड़ा है। हमे गर्व के साथ कहना चाहिए कि विश्व भर में अपनी संस्कृति और सभ्यता के लिए विशेष सम्मान पाने वाले हमारे भारत वर्ष के महाराष्ट्र प्रदेश से गौरैया संरक्षण की पहल सबसे पहले की गई। यह जानकर पाठकों को आश्चर्य हो सकता है कि घर-घर फुदकने और चहकने वाली नन्हीं-प्यारी गौरैया चिड़िया पूरी दुनिया में गिद्ध के बाद संकट ग्रस्त पक्षी की श्रेणी में देखी जा रही है ! संभवतः 2008 से गौरैया संरक्षण मुहिम की शुरुआत के बाद आज पर्यंत सरकारों की तरफ से गौरैया को बचाने कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई गई है। गौरैया के विलुप्तीकरण के लिए प्रमुख रूप से बदल रही आबो-हवा और खेतों में केमिकल का बढ़ता उपयोग ही है। गौरैया के जीवन को लेकर सबसे बड़ी अनदेखी इस रूप में सामने आ रही है कि राष्ट्रीय पक्षी मोर की मौत की खबर मीडिया के लिए सुर्खियां बनकर सामने आती है, किंतु सैकड़ों की संख्या में जान गंवाने वाली गौरैया के लिए कोई दर्द किसी रूप में सामने नहीं आता।

पक्षियों के संबंध में अमेरिका सहित अनेक विकसित देश में शासकीय स्तर पर ब्योरा रखा जाता है । हमारे भारत वर्ष में अभी ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है ! पक्षियों के संरक्षण के लिए “कॉमन बर्ड मॉनिटरिंग ऑफ इंडिया” के नाम से एक साइट जरूर बनाई गई है , जिस पर कोई भी पक्षी प्रेमी पक्षियों से संबंधित जानकारी और आंकड़ा डाल सकता है, किंतु इसका व्यापक प्रचार-प्रसार न होने से शून्यता है! हमारे देश में कुछ संस्थाएं काम कर रही हैं जो गौरैया को माकूल वातावरण के साथ संरक्षित करने वालों को अवार्ड्स देती हैं, किंतु यहां भी जागरूकता की कमी ही दिखाई पड़ रही है! वास्तव में हम वर्ष में एक दिन गौरैया के लिए चिंता करते दिखाई पड़ते हैं। 20 मार्च गुजरने के साथ ही गौरैया भी हमारे मन-मस्तिष्क से गायब हो जाती है। हम यदि अपने परिवारों तथा समाज में गौरैया को बनाए रखना चाहते हैं तो शहरों सहित ग्रामीण क्षेत्रों में इनके घोसलों के लिए सुरक्षित स्थान बनाना होगा। उन्हें जीवित रखने के लिए प्राकृतिक वातावरण देना होगा। हम घरों के आस-पास अथवा अपने घरों के बगीचों में स्थान सुरक्षित कर गौरैया को घोसला बनाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं। बगीचों में चिड़ियों के चुनने के लिए पर्याप्त अनाज के दानों की उपलब्धता हमें अपने कर्तव्य में शामिल करना होगा। घर-आंगन में गौरैया को खुला वातावरण देकर हम गौरैया के अंडों और चूजों को हिंसक पक्षी एवं जानवरों से बचा सकेंगे।

पक्षियों , विशेष कर गौरैया के प्रति दोस्ताना रवैया अपनाकर हम उनका भरोसा जीत सकते हैं । उन्हें चुगने के लिए चावल , बाजरा तथा अन्य मोटे अनाज उपलब्ध कराते हुए अपने करीब रख सकते हैं । हमने यदि अभी से गौरैया को बचाने संकल्प नहीं लिया तो वह दिन दूर नहीं जब गिद्ध की भांति हम इन्हें भी खो देंगे ! हमारी आने वाली पीढ़ी :-

-डॉ सूर्यकांत मिश्रा (राजनांदगांव)

” नन्हीं चिड़िया नीचे आ , नीचे आकर गीत सुना । बड़ी धूप है आसमान में , थोड़ा सा तो ले सुस्ता । पेड़ तले ठंडी छाया है , छाया में आ दाना खा ।।” को न गुनगुनाते हुए उन्हें केवल गूगल में ही सर्च कर देख पाएगी ! एक बात हमें अपने मस्तिष्क में बैठा लेनी चाहिए कि सिर्फ सरकार के भरोसे हम इंसानी मित्र गौरैया को नहीं बचा पाएंगे ! इसके लिए जरूरी है कि हम अपनी वर्तमान पीढ़ी को यह बताएं कि गौरैया अथवा अन्य विलुप्त होते पक्षी हमारे जीवन तथा पर्यावरण में क्या अहमियत रखते हैं ? हमें प्रकृति प्रेमी बनकर ऐसा अभियान चलाना होगा जो मानव जीवन में पशु – पक्षियों के योगदान को सार्थक बताते हुए संगठनों को अंजाम दे सके । जहां तक मैं समझता हूं प्रारंभिक शिक्षा के दौर में पूर्व की भांति गौरैया को पाठ्यक्रम में स्थान देना अच्छी पहल हो सकती है । अंग्रेजी शिक्षा के दौर में गौरैया पाठ्यक्रम से बाहर कर दी गई है , जो उचित नहीं है !

मैं अपने पाठकों को गौरैया संरक्षण के प्रति संकल्पित करने हेतु ज्योतिषीय और वास्तुशास्त्र की ओर ले जाना चाहता हूं । जहां तक मुझे थोड़ी – बहुत जानकारी है – वास्तुशास्त्र में गौरैया का मनुष्य जीवन पर गहरा प्रभाव वर्णित है । गौरैया जिस घर में घोंसला बनाती है , वहां से सभी तरह के वास्तु दोष दूर हो जाते हैं । घर की उत्तर दिशा और ईशान कोण में यदि गौरैया अपना घोंसला बनाती है तो यह अत्यंत शुभ होता है । इसे किसी प्रकार से नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए । हिंदू धर्म – ग्रंथों में गौरैया पक्षी साहस और सावधानी का प्रतीक मानी जाती है । गौरैया हमें सिखाती है कि कैसे सुबह जल्दी उठकर अपनी जरूरतों के लिए संघर्ष किया जा सकता है । गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित मानस मेंं भी राजा दशरथ के घर गौरैया के घोसले का वर्णन मिलता है । इतना ही नहीं पक्षी विज्ञान के जनक गौतम ऋषि के अनुसार महाभारत काल में कुंती के महल में गौरैया के घोंसले का इतिहास है । गौतम ऋषि ने यह भी संदेश दिया है कि गौरैया का घोंसला दस प्रकार के वास्तुदोषों को दूर करता है । घर की खिड़की में प्रतिदिन आकर बैठने वाली गौरैया हमारे जीवन में आने वाले परिवर्तन का संदेश देती है । घोंसले बनाकर अंडों को सेने के उपरांत बच्चों का जन्म इस बात का प्रमाण है कि घर – परिवार बाल – बच्चों की खिलखिलाहट से परिपूर्ण होगा ।

वर्तमान में गौरैया का संरक्षण हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है । मनुष्य की भोगवादी संस्कृति ने हमें प्रकृति और उसके साहश्चर्य से दूर कर दिया है ! दुनिया भर में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गौरैया की आबादी घटी है ! गौरैया की घटती आबादी के पीछे मानव विकास सबसे अधिक जिम्मेदार है ! इतिहास बताता है कि मनुष्य जहां – जहां गया गौरैया उसकी हमसफर बनकर उसके साथ गई । गौरैया की प्राकृतिक खूबी यह है कि वह खुद को इंसान की सबसे करीबी दोस्त मानती है । बढ़ती आबादी के कारण जंगलों का सफाया हो रहा है ! ग्रामीण क्षेत्रों में पेड़ काटे जा रहे हैं ! बाग – बगीचों की कमी किसी से छिपी नहीं हैं ।यही कुछ कारण हैं जिससे गौरैया का जीवन संकट में पड़ रहा है।