अंधविश्वास में उलझकर अपने ही जिंदगी के बने दुश्मन

मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य संभाग शहडोल में दागना कुप्रथा इस तरह प्रचलित है कि बीमारी का पहला इलाज इसी से किया जाता है। कोई चूड़ी से दागता है तो कोई हंसिया से और कभी-कभी अगरबत्ती या नीम की सीक का भी इस्तेमाल होता है। इसी दागना कुप्रथा की वजह से शहडोल में पिछले एक महीने के अंदर चार मासूमों की मौत हो चुकी है।

50 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है

सरकारी आंकड़ों के अनुसार बीते पांच साल में 50 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है।बच्चों को बीमारियों से बचाने आदिवासी समुदाय का दागने का टोटका किया जाता है,जिससे पीड़ा और मौत ही मिल रही रही हैं।इससे मासूम बच्चों की जान पर आ रही है।इसके लिए कोई और नहीं अपने ही अपनों के दुश्मन बने हुए है और दागना कुप्रथा के अंधविश्वास में फंसे है।यह कुप्रथा बड़ो में भी प्रयोग की जाती है,लेकिन बड़े झेल लेते हैं,लेकिन बच्चों की जान चली जाती है।

एक महीने की भीतर चार बच्चों की मौत

एक महीने के भीतर जो मामले सामने आए उनमें एक उमरिया जिले के मानपुर कठार गांव का है।अमसिया बैगा की तीन माह की बेटी को उल्टी दस्त हो रहा था,तो उसने अपने समुदाय में प्रचलित दागना कुप्रथा को अपनाया और मासूम को बेटी को गर्म चूड़ियों से बेटी के पेट में कई बार दाग दिया।इसके बाद बेटी की तबियत और बिगड़ी तो 3 जनवरी को उसे इलाज के लिए शहडोल के बिरसा मुंडा मेडिकल कालेज में भर्ती कराया।

मेडिकल कालेज में दम तोड़ दिया था

8 जनवरी को इलाज के दौरान मौत हो गई। दूसरा मामला अनूपपुर जिले के जरही गांव का है।यहां की उषा ने अपनी दुधमुही बेटी को निमोनिया का इलाज करने के लिए लोहे हंसिया से 51 बार दागा।31 दिसंबर को तीन महीने की बेटी को गंभीर हालत में शहडोल मेडिकल कालेज में भर्ती किया गया था। जहां उसने दम तोड़ दिया था।

दो माह की बेटी को निमोनिया, अगरबत्ती की सीक से जला दिया

तीसरा मामला शहडोल जिले के बुढ़ार क्षेत्र के ककरहाई गांव का है। यहां दो माह की बेटी को निमोनिया हो गया तो मां इंद्रवती ने इलाज के लिए अगरबत्ती की सीक से बेटी के पेट पर सात बार दगवाया है।हालत बिगड़ने पर मेडिकल में भर्ती कराया गया है और उपचार चल रहा है।इसके पहले दागने के दो मासूमों उपचार के दौरान मौत हो चुकी है।इस तरह से एक महीने के भीतर अब तक चार मासूमों की मौत हो चुकी है और एक उपचार चल रहा है।

निमोनिया व पेट फूलने पर दागने से इलाज

हर साल अक्टूबर से जनवरी के महीने में जब ठंड का मौसम होता है तब बच्चों को दागने के मामले बढ़ते हैं।इस मौसम में बच्चे जल्दी निमोनिया की चपेट में आते हैं।इससे बचाने के लिए आदिवासी गांवों में ये प्रयोग हमेशा किए जाते हैं। दूध पीकर जब बच्चे का पेट भर जाता है तो उसकी नसें दिखने लगती है। घर के लोग नीम के डंठल, हंसिया या काली चूड़ी को गर्म करके बच्चे के पेट को दागते हैं।आज भी आदिवासी समुदाय के बीच दागना कुप्रथा पर विश्वास है। बच्चों के बीमार होने पर पहला प्रयोग यही किया जाता है।

11 हजार लोगों से भरवाया गया संक्लप

जिले के आदिवासी बाहुल्य गांवों में दागना कुप्रथा को लेकर दीवारों में स्लोगन लिखे जा रहे हैं। कहीं लिखा है बच्चों को दागना अपराध है। किशोर न्याय अधिनियम 2015 की धारा 75 के तहत तीन साल की सजा और 1 लाख रु. का जुर्माना है। ये स्लोगन गांव में काम करने वाली आशा कार्यकर्ताओं ने लिखवाए हैं।

कोई बीमारी हो तो अस्पताल में इलाज हो सकें

महिला बाल विकास अधिकारी मनोज लाहरोकर ने बताया कि ऐसे जितने मामले संज्ञान में आए हैं, उन्हें हिदायत दी गई है। गांवों में लगातार स्वास्थ्य कैंप लगाते हैं, ताकि बच्चों को कोई बीमारी हो तो अस्पताल में इलाज हो सकें।उन्होंने अभी तक 11 हजार लोगों से संकल्प पत्र भी भरवाया है कि जब उनके बच्चे दस्त, निमोनिया या किसी और बीमारी से पीड़ित होंगे तो वे दागने की बजाय बच्चों को अस्पताल लेकर आएंगे।

नियमों सिथिलता के कारण डर नहीं

लगातार चार बच्चों की मौत के बाद कलेक्टर वंदना वैद्य ने जागरूकता अभियान चलाने के निर्देश दिए हैं।गांवों में जाकर स्वास्थ्य परीक्षण कराने को कहा है।जिला प्रशासन की जागरूकता का असर देखने को मिला है,लेकिन अभी भी सिथिल नियमों के चलते दागना जैसी कुप्रथा रुक नहीं रही है।गांवों में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता,आशा कार्यकर्ता और स्वास्थ्य कार्यकता महिलाओं को गर्भवती हाेते ही चिंहित करके निगरानी रखती है और जागरूक कर रही है। इसके बावजूद बच्चों को दाग दिया जाता है।अभी तक जो मामले सामने आए है,उनमें पुलिस में प्राथमिकी भी दर्ज है,लेकिन नियमों में सिथिलता के कारण लोगाें में डर नहीं हैं।दागना के प्रति जागरुकता के साथ कुछ कड़े नियम बनाने के साथ उनका पालन कराना होगा।

बच्चों को दागने के बाद उनका इलाज कठिन हो जाता है।दागना कुप्रथा की प्रक्रिया में गलती से गलत नस को दाग दिया जाता है तो ये जानलेवा हो जाती है। घाव में इन्फेक्शन से नुकसान ज्यादा है।दागना के प्रति लोगों जागरुक करा रहे हैं और आगे यह प्रयास और तेज होंगे

वंदना वैद्य, कलेक्टर, शहडोल

बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने दागना को संज्ञान में लिया है।सरकारी विभागों को इस कुप्रथा के प्रति कार्यक्रम चलाकर जागरुक करने के निर्देश जारी किए हैं।साथ ही स्वास्थ्य विभाग को बच्चों में निमोनिया की नियमित जांच उपचार के लिए पत्र जारी किया गया है।जागरुकता के साथ यदि निमाेनिया पर कंट्रोल होगा तो बच्चों में दागना अपने आप रुक जाएगा।

मेघा पवार ,सदस्य बाल संरक्षण आयोग मध्य प्रदेश