World Mental Health Day: मेंटल हेल्थ को भी बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है PCOS, ऐसे करें इसे मैनेज

World Mental Health Day: पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) एक ऐसी समस्या होती है, जिसकी वजह से मेल हॉर्मोन एंड्रोजन ज्यादा मात्रा में बनने लगता है और प्रोजेस्‍ट्रॉन की मात्रा कम हो जाती है। यह शरीर में हॉर्मोन से जुड़े फंक्शन्स में रुकावट पैदा करता है। ऐसा माना जाता है कि हर 10 में से 1 महिला पीसीओेेएस की प्रॉब्लम से जूझ रही है। पीसीओएस की वजह से होने वाले हॉर्मोनल असंतुलन का प्रभाव मस्तिष्क के ट्रांसमीटर्स पर पड़ सकता है, जिसकी वजह से मूड स्विंग, चिड़चिड़ाहट और काफी ज्यादा घबराहट महसूस हो सकती है।

ओव्यूलेशन होने के बाद फॉलिकल्स डेवलपमेंट होने में परेशानी की वजह से गर्भधारण नहीं हो पाता, जोकि पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं के लिए एक अलग ही लेवल का स्ट्रेस है। इसलिए, चिकित्सकों के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वे पेशेंट को फिजिकली के साथ मेंटल सपोर्ट भी दें, इससे लड़ने के तरीकों के बारे में बताएं। किन वजहों से हो सकता है स्ट्रेस? 

शरीर के आकार को लेकर चिंताएं

पीसीओएस की वजह से बढ़ने वाले मोटापे को लेकर महिलाएं बहुत ज्यादा स्ट्रेस में रहती हैं। इसके साथ ही हिर्सूटिज्म़ (बालों का असामान्य विकास) और एक्‍ने भी इस स्ट्रेस को बढ़ाने का काम करते हैं। हॉर्मोन्स के असंतुलन के चलते होने वाला मूड स्विंग भी मानसिक सेहत को प्रभावित कर सकता है।

ईटिंग डिसऑर्डर

मोटापा तथा खुद के शरीर को लेकर कॉन्फिडेंस की कमी ईटिंग डिसऑर्डर (ईडी) की वजह बन सकती है। वैसे यह बहस का विषय है लेकिन पीसीओएस पीड़ितों में ईटिंग डिसऑर्डर के मामले काफी ज्यादा देखे गए हैं।

नकारात्मकता

पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में भावनात्मक अस्थिरता होने का खतरा ज्यादा हो सकता है और अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में उन्हें ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। शोध बताते हैं कि जिन्हें पीसीओएस की समस्या नहीं है, उनकी तुलना में इससे पीड़ित महिलाओं में अवसाद के तीन गुना ज्यादा लक्षण देखने को मिलते हैं। 

कैसे रहें मेंटली हेल्दी

डॉ. सोनू तलवार, फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट, नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी, वसंत विहार ने बताया किमानसिक सेहत से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं। इमोशन कंट्रोल का तरीका सबसे ज्यादा जरूरी है। इसमें भावनाओं की पहचान करना, यह पता लगाना कि ये भावनाएं किस तरह उत्पन्न होती हैं इसे जानने की कोशिश की जाती है और फिर इस पर काम किया जाता है। अपनी भावनाओं को लिखने के लिए एक जर्नल तैयार करने से उसके पैटर्न और ट्रिगर्स की पहचान करने में मदद मिल सकती है।

– तनाव को कम करने वाली एक्टिविटीज जैसे मेडिटेशन और माइंडफुलनेस का अभ्यास इसमें काफी हद तक राहत दे सकता है।

– इसके साथ ही जीवनशैली में बदलाव जैसे- नियमित एक्सरसाइज, संतुलित भोजन और अच्छी नींद ये भी बेहद जरूरी चीज़ें हैं। 

पीसीओएस को शारीरिक तथा मानसिक दोनों तरह से नियंत्रित करना जरूरी है। जरूरी उपाय और सेहतमंद आदतों को अपनाकर पीसीओएस से पीड़ित कोई भी रोगी एक खुशहाल और सेहतमंद जिंदगी जी सकता है।