छत्तीसगढ़ के अरुण शर्मा की मांग पर अयोध्या में खुदाई, पुरातत्वविद ने पेश किए थे मंदिर के सबूत

‘अब बस रामलला के दर्शन की इच्छा है, अगर गाड़ी में कोई लेकर जाए तो मैं चला जाउंगा’ ये कहना है 91 साल के पुरातत्वविद पद्मश्री अरुण शर्मा का जो राम जन्मभूमि मामले में खुदाई दल के सदस्य और मुख्य गवाह रहे। उन्होंने ही खुदाई में मिले अवशेषों के रिसर्च के आधार पर कोर्ट में मंदिर के सबूत पेश किए थे। अयोध्या में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है लेकिन इसे देखने 91 साल के अरुण शर्मा अयोध्या नहीं जा पाएंगे। शर्मा की मांग पर ही अयोध्या में खुदाई करवाई गई थी। शिलालेख और मंदिर के अवशेष ही पूरे फैसले में प्रमुख आधार बने।

राजधानी के चंगोराभाठा इलाके में रहने वाले अरुण शर्मा के घर जब हम पहुंचे। तब भीतर से उनके बेटे मनीष शर्मा उन्हें उठाकर बाहर हॉल में लेकर आए। किसी समय रिमोट एरिया में भी पुरातात्विक शोधों के लिए आधी रात भी चलने के लिए तैयार रहने वाले अशोक शर्मा पर उम्र का असर साफ दिखाई दे रहा था। लगातार बोलने में समस्या आ रही थी, कुछ ही देर उनसे बात करके पूरी जानकारी ली।

अयोध्या केस के एविडेंस पर लिखी किताब के साथ अरुण शर्मा

अयोध्या केस के एविडेंस पर लिखी किताब के साथ अरुण शर्मा

शर्मा ने दैनिक भास्कर को बताया कि उनके जीवित रहते मंदिर बनकर तैयार हो रहा है, इस बात की खुशी है। शर्मा ने कहा कि पहले कोई ये मान ही नहीं रहा था कि यहां कभी मंदिर था। लेकिन जब खुदाई हुई तब रामायण काल की ईंटें, शिलालेख, राम चबूतरा, स्वास्तिक की मुहर और गंगा-यमुना की मूर्तियां निकली तब मंदिर होने के सबूत पुख्ता हुए।

अशोक सिंघल ने शर्मा से खुदाई टीम का हिस्सा बनने कहा

अरुण शर्मा के भतीजे डॉ सुधीर शर्मा ने बताया कि राम जन्मभूमि की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने विश्व हिन्दू परिषद से मंदिर के सबूत जुटाने को कहा था और पहली बार कोर्ट ने खुदाई की अनुमति भी दी थी। जिसके बाद विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल खुद रायपुर आए और उन्होंने अरुण शर्मा से मुलाकात कर अयोध्या में खुदाई टीम का हिस्सा बनने के लिए कहा।

इस समय शर्मा छत्तीसगढ़ के ही पुरातात्विक स्थल सिरपुर में चल रही खुदाई में जुटे थे।

3 अगस्त 2003 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण डॉ एसपी गुप्ता और केएन दीक्षित ने शर्मा से दिल्ली में मुलाकात की और फिर वे अयोध्या में खुदाई टीम में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि जब खुदाई की गई और फिर मंदिर के अवशेष निकलने लगे तब ही उन्हें पता लग गया था कि इन सबूतों को कोई झूठला नहीं पाएगा।

पुरातात्विक अवशेषों का अध्ययन कर इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिसर्च पेश किया। यहां तमाम दलीलों और तर्कों के बावजूद पुरातात्विक साक्ष्य विश्वसनीय पाए गए। जिसे विरोधी दलों के विशेषज्ञों ने भी स्वीकार किया। इसके बाद इन्ही सबूतों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने भी अपना फैसला सुनाया।

खुदाई में मिले शिलालेख।

खुदाई में मिले शिलालेख।

संदूकों में भरकर लेकर जाते थे सबूत

खुदाई में मिलने वाले अवशेषों को हिन्दू धर्म से जुड़ा साबित करने के लिए उन्होंने ऋग्वेद से लेकर हिन्दू मंदिरों की बनावट और शैली को लेकर लिखी गई कई किताबों का संदर्भ दिया। कई बार किसी एक ही अवशेष के बारे में सबूत पेश करने के लिए ढेर सारे दस्तावेजों को पेश करना होता था, ऐसे में संदूकों में सारे दस्तावेज कोर्ट ले जाने पड़ते थे। उदाहरण के तौर पर उन्होंने बताया कि खुदाई में मिली गंगा-यमुना और मगर की मूर्ति को हिन्दू मंदिर का साबित करने के लिए ऋगवेद से लेकर मंदिरों पर लिखी गई करीब 52 पुस्तकों का अध्ययन कर दस्तावेज एकत्र किया गया।

अयोध्या के साक्ष्यों पर लिखी किताब ‘आर्कियोलॉजिकल एविडेंस इन अयोध्या केस’

अयोध्या मामले में खुदाई के दौरान जितने भी साक्ष्य मिले। उस पर एक किताब ‘आर्कियोलॉजिकल एविडेंस इन अयोध्या केस’ नाम की किताब भी अरुण शर्मा ने लिखी है। ये किताब अंग्रेजी भाषा में लिखी है और शर्मा ने इसके हिन्दी अनुवाद की भी अनुमति दे दी है। इस किताब के आधार पर अयोध्या में मिले सबूतों को हम बता रहे हैं।

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