- दिखावों पर मत जाओ और अपनी अकल लगाओ, देखो, सोचो, परखो और जब सही हो तभी कोई भी फोटो या वीडियो वायरल करो !
07 जनवरी 2024: बात उन दिनों की है जब हम स्कूल में पढ़ा करते थे तब हमारे हिन्दी के शिक्षक ने एक कहानी सुनाई थी कि भेड़ों को चराने के लिए एक बकरी को हमेशा उनके साथ चलाया जाता है, क्योंकि भेड़ों का अपना कोई विवेक नहीं होता है। इसलिए वे बकरी के ही कदमों को देखकर अपना रास्ता बनाते हैं। अगर बकरी किसी गड्ढे में गिरती है तो भेड़ भी उसी गड्ढे में गिरने लगते हैं। अब आप यह सोच रहे होंगे की मैंने इसमें नया क्या बताया क्योंकि ये तो सदियों से चली आ रही कहावत है, जो लगभग सभी बुद्धिजीवियों ने सुन रखी है। लेकिन यह कहावत आज भी कई जगहों पर चरितार्थ हो रही है। जिसमें बकरी का रोल वर्तमान में सोशल मीडिया यूजर्स द्वारा निभाया जा रहा है। भेड़ का रोल ऐसे ही बुद्धिजीवियों या अन्य लोगों द्वारा निभाया जा रहा है जो किसी भी फोटो और वीडियो की बिना जांचे और परखे ही उसे वायरल करने का काम करते हैं। यह लाइन इतनी लंबी होने लगती है कि अंत में एक अफवाह साबित होकर सामने आती है। ये फेक न्यूज एक खतरनाक बीमारी है।
अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य का मामला गर्म है। इस समय बकरी रूपी सोशल मीडिया यूजर्स बहुत सक्रिय हैं। जिसमें किसी के द्वारा भालू के दो शावकों को हसदेव के जगलों में अपनी मां से बिछड़ा हुआ बताया गया। वहीं बिना इसकी सच्चाई का पता लगाए ही कई लोगों ने इसे भेड़ की चाल की तरह ऐसा वायरल किया कि एक प्रसिद्ध राष्ट्रीय अखबार दैनिक जागरण समूह के नईदुनिया अखबार को इसकी सच्चाई के लिए खोजबीन करनी पड़ गयी। दरअसल, रायपुर से प्रकाशित नईदुनिया अखबार ने 30 दिसंबर 2023 को पेज क्रमांक 4 में प्रकाशित एक लेख में इन दोनों भालू के शावकों को मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले के चिरमिरी वन परिक्षेत्र का बताया गया। जिसके मुताबिक ‘इन दोनों शावकों की माँ उन्हें छोड़ कर जंगल में कहीं चली गई’ कहा गया है। अब जिसने भी फोटो को सोशल मीडिया में पोस्ट किया है उसकी इसके पीछे मानसिकता क्या रही होगी, यह इस बात से ही समझ में आ जाती है कि वह एक झूठ की दुकान का संचालक है, जो इस तरह के भड़काऊ और भ्रामक फोटो और वीडियो को पोस्ट कर देश की जनता को तो बरगला ही रहा है, साथ ही केंद्र और राज्य की सरकारों द्वारा देश के विकास के लिए संविधान और कानून की हद में रहकर किये जा रहे कार्यों में अड़चने पैदा करने की कोशिश भी कर रहा है।
https://x.com/HansrajMeena/status/1740285626535366722?s=20
हसदेव के जंगलों को लेकर ही काफी सारे वीडियो और फोटो इन बकरी रूपी सोशल मीडिया में झूठ की दुकानों के संचालकों द्वारा वाइरल किये जा रहे हैं। जिनमें ‘वन विभाग द्वारा हसदेव में 50 हजार पेड़ों का दोहन किया गया’ का दावा साथ ही वहाँ के ‘आदिवासीयों द्वारा इसका पुरजोर विरोध भी किया जा रहा है’, इसके अलावा एक बड़े कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाने के लिए हसदेव का जंगल नष्ट किया जा रहा है’ इत्यादि। जबकि जिस हसदेव के लिए एक नामी कॉर्पोरेट को बदनाम करने की साजिश इन झूठ की दुकानदारों द्वारा की जा रही है। असल में वह राजस्थान राज्य सरकार को उसके 4340 मेगावाट के तीन ताप विद्युत संयंत्रों के लिए आवंटित की गई है और उसमें मात्र खनन करने का ठेका इस नामी कंपनी को एक प्रतिस्पर्धी बोली के तहत सौंपा गया हैं। वहीं इन सभी वाइरल विडिओ और फोटो के सच की खोज, की खबर जब एक अन्य प्रसिद्ध राष्ट्रीय अखबार हरिभूमि के छत्तीसगढ़ एडिशन द्वारा 28 दिसंबर 2023 को जैकेट पेज में प्रकाशित किया गया। तब पता लगा की केवल ‘10 हजार पेड़ों का विदोहन का कार्य हुआ है। इसके साथ ही देश के ‘शीर्ष न्यायालय द्वारा सरगुजा में राजस्थान राज्य की कोयला खदान में खनन को वैध बताते हुए इसे जारी रखने के आदेश’ की खबर भी प्रकाशित की गई। जबकि विरोध के लिए कहीं हाय.. तो कहीं विरोध से तौबा करते हुए दो हिस्सों में बंटने वाली बात के साथ ही पुनः नौकरी तथा विकास शुरू होने की खबर लिखी गई। इसके साथ ही इस लेख में वन विभाग और खदान मालिक द्वारा कुल 61 लाख पौधे लगाने का दावा करने की बात भी कही गई है।
https://x.com/Mithileshdhar/status/1738056845359812655?s=20
एक और भ्रामक वीडियो हसदेव और वहां ग्रामीणों को लेकर सोशल मीडिया पर वायरल है। इस वीडियो को छत्तीसगढ़ का बताकर दावा किया गया है कि राज्य में सरकार बदलते ही पेड़ों की कटाई शुरू हो गई है और हसदेव जंगल को बचाने के लिए आई महिलाओं के साथ मारपीट की जा रही है। वायरल वीडियो के की-फ्रेम्स को रिवर्स सर्च करने पर कई मीडिया रिपोर्ट्स मिलीं। जिसके अनुसार कर्नाटक के हासन में एक हाथी अर्जुन के अंतिम संस्कार के दौरान हंगामा कर रहे स्थानीय निवासियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। ये लोग अर्जुन के मौत की जांच की मांग कर रहे थे।
DFRAC के फैक्ट चेक से साफ है कि वायरल वीडियो छत्तीसगढ़ के हसदेव जंगल को बचाने के लिए हुए प्रदर्शन का नहीं, बल्कि कर्नाटक के हासन जिले में हुए प्रदर्शन का है। इसलिए सोशल मीडिया में झूठ की दुकान चलाने वालों का दावा भ्रामक है।
https://twitter.com/DrAaryaSinghY/status/1743192273884676228?t=utn9kOlcx4k4GXL6QISlAA&s=19
इन सबसे यह पता चलता है कि इस तरह की दुकान चलाने वाले लोग ना सिर्फ भारतवर्ष की जनता को अपनी झूठी कहानी बताते हैं बल्कि विदेशों से भी इसके लिए करोड़ों रुपए का फंड लेकर भारत की सरकारों तथा बड़े कॉरपोरेट को बदनाम कर रहे हैं। इन दुकान के संचालकों का मकसद सिर्फ अवैध पैसे कमाना है, फिर इसके लिए उन्हें अपनी जमीर के साथ-साथ माँ स्वरूपी भारत माता या छत्तीसगढ़ महतारी को ही क्यों न बदनाम करना पड़े। वहीं इन झूठ की दुकान चलाने वालों से सावधान रहने के लिए समय-समय पर भारत सरकार की जनसूचना विभाग द्वारा जागरूकता अभियान और इसके लिए कानूनी कार्रवाई की बात भी बताई गई है।
लेकिन शायद इन झूठ के संचालकों को कानून का भी भय नहीं है लेकिन सोशल मीडिया की भोली भाली जनता और अपने मित्रों से मेरा केवल यही आग्रह है कि दिखावों पे मत जाओ और अपनी अकल लगाओ सावधानी से देखो, सोचो, परखो और जब सही हो तभी कोई भी फोटो या वीडियो वायरल करो।
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