छ.ग हाई कोर्ट के इतिहास में पहली बार याचिकाकर्ता के नाम को रखा गोपनीय

बिलासपुर,26 फरवरी । छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब दुष्कर्म पीड़िता दो बच्चों की मां जिसने एक बेटी के पिता का डीएनए टेस्ट कराने की गुहार लगाई है। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता के नाम को पूरी तरह गोपनीय रखा है। आर्डरशीट में याचिकाकर्ता के नाम की जगह अंग्रेजी के अक्षर एक्स वाई जेड का प्रयोग किया गया है। पीड़िता ने डाक्टर पर आरोप लगाया है कि जब वह 12-13 वर्ष की थी, तब पहली बार डाक्टर ने दुष्कर्म किया। वर्ष 2005 से जनवरी 2019 तक उसके साथ दुष्कर्म करते रहा। इससे उसका गर्भ ठहर गया और बेटी को जन्म दिया।

पीड़िता की गुहार को हाई कोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए आरोपित डाक्टर, याचिकाकर्ता और उसकी 12 साल की बेटी का डीएनए टेस्ट कराने के निर्देश पुलिस को दिए हैं। फैसले की खास बात यह है कि हाई कोर्ट ने इस पूरे मामले में गंभीरता और संवेदनशीलता बरती है। याचिकाकर्ता दुष्कर्म पीड़िता की निजता का पूरा ध्यान भी रखा है। यह पहली बार हुआ है जब कोर्ट ने याचिकाकर्ता के नाम को सार्वजनिक नहीं किया है। याचिकाकर्ता ने पुलिस स्टेशन सुकमा में शिकायत दर्ज कराई है कि वह सुकमा की निवासी है और अपनी शादी से पहले वह अपनी मां के साथ सुकमा में रहती थी।

उसकी शादी 18 साल की उम्र में 18 नवंबर 2010 को हुई। शादी के बाद वह अपने पति के पास मध्य प्रदेश चली गई। जब वह अपनी मां से मिलने सुकमा जाती थी तब डा उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाता था, जिसके कारण उसकी बड़ी बेटी का जन्म चार दिसंबर 2011 को हुआ था। याचिकाकर्ता द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के आधार पर आरोपित डाक्टर के खिलाफ एफआइआर दर्ज की गई है। 11 मई 2022 को गिरफ्तार किया गया है। चिकित्सा परीक्षण के बाद अंतिम रिपोर्ट सात जुलाई 2022 को मजिस्ट्रेट के समक्ष पुलिस द्वारा प्रस्तुत की गई है और सात सितंबर 2022 को आरोप तय किए गए।

सीजेएम ने खारिज कर दिया था डीएनए टेस्ट का आवेदन

आरोपित डाक्टर ने अन्य मेडिकल जांच के साथ-साथ डीएनए प्रोफाइलिंग टेस्ट कराने के लिए अपनी सहमति दी थी। पुलिस ने 11 मई 2022 को याचिकाकर्ता, उसकी बेटी और डाक्टर के डीएनए नमूने एकत्र करने के लिए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सुकमा के समक्ष आवेदन दायर किया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 12 मई 2022 के आदेश के तहत खारिज कर दिया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश को राज्य शासन द्वारा सत्र न्यायाधीश, दंतेवाड़ा के समक्ष पुनरीक्षण याचिका दायर करके चुनौती दी गई थी, जिसमें सत्र न्यायाधीश ने 15 जून 2022 को मुख्य न्यायिक द्वारा पारित आदेश को रद कर दिया था। कोर्ट ने यह भी कहा कि डीएनए टेस्ट के लिए सहमति देना या देना डाक्टर पर निर्भर करेगा। इस बीच आरोपित डाक्टर ने अपना रक्त का नमूना देने से इन्कार कर दिया है। याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा कि डाक्टर द्वारा किए गए अपराध को देखते हुए डीएनए परीक्षण कराना आवश्यक है जो अभियोजन पक्ष के मामले को साबित करने के लिए बुनियादी और आवश्यक साक्ष्य बनेगा।

आरोपित डाक्टर ने दी दलील

डीएनए परीक्षण कराने से उसके व्यवसाय के अलावा सामाजिक स्वीकार्यता पर असर पड़ेगा और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदान की गई व्यक्तिगत स्वतंत्रता के भी खिलाफ है। पीड़िता की शादी 18 नवंबर 2010 को हुई थी और चार नवंबर 2011 को पीड़िता ने पहले बच्चे को जन्म दिया है। डीएनए परीक्षण के निर्देश न केवल उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रभावित करेगा, बल्कि एक नाबालिग लड़की की वैधता और पितृत्व को भी प्रभावित करेगा, जिसकी उम्र तकरीबन 12 वर्ष है।

हाई कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी

मामले की सुनवाई जस्टिस एनके व्यास की सिंगल बेंच में हुई है। जस्टिस व्यास ने अपने फैसले में कहा है कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के वैज्ञानिक विश्लेषण की आवश्यकता है जो डीएनए परीक्षण के निर्देश के माध्यम से किया जा सकता है। परिस्थितियां इतनी प्रबल हैं कि डीएनए परीक्षण कराने के निर्देश जारी करने के अलावा सच्चाई का पता लगाने का कोई अन्य तरीका उपलब्ध नहीं है। मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह निर्देशित किया जाता है कि अभियोजन पक्ष याचिकाकर्ता, उसकी बेटी और आरोपित डाक्टर का डीएनए परीक्षण कराने के लिए आवश्यक कदम उठाएगा।