पुरुषोत्तम मास : अनंत फलदायिनी और कष्टनिवारक

श्रावण मास में पुरुषोत्तम मास का संयोग 19 साल के बाद बना है। पूर्व में 2004 में बना था। स्वतंत्र भारत में श्रावण मास में पहला पुरुषोत्तम मास 15अगस्त 1947 में पड़ा था। इसके बाद 1966, 1985 एवम् 2004 में पड़ा था। इस वर्ष श्रावण मास 2 माह का है, 4 जुलाई से 31 अगस्त 2023 तक। इस 2 माह के मध्य की अवधि का एक माह पुरुषोत्तम मास है, जिसका शुभ योग 18 जुलाई से शुरू होकर 16 अगस्त 2023 की अवधि तक 59 दिन श्रावण मास के मध्य में पुरुषोत्तम मास रहेगा। श्रावण मास के पुरुषोत्तम मास में कई शुभ फल का योग बन रहा है।


 
अधिकमास के कारण चातुर्मास की अवधि भी एक माह बढ़ेगी चातुर्मास 5माह का होगा । श्री हरि देवशयनी एकादशी से प्रबोधिनी एकादशी तक 148 दिन योग निद्रा में  रहेंगें। और शिवजी सृष्टि का भार वहन करेंगे,इसलिए पुरुषोत्तम मास में शिव आराधना विशेष फलदायी होती हैं।इस अवधि में सभी देवता ब्रज में आकर निवास करते हैं। चातुर्मास में भी कोई शुभ कार्य नहीं होता, इन महिनों में श्रीहरि की प्रसन्नता के लिए ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, मंत्र का जाप करना चाहिए और चातुर्मास के नियमों का पालन करना चाहिए। पुरुषोत्तम मास के पुण्य फल का मंत्र इस प्रकार है:


गोवर्धनधरं वंदे गोपालं गोपरूपिणम्।
गोकुलोत्सवमीशानं गोविंदं गोपिका प्रियम्।।

पुरुषोत्तम मास के अधिष्ठाता विष्णु है, इसलिए पूरे समय विष्णु मंत्र का जाप और व्रत, उपवास, पूजा, पाठ, ध्यान, भजन, कीर्तन, चिंतन, मनन की जीवनचर्या होनी चाहिए।इस वर्ष पुरुषोत्तम माह श्रावण में पड़ने के कारण शिव जी की स्तुति और शिव आराधना विशेष फलदायी   है। श्री हरि (विष्णु जी) और शिव आराधना ,पुरुषोत्तम माह  में दुगनी फलदायी और कष्टनिवारक है। पद्मपुराण के अनुसार यज्ञ हवन के अलावा देवी भागवत, श्रीमद् भागवत पुराण आदि का श्रवण पाठन, मनन विशेष रूप से फलदाई है। विष्णु मंत्र के जाप से विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, पापों का शमन करते हैं और उनकी समस्त इच्छाओं की पूर्ति करते हैं।

पुरुषोत्तम मास में पांच तत्वों से संतुलन बनाना:
हिंदू धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। पंचमहाभूतों के में जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी सम्मिलित है। अपनी प्रकृति के अनुरूप ही यह पांचों तत्व प्रत्येक जीव की प्रकृति निर्णायक रूप में निश्चित करते हैं। अधिकमास में समस्त धार्मिक कृतियों, चिंतन, मनन, ध्यान, योग आदि के माध्यम से साधक अपने शरीर में समाहित इन पांचों तत्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। इस पूरे मास में अपने धार्मिक और आध्यात्मिक प्रयासों से प्रत्येक व्यक्ति अपनी भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति और निर्मलता के लिए उद्यत होता है। इस तरह अधिमास के दौरान किए गए प्रयासों से व्यक्ति हर 3 साल में स्वयं को बाहर से स्वच्छ कर परम निर्मलता को प्राप्त कर नई ऊर्जा से भर जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान किए गए प्रयासों से समस्त कुंडली दोषों का भी निराकरण हो जाता है।

श्रावण मास भगवान शिव की पूजा का मास होने से स्वयं पवित्र माह माना जाता है, उस पर पुरुषोत्तम मास होने से इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है, इस अवधि में व्यक्ति को अपनी बुराइयों को त्याग कर मन शुद्ध करना चाहिए, नकारात्मक ऊर्जा का नाश कर, सकारात्मक ऊर्जा ग्रहण करना चाहिए। श्रावण मास और पुरुषोत्तम मास के योग से व्रत परायण तीर्थ यात्रा पवित्र नदियों में स्नान, जप, योग, सत्संग, तप, ध्यान, साधना, का विशेष महत्व है इससे इस काल में 10 गुना पुण्य फल मिलता है। पुरुषोत्तम मास के लिए ब्रह्मा सिद्धांत में उल्लेख है कि:-


यास्मिन मासे नं संक्रांति, संक्रांति द्वयमेव वा ।
मलमास: स्व विज्ञेयो मासे त्रिशत्में भवेत।।

अर्थात जिस चंद्रमास में संक्रांति नहीं पड़ती हो उसे मलमास, अधिकमास या पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं।

अधिकमास क्या है इसकी वैज्ञानिक धारणा :
अधिकमास एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। अधिकमास का प्रावधान नहीं होता तो हमारे धार्मिक पर्वो त्योहारों का गणित गड़बड़ा जाता। अधिकमास के कारण हमारे सभी धार्मिक पर्व और त्योहार सभी सही समय पर होते है। हर 3 वर्ष में अधिकमास सौर वर्ष और चंद्र वर्ष में सामंजस्य के लिए पंचांग में व्यवस्था की जाती है जिसे अधिकमास कहते हैं। एक सौर वर्ष में 365 दिन 15 घटी 31 पल और तीस विपल होते हैं, जबकि चंद्र वर्ष में 354 दिन 22 घटी एक पल 23 विपल होते हैं। सूर्य और चंद्र में 10 दिन 53 घटी, 30 पल और 7 विपल का अंतर प्रत्येक वर्ष रहता है, 3 वर्षों में यह अंतर 32 माह 16 दिन और 8 घंटे का अंतर आता है, इस अंतर को समायोजित करने संतुलन बनाने के लिए यह योजना बनाई गई है। चंद्र वर्ष प्रत्येक 3 वर्ष में 12 माह के स्थान पर 13 माह का हो जाता है। यह स्थिति स्वयं ही बनती है जिस चंद्र मास में सूर्य संक्रांति नहीं पड़ती उसी को अधिकमास माना जाता है। जो पूर्णत: वैज्ञानिक है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार:-
जिस चंद्रमास में दो सूर्य संक्रांति हो वह छय मास कहलाता है। सामानयत: यह 28 से 36 माह के मध्य पड़ता है, छय मास केवल कार्तिक, मार्ग और पौष मास में होता है, जिस वर्ष छय माह से पड़ता है, उसी वर्ष अधिकमास भी अवश्य पड़ता है। यह स्थिति 19 वर्षों या 141 वर्षों में पुनरावृत्ति होती है।

जिस मास अमावस्या से अमावस्या तक कोई संक्रांति ना पड़े उसे अधिकमास कहते हैं। संक्रांति का अर्थ सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश अर्थात राशि परिवर्तन से होता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य के सभी 12 राशियों के भ्रमण में जितना समय लगता है उसकी अवधि 365 दिन 6 घंटा और 11 सेकेंड की होती है। इन्हीं 12 राशियों का भ्रमण चंद्रमा प्रत्येक माह करते हैं जिसे चंद्रमास कहा जाता है, चंद्रमा का यह वर्ष 354 दिन लगभग 9 घंटे का होता है। अत: सूर्य को 10 दिन से अधिक समय लगता है, इस समीकरण को ठीक करने के लिए अधिकमास का जन्म हुआ 3 वर्षों में 31 दिन से भी अधिक समय लेकरअधिकमास या मलमास या पुरुषोत्तम मास के रूप में जाना जाता है।

मलमास का नाम पुरुषोत्तम मास कैसे पड़ा :
अधिकमास में सूर्य संक्रांति न होने से यह महीना मलिन मानकर इसे मलमास कहा जाने लगा। पौराणिक मान्यता के अनुसार मलमास होने के कारण कोई भी देवता इस माह में अपनी पूजा नहीं करवाना चाहते थे, और कोई भी इस माह के अधिपति अधिष्ठाता या देवता नहीं बनना चाहते थे। सभी मलमास को निकृष्ट मानते थे, इसलिए इस माह में हिंदू धर्म के विशिष्ट व्यक्तिगत संस्कार जैसे विवाह, नामकरण, यज्ञोपवीत, गृहप्रवेश, सामान्य धार्मिक संस्कार, यज्ञ, विशिष्टकार्य आदि नहीं करते थे। पुराणों के अनुसार प्राचीन काल में काल गणना के समय से ही अधिकमास का तिरस्कार होने लगा, उसे शुभ कार्यों से वंचित कर दिया गया। जिससे व्यथित और क्षुब्ध होकर मलमास बैकुंठ पति विष्णु के पास गए और दीन हीन मन से अपनी मृत्यु की कामना से बोले परमेश्वर अधिकमास में मेरा क्या दोष है? मैं तो आपके ही विधान से बना हूं, फिर मैं मांगलिक कार्यों से क्यों वंचित किया जाता हूं? मैं आपकी शरण में हूं, कृपया आप ही मेरे अधिष्ठाता अधिपतिदेवता बनना स्वीकार करें। तब भगवान हरि ने कहा कि मलमास निराश मत हो, मैं तुम्हें अपना नाम पुरुषोत्तम नाम देता हूं तभी से मलमास का नाम पुरुषोत्तम मास के रूप में जाना जाता है।  

पुरुषोत्तम मास को विष्णु का वरदान :
विष्णु ने कहा मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि जो तुम्हारे इस मास में मेरा भजन, पूजन, कीर्तन, करेगा और मेरी अमृतमयी वाणी में श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा सुनेगा या कहेगा उसे मेरा उत्तम लोक प्राप्त होगा। यहां तक की इस मास घर में महापुराण केवल मास की अवधि के मध्य तक ही रहेगी तो भी उस घर में दुख और दरिद्र का प्रवेश कदापि नहीं होगा। इसी क्षण से मैं अपना श्रेष्ठ नाम पुरुषोत्तम तुम्हें प्रदान करता हूं अब तुम पुरुषोत्तम मास नाम से जाने जाओगे।


श्री हरि विष्णु ने कहा कि पुरुषोत्तम मास में जो प्राणी श्रद्धा विश्वास के साथ मेरे सहस्त्रनाम का पाठ, पुरुष सूक्त का पाठ, वेद मंत्रों का श्रवण, गोदान, भागवत महापुराण, पुस्तक दान अन्य पौराणिक ग्रंथों का दान, वस्त्र और गुड़ का दान करेगा उसे दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों पापों से मुक्ति मिल जाएगी और वह परम गति को प्राप्त करेगा। मदिरा और तामसिक भोजन से परहेज करते हुए केवल मेरी कथा से ही मनुष्यों को सभी कष्टों से मुक्ति मिलेगी।