ग्वालियर के कार सेवकों ने बगैर कन्नी व औजरों के चुनाई कर रामलला को विराजित करने के लिए चबूतरा बनाया

ग्वालियर । करोड़ों देशवासियों ने खुली आंखों से एक सपना देखा था कि प्रभु अयोध्या में अपनी जन्मभूमि वापस लौटें और राष्ट्र गौरव का प्रतीक रामलला का एक भव्य-दिव्य व आलौकिक मंदिर बने, जहां प्रभु श्रीराम विराजित हों और बगैर किसी व्यवधान के रामभक्त उनके दर्शन कर आत्मिक सुकून व शांति महसूस कर सकें। संघर्ष, कई लोगों के बलिदान और लंबे इंतजार के बाद यह सपना 22 जनवरी को पूरा होने वाला है। यह बात साल 1992 में कारसेवा के लिए आयोध्या गए ग्वालियर के विनोद अष्टैया ने नईदुनिया से चर्चा के दौरान कही।

विनोद अष्टैया ने पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया कि अब शुभ मुहूर्त में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी और अपने भक्तों के सपनों के मंदिर में प्रभु श्रीराम विराजित होंगे। छह दिसंबर 1992 को कारसेवा में भाग लेने वाले रामभक्तों के लिए द्विवस्वप्न पूरा होने जैसा है। राममंदिर निर्माण के लिए 36 वर्ष का इंतजार करना पड़ा। रामलला हम आएंगे, मंदिर वही बनाएंगें, यह नारा लगाते हुए लोगों के कंठ सूख गए। कारसेवा में भाग लेने वाले पूर्व पार्षद विनोद अष्टैया का कहना है कि राममंदिर बनने की खुशी शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती है। बस दिल में उत्साह व उमंग की हिलोरें उठ रही हैं। ऐसा महसूस हो रहा है कि इस ब्रह्मांड की सबसे बड़ी खुशी मिल गई है। अब तो मन में एक ही उत्कंठा है कि कब राम मंदिर के दर्शन हों। मन बेचैन है।

कारसेवा से पांच दिन पहले पहुंच गए थे

कारसेवा के समय को स्मरण करते हुए अष्टैया ने कहा कि रामलला को विराजित कराने के लिए चबूतरे के निर्माण में सहयोग करने का मौका हमारी टोली के केशव सिंह मंसुरिया व स्वर्गीय मिश्रीलाल को मिला, जिन्होंने बगैर औजरों के चबूतरा बना दिया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक सहित अन्य हिन्दू संगठनों ने छह दिसंबर 1992 में कारसेवा का आह्वान किया। कारसेवा का कोई रोडमैप नहीं था। बस तरुणाई अयोध्या के लिए इस विश्वास के साथ निकल पड़े थे कि रामलला हम आएंगे, मंदिर वही बनाएंगे। राजेंद्र कुशवाह, केशव सिंह मंसुरिया, राज मिस्त्री स्वर्गीय मिश्रीलाल सहित अन्य युवा पांच दिन पहले ही अयोध्या के लिए निकल पड़े। अयोध्या में मध्य भारत प्रांत, उत्तर भारत प्रांत सहित अन्य प्रांतों के लिए टेंट लगे हुए थे।

उन टेंटों में जाकर डेरा डाल दिया। दिनभर अयोध्या घूमते, मंदिरों के दर्शन करते और सरयू के पवित्र जल में स्नान करते थे। रामभक्तों के आने का सिलसिला शुरु हो गया था। जय-जय श्रीराम के जयघोष से पूरी अयोध्या गुंजायमान थी। लोगों का जोश और उत्साह से यह तो विश्वास हो गया था कि अब मंदिर बनकर रहेगा। अयोध्या प्रवास के दौरान अफवाहें भी बहुत तेजी से चल रही थीं, सरयू में लाशें उतरा रही हैं। कई लोगों का बलिदान हो चुका है, क्योंकि उस समय संचार के साधन उतने नहीं थे। इन अफवाहों से मन में कोई भय नहीं था। दक्षिण भारत से कुछ माताएं-बहनें पीतल की सीताराम प्रतिमाएं साथ लेकर आईं थीं। चार दिन तक सीताराम की पूजा-अर्चना के लिए सामान जुटाने में निकल गया।

छह दिसंबर को अयोध्या का रास्ता जन्मस्थली की तरफ जाता नजर आ रहा था

कारसेवा के लिए नियत तिथि छह दिसंबर आ गई। अयोध्या का हर मार्ग से लेकर संकरी गलियां तक रामजन्मभूमि की तरफ जाती नजर आ रहीं थीं। चारों तरफ उत्साही रामभक्त नजर आ रहे थे। जयघोष हो रहा था। हम लोग भी उसी भीड़ में शामिल हो गए। थोड़ी दूरी पर एक दंपती बिलखते नजर आए, जो कि नवजात शिशु के साथ आए थे। शायद भीड़ में दम घुटने से उस नवजात की सांसे थम गईं थीं। उस दंपती को एक चबूतरे पर चढ़ाकर आगे बढ़ लिए, क्योंकि लक्ष्य सामने नजर आ रहा था। एक तरफ वरिष्ठों के लिए मंच बना हुआ था। भाषणबाजी के शब्द जयघोष में दबकर रह गए थे।

कारसेवक दौड़ते नजर आए

अचानक विवादित बाबरी गुंबद की तरफ कारसेवक दौड़ते नजर आए। कंटीले तालों व झाड़ियों की परवाह किये बगैर गुंबद की तरफ बढ़ रहे थे। रामकाज के लिए कारसेवकों में पवन पुत्र की तरह जोश और उत्साह इतना था कि किसी के रोके नहीं रुक रहा था। कुछ लोग गुंबद तक पहुंच गए। अचानक किसी दिशा से रस्सी आई और लोग उसके सहारे चढ़कर गुंबद के शिखर पर पहुंच गए और गुंबद को ढहाना शुरू कर दिया। भीड़ में सुरक्षा के लिए तैनात जवान भी गुम हो गए। उसके बाद धूल का गुबार नजर आने लगा और हजारों सालों की गुलामी का प्रतीक ढांचा गिर गया। कुछ ही क्षणों में ढांचे की बजाय वहां मैदान नजर आने लगा। मलबा तक गायब हो गया।

बगैर औजरों के हाथों से बनाया चबूतरा

हमारा सौभाग्य था कि हमारी टोली में शामिल केशव सिंह मंसुरिया व स्वर्गीय मिश्रीलाल निवासी शिंदे की छावनी वहां तक पहुंच गए। चूंकि दोनों राज मिस्त्री थे, इसलिए हाथ से गारा बनाने लगे, क्योंकि उस समय फाबड़े-तसले व व कन्नी नहीं थी। देखते-देखते ही चबूतरा तैयार हो गया। चुनाई बगैर कन्नी के हो गई और उस चबूतरे पर टेंट लगाकर रामलला को विराजित कर दिया। कारसेवकों का काम पूरा हो चुका था। अयोध्या में कारसेवक जोश से भरे हुए थे, उसके बाद ऐलान हुआ कि खाने-पीने का इंतजाम स्वयं ही करना है।

परात, तवा के साथ आटा-तेल नमक मिर्ची खरीदी

हम लोग ढांचा गिरने के बाद बाजार पहुंचे, जहां एक-दो दुकानें खुली मिलीं, जिनसे परात, तवा व खाना बनाने का सामान खरीदकर खाना बनाना शुरू कर दिया और वापसी के लिए कोई साधन मिलने का इंतजार करने लगे। दो दिन विशेष ट्रेनें चलीं, उनमें बैठकर वापस आए। कारसेवकों की ट्रेनों में इतनी भीड़ थी कि टायलेट तक पहुंचने तक रास्ता नहीं था।

दर्शन करने के लिए जाएंगे

विनोद अष्टैया ने कहा कि कारसेवा में साथ गए कुछ लोगों को क्रूर काल ने हमसे छीन लिया है। बचे हुए साथी भव्य मंदिर व रामलला के दर्शन के लिए फरवरी माह में जरूर जाएंगे