नासा ने हाल में साइकी नामक एक रहस्यमय धातुई क्षुद्रग्रह की जांच के लिए ‘साइकी’ मिशन शुरू किया है। 220 किलोमीटर चौड़े खगोलीय पिंड साइकी के आकार और संरचना काफी समय से वैज्ञानिकों को आकर्षित करती रहे हैं। चट्टानी क्षुद्रग्रहों के विपरीत, साइकी ‘एम-टाइप’ क्षुद्रग्रह है जिसका घनत्व और परावर्तकता असाधारण हैं। लंबे समय से शोधकर्ताओं का अनुमान रहा है कि साइकी एक बहुत बड़े प्रोटोग्रह की धात्विक कोर है। इस संकल्पना के अनुसार, अरबों साल पहले एक विशाल निर्माणाधीन ग्रह के भीतर गुरुत्वाकर्षण बल और रेडियोधर्मी तत्वों के कारण चट्टानें आंशिक रूप से पिघलकर अलग-अलग परतों में जम गई होंगी। ज़ाहिर है, सबसे भारी धातुएं (लौह-निकल) केंद्र में पहुंची होंगी। आगे चलकर किसी अन्य खगोलीय पिंड के साथ भयंकर टक्कर से बाहरी परतें अलग होकर बिखर गई होंगी और लौह-निकल से समृद्ध कोर उजागर हो गया होगा।
साइकी मिशन का उद्देश्य इस धातुई कोर की बारीकी से जांच करना है, ताकि ग्रहों के कोर की संरचना और इतिहास की जानकारी मिल सके। इस मिशन की सदस्य बिल बोटके के अनुसार पृथ्वी या शुक्र के कोर का अध्ययन करना काफी मुश्किल है, ऐसे में साइकी का अध्ययन एक सुनहरा अवसर है।
उम्मीद है कि 2029 तक अंतरिक्ष यान ‘साइकी’ इस क्षुदग्रह की कक्षा में होगा और वहां दो साल से अधिक समय बिताएगा। इस दौरान वैज्ञानिक पृथ्वी से प्रेषित रेडियो तरंगों में सूक्ष्म बदलाव करते हुए क्षुद्रग्रह के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र का मानचित्रण करेंगे। इस मानचित्र से यह जानने में मदद मिलेगी कि साइकी एक समान रूप से सघन धातु से बना है या फिर मलबे का ढेर है। यान में उपस्थित मैग्नेटोमीटर प्राचीन तरल धातु के अवशेषों की खोज करेगा, जबकि गामा किरणें और न्यूट्रॉन धातु कोर में निकल की उपस्थिति का पता लगाएंगे। उच्च-विभेदन इमेजिंग बास्केटबॉल कोर्ट जितने छोटे-छोटे इलाकों की छवियां कैप्चर करेंगे।
वैसे पृथ्वी से जुटाई गई दूरबीनी सूचनाओं ने धात्विक-कोर परिकल्पना पर कुछ संदेह पैदा किया है। ताज़ा अनुमान के अनुसार साइकी का घनत्व पूर्वानुमान की तुलना में कम है। इसके अतिरिक्त, इससे टकराकर आने वाला प्रकाश कार्बन-आधारित सामग्री और चट्टानी सिलिकेट खनिजों की उपस्थिति के संकेत देता है, जो खालिस धातुई क्षुद्रग्रह की धारणा को चुनौती देता है। इस डैटा के आधार पर शोधकर्ताओं का अनुमान है कि क्षुद्रग्रह का 30 से 60 प्रतिशत हिस्सा धातु से बना है जो संभवतः एक निर्माणाधीन ग्रह के कोर और मेंटल का मिश्रण है। इसका आकार अरबों वर्षों के दौरान अनेकों टकराव और कार्बनयुक्त धूल से ढंकने के कारण बदल गया है।
इस क्षुद्रग्रह के सम्बंध में एक अनुमान यह भी है कि इसमें एक पतले चट्टानी आवरण के नीचे धात्विक कोर है। चमकदार सतह के धब्बे प्राचीन ‘लौह-ज्वालामुखीय गतिविधियों’ का परिणाम हो सकते हैं, जिसमें सतह पर आयरन सल्फाइड द्रव रिसा होगा। या फिर साइकी प्रारंभिक सौर मंडल के धातु-समृद्ध क्षेत्र में गठित एक परत रहित पिंड भी हो सकता है।
हालांकि साइकी की धातु सामग्री उन दुर्लभ उल्कापिंडों से मिलती-जुलती है, जिन्हें एनस्टैटाइट कॉन्ड्राइट्स कहा जाता है। लेकिन साइकी की परिक्रमा कक्षा से लगता है कि इसकी उत्पत्ति बृहस्पति की कक्षा से बाहर हुई होगी। इस स्थिति में इसके गठन और क्षुद्रग्रह पट्टी तक पहुंचने के बारे में कई सवाल उठते हैं। बहरहाल, नासा साइकी के रहस्यों को उजागर करने के लिए प्रतिबद्ध है। नासा की इस परियोजना से क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं के बारे में हमारे ज्ञान में काफी वृद्धि होने की संभावना है।
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