CG NEWS : एक गांव ऐसा भी, जिसकी आधी आबादी कर रही विघ्नहर्ता की पांच हजार मूर्तियां तैयार…

राजनांदगांव। दुर्ग जिले का थनौद गांव करीबन छह हजार आबादी वाले इस गांव का नाम प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश के आधा दर्जन से अधिक राज्यों में मूर्तियों के कारण प्रख्यात है।

गणेश पर्व के दौरान विघ्नहर्ता की मूर्ति लेना हो या फिर नवरात्र में मां दुर्गा की प्रतिमा । हर समिति की पहली पसंद थनौद में निर्मित मूर्ति ही मानी जाती है। जिसकी वजह यहां की कलाकारी एवं मूर्ति में दी जाने वाली बारीकियां है। छोटे से इस गांव में करीबन पांच हजार मूर्तियों का निर्माण किया जाता है।

खास बात यह है कि,इस गांव में बसने वाला हर परिवार किसी न किसी तरह से इस व्यापार से जुड़ा हुआ है। छोटी-बड़ी मूर्तियों को तैयार करने में गांव की आधी से अधिक आबादी जुटी है। गणेश पर्व से चार माह पहले पूरा गांव तैयारी में जुट जाता है। नदी किनारे से मट्टी लाकर मूर्तियों को शुरुआती रूप दिया जाता है। जुलाई से अगस्त के बीच लोग आकर अपने आर्डर दे जाते हैं। गांव में 3 फीट से लेकर 21 फोट साईज की मूर्तियां तैयार होती है। जिसकी कीमत 15 हजार से लेकर तीन लाख तक बताई गई। मूर्तियों की मांग दुर्ग सहित राजनांदगांव, बिलासपुर, रायपुर, कोरबा, रायगढ़ और महाराष्ट्र, उड़ीसा, बिहार, झारखंड एवं मध्यप्रदेश में भी है। नवरात्र के मौके पर भी मां दुर्गा की मूर्ति इस गांव में तैयार होती है।

गौरा-गौरी से हुई शुरुआत

थनौद गांव में मूर्तिकला की शुरूआत माने जाने चाले परिवार के राधे ने बताया कि चार पीढ़ी पहले से उनका परिवार यह काम कर रहा है। पहले परिवार मिट्टी के बर्तन बनाया करता था, लेकिन गांव वालों की मांग पर पहली बार उनके दादा द्वारा गौरा गौरी का निर्माण किया गया था। इसके बाद गांव में होने वाले आयोजन के लिए मूर्ति तैयार करने का काम उनका परिवार करने लगा और यहीं से गणेश पर्व के लिए भी मूर्ति तैयार करने का दौर शुरू हो गया।

गांव में ही खुल गई पेंट ब्रश की दुकानें

थनौद गांव में हर साल गणेश और नवरात्र पर्व के लिए करीबन छह हजार मूर्तियां तैयार की जाती है। इतनी बड़ी संख्या में मूर्तियों के लिए पेंट ब्रश और हार्डवेयर से जुड़े सामान की भी डिमांड अधिक है। जिसको देखते हुए अब गांव के ही लोगों ने मूर्ति में लगने वाली सामग्री की दुकानें गांव में खोल ली है। इसके अलावा मूर्ति देखने एवं आर्डर करने आने वाले लोगों के लिए होटल भी गांव में ही अब उपलब्ध है। मूर्ति की वजह से गांव में रोजगार के कई मोके भी आए हैं।

बढ़ गया बनाने का खर्च

मूर्तिकार राधे ने बताया कि कोरोनाकाल की वजह से सामग्री के दामों में काफी इजाफा हुआ है। उनके मुताबिक लकड़ी का दाम पांच रुपए किलो से बढ़कर 15 रुपए तक पहुंच गया है। ऐसे ही मिट्टी के लिए भी अब पांच गुना दाम देना पड़ रहा है। वहीं पेंट की कीमत में भी दो सौ फीसदी तक उछाल आ गई है। जिसकी वजह से दस फीट की मूर्ति में लागत दोगुनी हो गई है।

कोरोना के बाद बढ़ गया मूर्तियों का कद

कोरोना काल का असर मूर्तिकारों पर भी पड़ा था। संक्रमण काल की वजह से प्रशासन ने बड़ी मूर्तियों की स्थापना पर प्रतिबंध लगा रखा था। जिसकी वजह से बीते तीन साल से बड़ी मूर्तिया बनना लगभग बंद हो गई थी। हालांकि पिछले साल कुछ बड़ी मूर्तियां बनाई गई थी, लेकिन गाईड लाईन के इंतजार में देरी होने के कारण उतने आर्डर नहीं लिए गए थे, लेकिन इस बार बड़ी मूर्तियों के ढेरों आर्डर हैं।