नई दिल्ली। संत ईश्वर सम्मान कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरकार्यवाह भैय्या जी जोशी ने कहा कि एक कालखंड ऐसा था, जब लोग सम्मान के लिये काम करते थे लेकिन आज भारत सरकार और संत ईश्वर संस्थान के माध्यम से सम्मान लोगों को ढूंढते हुए उनके पास जा रहे हैं, चाहे वह पद्मश्री, पद्मभूषण, भारत रत्न या संत ईश्वर सेवा सम्मान हो।
श्री जोशी ने कहा कि प्राचीन ग्रथों में सेवा को धर्म के रुप में कहा गया है ‘सेवा परमो धर्मां:’, भगवतगीता में भी कर्मण्येवाधिकारस्ते कहा गया हैं, क्योंकि भारत के रक्त में ही सेवा हैं। सेवा के लिये धन, बुध्दि, साधन हो ऐसा जरुरी नहीं हैं, अंतर्मन के भाव के बिना सेवा संभव नहीं हैं। हम कालखंड से ही देखते आए हैं, गाय को रोटी और पक्षियों को दाना खिलाया जाता हैं।
अतिथि देवो भव की संस्कृति भारत की हैं, दरवाजे पर आए को विन्मुख हो कर ना भेजना ऐसा होता आ रहा है इस लिये भारत का व्यक्ति कहता हैं कि धरती पर केवल मेरा अधिकार नहीं हैं, पशु, पक्षी, देव, मानव सबका हैं और ईश्वर की आराधना के रुप में भी हम सेवा ही करते हैं,इसलिये सेवा का दायरा सीमित नहीं हैं। अंदर से ईश्वर को जागृत करना ही सच्ची सेवा हैं, जो संत ईश्वर सेवा फाऊंडेशन कर रहा है।
सामाजिक सेवा संगठन संत ईश्वर फाउंडेशन व राष्ट्रीय सेवा भारती के संयुक्त तत्वाधान में राजधानी दिल्ली के नवनिर्मित राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर, सुब्रमण्यम ऑडिटोरियम पूसा संस्थान आयोजित इस समारोह में स्वामी चिदानंद सरस्वती जी (अध्यक्ष, परमार्थ निकेतन ,ऋषिकेश), विशेष सान्निध्य सुरेश भैय्या जी जोशी (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ), मुख्य अतिथि ओम बिरला (लोकसभा अध्यक्ष), विशिष्ट अतिथि डॉ. जितेंद्र सिंह (केंद्रीय राज्य मंत्री,भारत सरकार) के सान्निध्य में संत ईश्वर सम्मान समारोह का आयोजन हुआ।
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