दिल्ली हाई कोर्ट ने मई 2000 में अपनी पत्नी की आत्महत्या के लिए दोषी ठहराए जाने और सजा का विरोध करने वाले सतपाल सिंह नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि दहेज से संबंधित कई मौतें केवल पुरुष प्रभुत्व और एक लिंग के प्रति शत्रुता के बारे में नहीं है.
ऐसे मामलों में महिलाएं भी महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों में शामिल रहती हैं. इस मुद्दे पर जोर देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा, “दहेज हत्या के परेशान करने वाले पैटर्न ने साबित कर दिया है कि महिलाओं को अभी भी वित्तीय बोझ के रूप में देखा जाता है.”
दिल्ली HC ने इस मामले में ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, जहां सतपाल सिंह को अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी पाया गया था, आरोपी को अपनी सजा की शेष अवधि पूरी करने के लिए 30 दिनों के भीतर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया.
ट्रायल कोर्ट ने अप्रैल 2009 में सिंह को धारा 498 ए (पत्नी के साथ क्रूरता) के तहत दोषी ठहराया था. और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304 बी (दहेज हत्या) और उसे 10 साल की अवधि के लिए कठोर कारावास की सजा सुनाई थी.
कोर्ट ने कहा, महिलाओं के लिए यह आघात इतना भारी हो सकता है कि मौत उन्हें दहेज की मांगों के कारण होने वाली निरंतर पीड़ा से कम पीड़ा प्रतीत होती है. न्यायमूर्ति शर्मा ने मामले पर विचार किया और कहा कि मृत महिला को लगातार पीड़ा सहनी पड़ी और उसे अपने माता-पिता को फोन करने या उनसे मिलने की भी अनुमति नहीं थी.
कोर्ट ने कहा कि माता-पिता से महिला के फोन कॉल सीमित कर दिए गए और उसे भोजन और कपड़े जैसी बुनियादी ज़रूरतों से भी वंचित कर दिया गया. हाई कोर्ट ने कहा, “एक महिला को केवल उसकी वैवाहिक स्थिति के कारण दास के समान जीवन देना एक घोर अन्याय है… उसे कभी भी हिंसा या अभाव के खतरे का सामना करते हुए लक्ष्य नहीं बनना चाहिए, केवल इसलिए क्योंकि उसके माता-पिता उसकी अतृप्त मांगों को पूरा नहीं कर सकते हैं.
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