रेप के जवाब में गैंगरेप, औरत महज सामान है?

मध्यप्रदेश के मुरैना की खबर है कि एक गर्भवती महिला से तीन लोगों ने बलात्कार किया, और फिर उसे आग लगा दी। यह महिला एक ऐसी महिला से समझौते की बात करने उसके गांव गई थी जिसने इस गर्भवती महिला के पति पर बलात्कार का आरोप लगाया था। अब पुलिस का कहना है कि 80 फीसदी झुलसी इस महिला को अस्पताल में भर्ती किया गया है। बलात्कार की पहली शिकायत पर गिरफ्तार आदमी अभी जेल से जमानत पर छूटकर आया था, और उसे बचाने के लिए समझौता करने वाली उसकी पत्नी के साथ ऐसे सामूहिक बलात्कार की खबर है, और उस पहली महिला के परिवार के तीन मर्दों ने इस महिला के साथ मिलकर समझौता कराने आई महिला को जला भी डाला।

अब इस मामले को देखें तो लगता है कि पहले किसी ने एक महिला से बलात्कार किया, और फिर मानो उसका बदला चुकाने के लिए उसके परिवार के तीन मर्दों ने बलात्कार के आरोपी की पत्नी से बलात्कार किया। मामला घूम-फिरकर औरतों को बदले के सामान की तरह इस्तेमाल करने का है। चाहे कोई पत्नी को जुए के दांव पर लगा दे, या फिर उसे अपने साथियों को परोस दे, बेच दे, या अपने परिवार के दूसरे मर्दों के उपभोग के लिए मजबूर कर दे। यह सब तो निजी फैसले हैं, लेकिन दूसरी तरफ जंग के मैदान को देखें तो दुनिया भर में यह सैकड़ों-हजारों बरस से चलने में है कि जीतने वाली सेना हारने वाली सेना की औरतों और लड़कियों को उठाकर ले जाती हैं, या उनसे बलात्कार करके छोड़ देती हैं। अभी रूस और यूक्रेन के बीच जो जंग चल रही है उसमें संयुक्त राष्ट्र संघ की एक महिला अधिकारी ने यह बात सामने रखी थी कि रूसी सैनिकों की बीवीयों ने उन्हें यह छूट देकर भेजा है कि वे चाहें तो यूक्रेनी लड़कियों या महिलाओं से बलात्कार कर सकते हैं, वे बस सावधानी के लिए कंडोम का इस्तेमाल करें। ऐसा दुनिया के कई और जंग के दौरान भी सामने आया है जब दुश्मन देश को सबक सिखाने के लिए वहां बलात्कार करने की छूट महिलाएं अपने सैनिक पतियों को देती हैं।

लोगों को याद होगा कि करीब दो दशक तक चली अमरीका-वियतनाम जंग के दौरान भी ऐसे अनगिनत आरोप लगे थे, और खबरें थीं कि अमरीकी सैनिकों ने वहां की स्थानीय लड़कियों से बलात्कार किया, और बाद में अमरीकी लहू वाले वैसे बच्चों को लेकर वियतनामी युवतियां जगह-जगह मीडिया के सामने भी आती थीं, और इस जंग में शामिल अमरीकी सैनिक ऐसे युद्ध और यौन अपराधों को लेकर मानसिक बीमारियों से ग्रस्त भी हो गए थे। दुनिया के और कई देशों के जंग इसी तरह की हिंसा औरतों पर दर्ज कर चुके हैं।

औरत को बदला लेने का सामान, अपमान करने का सामान तो हमेशा से माना गया है। हिन्दुस्तान पर जब मुगलों का हमला हुआ, तो कितने ही हिन्दू राजाओं ने उनसे जंग करने के बजाय अपनी लड़कियों की शादी उनके साथ करवा दी थी, और मानो उसके एवज में वे अपने ही राज-पाठ पर अपना कब्जा बरकरार रख चले थे। मतलब यह कि न सिर्फ जंग के हासिल की शक्ल में, या दुश्मन का मनोबल तोडऩे के लिए उनकी लड़कियों और औरतों का इस्तेमाल होता है, बल्कि अपने राज-पाठ को कायम रखने के लिए भी लोग अपनी लड़कियों का ऐसा इस्तेमाल करते हैं, जो कि मुगलों के वक्त हिन्दुस्तान में बहुत से हिन्दू राजाओं ने किया था। दुनिया की जिस संस्कृति और सभ्यता में मर्दों का बोलबाला रहता है, वहां औरतें मोटेतौर पर सामान ही रहती हैं।

दुनिया का रिवाज यही है। आज भी सभ्य या असभ्य किसी भी तरह की, हर तरह की दुनिया में तमाम गालियां औरतों के नाम को लेकर ही बनती हैं। भाषा चाहे अलग-अलग हो, गालियों का हमला तो महिलाओं पर ही रहता है। बचपन से जो बच्चे स्कूली किताबों में लडक़े और लडक़ी में भेदभाव पढ़ते हैं, कमल किताब पढ़ता है, और कमला जल भरती है, तो ऐसे बच्चे बड़े होकर महिलाओं को दूसरे दर्जे का इंसान मान लेते हैं, और उसमें कुछ भी अटपटा नहीं रहता। ऐसे ही लोग बलात्कार के जवाब में बलात्कार पर उतारू हो सकते हैं, होते हैं।

महिलाओं और लड़कियों को हिंसा से बचाने के कोई शॉर्टकट नहीं हो सकते हैं। बचपन से परिवार और समाज में लडक़े महिलाओं के साथ जो सुलूक देखते हैं, मोटेतौर पर उसका असर उनकी पूरी जिंदगी पर बने रहता है। न सिर्फ लडक़ों के आदमी बनने पर उन पर यह असर कायम रहता है, बल्कि लड़कियों के औरत बन जाने पर भी यह असर उन पर रहता है, और वे खुद तो मर्दों की हिंसा बर्दाश्त करने को अपनी नियति मान ही लेती हैं, बल्कि वे परिवार की दूसरी महिलाओं को भी हिंसा का हकदार मानने से परहेज नहीं करती हैं। नतीजा यह निकलता है कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी मर्द हिंसा की विरासत लेकर चलते हैं, और पीढ़ी-दर-पीढ़ी औरतें इसके लिए बर्दाश्त की विरासत लिए चलती हैं। ऐसी ही सोच लोगों को पहले बलात्कार करने का हौसला देती है, और फिर बलात्कार के बदले बलात्कार करने का भी।

दुनिया में महिलाओं के खिलाफ हिंसा का हर स्तर पर मुकाबला करना चाहिए। खासकर सोशल मीडिया पर महिलाओं के प्रति हिकारत की जो सोच बिखरी रहती है, और जो दूसरे लोगों को अपनी शक्ल में ढाल भी लेती है, वैसी सोच का हर पोस्ट पर विरोध होना चाहिए। धर्म और जाति के नाम पर महिलाओं से भेदभाव होता है, भारत जैसे देश में ग्रामीण सामाजिक ढांचे के तहत महिलाओं से हिंसा होती है, इन सबका जमकर विरोध करने की जरूरत है, तभी जाकर महिलाओं को थोड़ी-बहुत इज्जत हासिल हो सकेगी। यह हजारों बरस से चले आ रहा सिलसिला है, और सदियों तक जारी भी रहेगा, लेकिन इसका मुकाबला करने से ही इंसाफ कायम हो सकेगा, और अगली पीढिय़ां कुछ संवेदनशील बन सकेंगीं।

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