नई दिल्ली। नामकरण की सियासत भारतीय राजनीति का लंबे समय से हिस्सा रही है। इतिहास, राजनीति और पुरातत्व इतिहास की दुनिया के विवादित, लोकप्रिय और अक्सर किसी सभ्यता विशेष को इंगित करने वाले नाम राजनीतिक विवादों का कारण बने हैं। बात चाहे फिर इलाहाबाद के प्रयागराज हो जाने की हो या फिर औरंगाबाद के छत्रपति संभाजीनगर हो जाने की या फिर आज भारत के संविधान में इंडिया शब्द को हटा दिए जाने की।
दरअसल, किसी भी राष्ट्र का नाम उस देश की अस्मिता और ऐतिहासिक धरोहरों के गौरव को अप्रत्यक्ष रूप से संजोता है। वहां के नागरिकों को उसके इतिहास, संस्कृति और सभ्यता के प्रति गौरव की याद दिलाता है। जाहिर है राष्ट्रों के नाम वहां के जनमानस की धारा में बहते इतिहास का अभिमान ही रहे हैं और इसके साथ किसी भी तरह का बदलाव अक्सर सियासी दंगल का कारण बना है।
बाहरहाल, इस समय भारतीय राजनीति राष्ट्र के नाम को लेकर विवादों के केंद्र में है। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को चुनौती देने के लिए अस्तित्व में आया विपक्ष का नया गठबंधन “I.N.D.I.A” इस समय जहां पहले ही अपने नाम को लेकर ही निशाने पर वहीं अब भाजपा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने भारतीय संविधान में लिखे इंडिया शब्द का ही विरोध कर दिया है। जबकि देश की सर्वोच्च अदालत में तो एक याचिका भी इंडिया शब्द हटाने को लेकर लगाई गई है।
“संविधान में इंडिया शब्द हटाने को लेकर याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाते हुए कहा है-
इंडिया शब्द भारत की गुलामी का प्रतीक है और इसे हटाया जाना चाहिए।”
उधर भाजपा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने कहा है-
“देश मांग कर रहा है कि ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। ‘इंडिया’ शब्द अंग्रेजों द्वारा दी गई एक गाली है जबकि ‘भारत’ शब्द… हमारी संस्कृति का प्रतीक…मैं चाहता हूं कि संविधान में बदलाव हो और इसमें ‘भारत’ शब्द जोड़ा जाए.”
इधर कुछ दिनों पहले भाजपा के राज्यसभा सदस्य नरेश बंसल ने भी संविधान से इंडिया शब्द हटाने की मांग कर चुके हैं। वे कह चुके हैं- इंडिया शब्द औपनिवेशिक दासता का प्रतीक है और इसे हटाया जाना चाहिए। जबकि इसके पूर्व प्रधानमंत्री मोदी भी 25 जुलाई को भाजपा संसदीय दल की बैठक में विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए पर निशाना साध चुके हैं।
पीएम ने इंडिया शब्द पर चुटकी लेते हुए कहा था- ईस्ट इंडिया कंपनी और इंडियन नेशनल कांग्रेस का गठन अंग्रेजों द्वारा किया गया है। खास बात यह है कि हाल ही में जी20 की बैठक में भारत सरकार की ओर से जो जी20 के लिए जो न्यौता भेजा जा रहा है उसमें प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की जगह प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा गया है।
India To Bharat – फोटो : Istock
कैसे हुई है भारत और इंडिया शब्द की उत्पत्ति?
हमारे देश का नाम भारत रखे जाने का इतिहास प्राचीन काल और पौराणिक कथाओं से जुड़ता है। भारतवर्ष के नाम की कहानी तो सीधे ऋषभदेव के पुत्र भरत से जुड़ती है। हिन्दू ग्रन्थ, स्कन्द पुराण (अध्याय-37 के अनुसार) “ऋषभदेव नाभिराज के पुत्र थे, ऋषभ के पुत्र भरत थे।
इधर कई और पुराण भी कहते हैं कि नाभिराज के पुत्र भगवान ऋषभदेव रहे और उनके बेटे रहे भरत, वे चक्रवर्ती थे और उनका साम्राज्य चहूं दिशाओं में फैला था और उनके नाम पर ही हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। यह वह कालखंड था जब भारत को भारतवर्ष, जम्बूद्वीप, भारतखण्ड, आर्यावर्त, हिन्दुस्तान, हिन्द, अल-हिन्द, ग्यागर, फग्युल, तियानझू, होडू जैसे कई दूसरे नामों से भी पुकारा जाता रहा।
इधर, इतिहासकारों के अनुसार मध्यकाल में जब भारत पर तुर्क और ईरानी आए तो उन्होंने सिंधुघाटी में प्रवेश किया। वे “स” का उच्चारण “ह” किया करते थे और इस तरह सिंधु को उन्होंने हिंदू के रूप में पुकारा और आगे इस राष्ट्र का नाम हिंदुस्तान हो गया। यहां तर्क यही था कि भारत में रहने वाले रहवासियों को उन्होंने हिंदू कहा और इस स्थान को हिंदुस्थान कहा।
इधर विवादित रहे और दक्षिणपंथ की राजनीति के स्तंभ रहे वीर सावरकार ने अपनी पुस्तक “हिंदुत्व” में भी इसका जिक्र किया है जिसे वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने अपनी पुस्तक हिंदू होने का धर्म में भी उल्लेख किया है। जहां वे सावरकर के हिंदुत्व को परिभाषित करते हैं।
बाहरहाल, उस कालखंड में “स के “ह” उच्चारित किए जाने और हमारे देश का नाम हिंदुस्तान पड़ जाने की यह धारणा जहां एक ओर काम कर रही थी, वहीं भारत के दूसरे नामकरण की प्रक्रिया में इस राष्ट्र का सिंधु घाटी की सभ्यता का होना भी काम कर रहा था।
दरअसल, भारत के इंडिया नामकरण के पीछे एक और कहानी है, जो इतिहास के गलियारों से यहां तक आती है। एक तरह से भारत के इंडिया हो जाने का सारा गणित यहीं से शुरू होता है और इसके पीछे सिंधु नदी अपना काम करती है। सिंधु नदी का दूसरा नाम इंडस भी था जबकि सिंधु सभ्यता के चलते भारत की सिंधु घाटी की सभ्यता को एक और पुरानी सभ्यता युनान जो आज का ग्रीक है वे लोग इंडो या इंडस घाटी की सभ्यता कहा करते थे, ऐसे में इंडस शब्द लैटिन भाषा में पहुंचा तो यह इंडिया हो गया। बता दें कि लैटिन बड़ी पुरानी भाषा रही जो रोमन साम्राज्य की आधिकारिक भाषा थी।
इसे लेकर सावरकर कहते हैं- (सावरकर समग्र, खण्ड-नौ, पृष्ठ-4)1 पर
भारत को भारत, इंडिया और हिन्दुस्थान के नाम से विश्व के राष्ट्र जानते हैं पर हमारी सीमा के नजदीक वाले देशों ने हमारा पुराना नाम यानी हिन्दुस्थान (हिंदुओं का स्थान) अपने दैनिक प्रयोग में जारी रखा। पारसी, यहूदी, ग्रीक इन राष्ट्रों ने भी हमे सदैव से सिंधु यानी हिन्दू के तौर पर ही पुकारा।
इधर, अंग्रेजों के आगमन के साथ ही उस समय हिंदुस्तान के रूप में चर्चित हमारा देश इंडस वैली यानी की सिंधु घाटी की सभ्यता के रूप में भी पहचाना जाता रहा। ऐसे में अंग्रेजों ने इसे इंडस वैली के लिए लैटिन में प्रयोग होने वाले इंडिया को ही हमारे देश का नाम दे दिया और ऐसे ही हमारे देश का नाम पड़ा इंडिया।
आइए अब बात जरा संविधान के दायरे और आईने में करें तो संविधान बनने की प्रक्रिया जहां लंबी थी, वहीं यह कई तरह के मतभेदों के बीच चलती रही। जाहिर था जब राष्ट्र के नाम की बात आई हो वह भी कोई कम सरल कार्य नहीं था। संविधान सभा में भारत के नामकरण को लेकर बहस का लंबा दौर चला। कुछ सदस्य भारत को ‘भारत’ नाम रखने के प्रस्ताव पर अड़े थे तो वहीं कुछ कुछ सदस्य ‘भारतवर्ष’ नाम रखने के लिए प्रस्ताव रख रहे थे जबकि कुछ सदस्य ‘हिन्दुस्तान’ नाम रखने पर विचार कर रहे थे।
बहस में एक से एक धुरंधर थे। सेठ गोविंद दास, कमलापति त्रिपाठी, श्रीराम सहाय, हरगोविंद पंत और हरि विष्णु कामथ जैसे नेता भिड़े हुए थे। हरि विष्णु कामथ ने सुझाव दिया था कि भारत को भारत या फिर इंडिया के रूप में बदल दिया जाए।
लेकिन आखिर में इस प्रस्ताव के पक्ष में बहस करते हुए, डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था-
‘इंडिया’ नाम एक अंतरराष्ट्रीय नाम है, जिसे दुनियाभर में जाना जाता है और यह नाम भारत के विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों को भी दर्शाता है। लिहाजा इंडिया भारत का वह नाम हो गया जो विश्व में जाना गया।
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