मैं भोरमदेव हूं साहब, मुझे बचा लो : पुरातत्व की लापरवाही से मर जाऊंगा मैं…

हैल्लो मंत्री जी,
मैं भोरमदेव बोल रहा हूँ
बचा लो साहब मुझे , पुरातत्व वाले मार रहे मुझे
65,62,384 लाख रुपये की स्वीकृति के बाद 16 महीने पहले एडवांस लेकर भी इलाज की कछुवा चाल मुझे मार डालेगी ।
16 महीने में मन्दिर की दीवाल पर उगा पेड़ नही उखाड़ पाए मेरे छोटे ईंट के मंदिर को काई , फर्न औऱ छोटे पौधे जर्जर कर रहे उसे भी बचा लो
कभी छैनी-हथौड़ी चला कर मेरा सीना छलनी करते है तो अकुशल हाथों में सौंप खिलवाड़ कर रहे अफसर
मेरी मौत के जिम्मेदार होंगे पुरातत्व विभाग के अलाल व कामचोर अफसर ।
मर जाऊंगा तो फिर किसे कहोगे छत्तीसगढ़ का खजुराहो ,आध्यत्मिक गौरव ?



16 महीने से दौड़ते कागजी घोड़े और काम की कछुआ चाल अकुशल श्रमिको के हाथों थमाई गई छीनी हथौड़ी ने भोरमदेव मंदिर के संरक्षण और उसके प्रयासों पर सवालिया निशान लगा दिया है। अफसरों की अलाली व कर्मचारी की कामचोरी का हाल यह है कि महीनों गुजरने के बाद भी मन्दिर  की टपकती छतें , रिसती दीवारे दीवारो पर जमी काई उगे, पेड़-पौधे, प्लास्टिक की पन्नी से ढकी छत मन्दिर की पीड़ा के जीते जागते सबूत है। यदि भोरमदेव मन्दिर बोल सकता, अपनी चींखें सुना सकता तो शायद यही कहता –


” मैं भोरमदेव का ऐतिहासिक मन्दिर हूँ साहब मुझे बचा लो “



दक्षिण कौसल अर्थात् छत्तीसगढ़ को भारत वर्ष की आर्थिक राजनैतिक साहित्यिक शैक्षणिक , प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक मानचित्र में किसी पहचान की आवश्यकता नहीं है। पुरातात्विक धरोहरों का गढ़ छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ के आध्यात्मिक धरोहर भोरमदेव को अपेक्षित महत्व प्राप्त नहीं हुआ जबकि आने वाले समय में भोरमदेव व करियामा में छिपे महल की दीवारों के छुपे रहस्य एवं उत्खन्न की  प्रक्रियाधीन में अटकी पचराही बकेला में मिल रहे प्रमाणों से विश्व स्तर पर सर्वाधिक प्राचीन चर्चित क्षेत्र के रूप में होना तय है ।



दक्षिण कोशल में नागवंशी शासकों का प्रभुत्व अनेक क्षेत्रों में रहा है जैसे बस्तर का छिन्दक नागवंश एवं भोरमदेव का फणि नागवंश उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि भोरमदेव क्षेत्र में छोटे – छोटे जमीदारों को परास्त कर सातवीं आठवीं शताब्दी में अहिराज के द्वारा नागवंशी शासन की स्थापना की गई थी जिसमें 25 राजा हुये छठवें राजा गोपाल देव अत्यंत कुशल एवं निर्माणकारी सोच के राजा थे उन्होंनें ही लगभग 1088 के आस पास भोरमदेव के मुख्यमंदिर का निर्माण करवाया ।

पूरे प्रदेश में एक हजार साल ज्यादा पुराने पुरातत्व महत्व के अनेक स्थान होंगे पर अपने पूर्ण अस्तित्व वाला एक मात्र स्थान भोरमदेव मंदिर ही साबूत बचा है, लेकिन हजार साल पुराने इस शिव मंदिर को पुरातत्व विभाग के अलाल अफसरों कामचोर अधिकारियों कर्मचारियों की नजर लग चुकी है । पुरातत्व विभाग द्वारा पैसे ले कर भी काम मे अलाली व अनेदखी के कारण मंदिर का अस्तित्व खतरे में पड़ चुका है। मंदिर में जगह जगह काई लग चुकी है । मन्दिर की दीवारों पर जगह जगह   पेड़ उग कर मन्दिर को जड़ो के जरिये क्षति पहुंचा रहे है । बारिश के मौसम में मन्दिर की दीवारों और छत से बारिश के पानी का रिसाव हो रहा है जो कि मंदिर के अस्तित्व के लिये खतरा बन गया है हांलाकि इस रिसाव से मंदिर को बचाने बेल के गुदे , गुड़ , चुने आदि के भराव के कार्य की जानकारी विभाग द्वारा दी जा रही किन्तु कार्य की लेटलतीफी जरूर जांच व कार्यवाही का विषय है ।

रिसती दीवारों व छतों के चलते बारिश होने पर स्तिथि और ज्यादा खराब हो जाती है। मंदिर में घुसने से लेकर गर्भगृह तक  जगह जगह पानी टपकता है वर्तमान में छत पर झिल्ली लगा कर  बरसात से छतों को टपकने से रोकने के प्रयास किये जा रहे है। मंदिर के बाजू में ही ईंटो से निर्मित जर्जर शिव मंदिर है जिस पर रिसती दीवारे पर जमी काई उगे , पेड़ पौधे मन्दिर को जर्जर कर रहे जो अफसरों को दिखाई ना देना समझ से परे है । पेड़ पौधों की जड़े कठोर पत्थर तक को खोखला कर देती है तो यह हो ईंटो से निर्मित मंदिर है ।



लगभग तीन से चार साल पहले पुरातत्व विभाग द्वारा बढ़ती समस्या को देखते हुए कई गाइडलाइन जारी किया गया साथ ही मंदिर की उचित रखरखाव के लिए कैमिकल पॉलिस करने, मंदिर के पास बड़े पेड़ को काटने व मंदिर के चारों ओर 5 फीट तक गहरा करके सीमेंट से मजबूती देने का दावा किया गया था साथ ही मंदिर में चावल को विशेष रूप से प्रतिबंधित किया गया था । लगभग डेढ़ साल से भी अधिक समय पहले पुरातत्व की टीम आई और बड़े बड़े प्लान बता गई । पुरातत्व विभाग के दौरे के बाद जिला प्रशासन ने डीएमएफ फंड से भोरमदेव मन्दिर के प्लिंथ प्रोटेक्शन , मरम्मत , कैमिकल ट्रीटमेंट के लिये पैसठ लाख बैसठ हजार तीन सौ चौरासी (65,62,384)रुपये की स्वीकृति 4 फरवरी 2022 को दे दी गई थी जिसमे से बत्तीस लाख अस्सी हजार (32,80,000) रुपये 11 फरवरी 2022 को पुरातत्व विभाग को ट्रांसफर भी कर दिए गए ।

पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर को जिला कलेक्ट्रेट द्वारा कई बार पत्राचार मौखिक चर्चा के बावजूद 7 माह बाद भी जब कोई कार्यवाही नही की गई न ही काम प्रारम्भ हो पाया तब समचार प्रकाशन और जिला प्रशासन के दवाब व समाचार से विभाग की बदनामी के चलते कुम्भकर्णी नींद से जागे पुरातत्व विभाग के अफसरों ने काम तो चालू किया किन्तु चाल कही कछुवे वाली ही रही । कछुवा चाल का नतीजा है की 16 महीने गुजरने के बाद भी काम पूरा नही हो पाया ।  मन्दिर की हालात को लेकर जिला प्रशासन को कटघरे में लेने वाले पुरातत्व विभाग की लापरवाही खुद ऎतिहासिक व पुरातात्विक महत्व के मंदिर पर भारी पड़ रही है । वही मंदिर परिसर में जगह जगह चावल न डालने की अपील चश्पा करने के बाद भी लोगो मे भी जागरूकता का अभाव देखा जा रहा है। भोरमदेव मंदिर की ख्याति आज देश ही नही विदेशों तक फैली हुई है, मंदिर की धार्मिक मान्यता भी लोगो मे खूब है, इसके बाद भी पुरातत्व विभाग द्वारा अनदेखी करना बड़ी लापरवाही साबित हो सकती है।