राजराजेश्वरी माता मंदिर में 54 सालों से जल रही अखंड ज्योति

शाजापुर। शारदीय नवरात्र का आगाज हो गया है। माता जी के पंडाल भी सज गए हैं। रविवार को घट स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त सुबह नौ बजकर 27 मिनिट से शुरू होगा। कलश यात्रा के साथ दुर्गा मां और शुभ मुहूर्त में घट स्थापना वैदिक मंत्र पूजा विधि के साथ पांडालों,मंदिरों सहित घर-घर में विराजी I


अब नौ दिन के लिए क्षेत्र में वातावरण भक्तिमय हो जाएगा और लोग माता की भक्ति में डूबे रहेंगे। मंदिरों और पंडालों में सुबह शाम आरती, छप्पन भोग और जागरण इत्यादि कार्यक्रम का आयोजन नौ दिन में लोगों को देखने को मिलेगा। घर-घर में कन्या भोजन, हवन,पाठ पूजा लोग करेंगे।

मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली

शाजापुर का विश्व प्रसिद्ध राजराजेश्वरी माता मंदिर परिसर आकर्षक विद्युत सज्जा से जगमगाने लगा है। चैत्र नवरात्रि को लेकर मंदिर में तैयारियां की गई हैं और माता के दरबार को सजाया गया है। मां राजराजेश्वरी के दरबार में नौ दिनों तक माता की आराधना होगी। श्रद्धालु धार्मिक आयोजनों का आनंद भी ले सकेंगे। मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली है और यहां दूर-दूर से कई लोग आते हैं और माता के दर्शन कर मेले का भी आनंद उठाते हैं। मंदिर परिसर में मेला भी लग चुका है,मेले के लिए व्यापारी कई दिनों पहले ही अपना सामान लेकर यहां आ गए थे।

विश्व के 52 स्थानों पर शक्तिपीठ मंदिर स्थापित

मां राजराजेश्वरी मंदिर के पुजारी पं.आशीष नागर ने बताया कि माता के दरबार में 54 सालों से अखंड ज्योति जल रही है। दादाजी मंदिर के पुजारी स्व. पं. हरिशंकर नागर ने बताया था कि मां राजराजेश्वरी के दरबार में देश की चारों पीठों के शंकराचार्यों ने दर्शन करने के बाद इसे 52वां गुप्त शक्तिपीठ बताया था।

पंडित नागर ने बताया कि मां राजेश्वरी मंदिर का जीर्णोद्धार राजा भोज के कार्यकाल में 1060 में हुआ था। पूर्व में माता के गर्भगृह के ठीक बाहर के स्थान पर शनिदेव मानकर पूजन किया जाता था। 1968-1969 से अखंड ज्योत जल रही है। दादाजी पं. हरिशंकर नागर को स्वप्न आया था कि यहां शिव परिवार की प्रतिमा है। वर्षों पहले मंदिर के विस्तार के दौरान की गई खोदाई में माता के चरण, चिमटा, त्रिशूल मिला था।

शाजापुर में मां का दाहिना चरण गिरा था

स्कंद पुराण में इसे शक्तिपीठ बताया गया है। मान्यता है कि शक्तिपीठ के दर्शन मात्र से ही लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। मां सती के साथ भोलेनाथ सहित शिव परिवार मूर्ति के रूप में मिले थे। मंदिर में 54 सालों से अखंड ज्योत जल रही है। विश्व के 52 स्थानों पर शक्तिपीठ मंदिर स्थापित हैं।

मान्यता है कि राजा दक्ष ने जब हवन किया तो उस समय मां सती व भोलेनाथ को नहीं बुलाया गया था। जब माता सती यज्ञ में गई तो उनके पिता राजा दक्ष ने भोलेनाथ का अपमान किया। पति का अपमान होने के कारण माता सती अग्निकुंड में कूद गईं। इसके पश्चात भोलेनाथ माता सती को गोद में लेकर घूमते रहे। इस दौरान माता सती के एक-एक अंग गिरते रहे। शाजापुर में मां का दाहिना चरण गिरा था, जो आज भी मंदिर के गर्भगृह में विद्यमान हैं। मां राजराजेश्वरी का मंदिर चीलर नदी के तट पर है। तंत्र-मंत्र की सिद्धि के लिए मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक है।