बस्तर गोंचा पर्व में भगवान जगन्नाथ को 56 भोग किया अर्पण

जगदलपुर ,25 जून । बस्तर गोंचा पर्व के रियासतकालीन परंपरानुसार आज रविवार देर शाम को गुडिचा मंदिर-जनकपुरी, सिरहासार भवन में 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के द्वारा भगवान जगन्नाथ स्वामी को 56 भोग का अर्पण किया गया, 56 भोग का अर्पण में विगत कई वर्षों से 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के सदस्य ओंकार पांडे के परिवार का योगदान लगातार चला आ रहा है। 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के ब्राह्मणों उदयनाथ पानीग्राही एवं शुभांशु पाढ़ी के माध्यम से पूरे विधि-विधान के साथ 56 भोग के अर्पण का पूजा विधान संपन्न करवाया गया।

मान्यताओं के अनुसार जगन्नाथ स्वामी को लगाए जाने वाले 56 भोग का बड़ा माहात्म्य है। भगवान जगन्नाथ भगवान श्रीकृष्ण के अवतार माने जाते है, भगवान श्रीकृष्ण मनुष्य के रूप में अवतरित हुए थे, तदानुसार भगवान जगन्नाथ स्वामी की सेवा भी मनुष्य रूप में की जाती है। भगवान श्रीकृष्ण के गोवर्धन पर्वत धारण करने के लीला के साथ 56 भोग को जोडक़र देखा जाता है। भगवान को 56 भोग का अर्पण में 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे छप्पन भोग कहा जाता है। भगवान जगन्नाथ को अर्पण किये जाने वाले 56 भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी, पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर खत्म होता है।

शास्त्रसम्मत एवं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 56भोग विधिवत 1615 संवत् में सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण के श्रीगोवर्धन पर्वत धारण करने के सात दिनों बाद मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को भगवान श्रीकृष्ण को अर्पण किया गया था। लेकिन श्रद्धानुरूप भगवान श्रीहरि-जगन्नाथ-श्रीकृष्ण को 56 भोग का अर्पण किसी भी सुभवसर पर किये जाने को मान्यता प्राप्त है। हिन्दू मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीहरि-जगन्नाथ-श्रीकृष्ण को एक दिन में आठ पहर अर्थात 08 बार भोग का अर्पण किया जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब इंद्र के प्रकोप से सारे बृज नगरी को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया और अपनी एक अंगुली में गोवर्धन पर्वत धारण कर बृजवासियो को गोवर्धन पर्वत के नीचे आसरा देकर अपनी लीला से सबका संरक्षण किया था। गोवर्धन पर्वत धारण करने से दिन में आठ प्रहर भोग का अर्पण करने वाले श्रीहरि-जगन्नाथ-श्रीकृष्ण के लगातार सात दिनों तक भूखा रहना उनके भक्तों के लिए कष्टप्रद था। भगवान श्रीहरि-जगन्नाथ-श्रीकृष्ण के प्रति अपनी अनन्य श्रद्धा भक्ति से ओत-प्रोत बृजवासियो ने सात दिन और आठ प्रहर के हिसाब से 56 प्रकार का भोग लगाकर अपनी भक्ति-श्रद्धा-प्रेम को प्रदर्शित किया। उस ऐतिहासिक प्रामाणिक कालखण्ड के पश्चात भगवान श्रीहरि-जगन्नाथ-श्रीकृष्ण के भक्तजन-श्रद्धालु 56 भोग के अर्पण करने की परंपरा का निर्वहन करते चले आ रहे है।

56 भोग में 56 प्रकार के व्यंजन का समावेश होता है, जिसे छप्पन भोग कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सबसे पहली बार जिस 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग भगवान श्रीहरि-जगन्नाथ-श्रीकृष्ण को अर्पण किया गया था, उसे आधार मानकर उन्ही 56 व्यंजनों को छप्पन भोग में शामिल कर भगवान को अर्पण किया जाता है, जो रसगुल्ला से प्रारंभ होकर इलाइची पर जाकर 56 व्यंजन सम्पूर्णता पाता है, वह निम्नानुसार है, 1-रसगुल्ला, 2-चन्द्रकला, 3-रबड़ी, 4-शूली, 5-दधी, 6-भात, 7-दाल, 8-चटनी, 9-कढ़ी, 10-साग-कढ़ी, 11-मठरी, 12-बड़ा, 13-कोणिका, 14- पूरी, 15-खजरा, 16-अवलेह, 17-वाटी, 18-सिखरिणी, 19-मुरब्बा, 20-मधुर, 21-कषाय, 22-तिक्त, 23-कटु पदार्थ, 24-अम्ल,खट्टा पदार्थ , 25-शक्करपारा, 26-घेवर, 27-चिला, 28-मालपुआ, 29-जलेबी, 30-मेसूब, 31-पापड़, 32-सीरा, 33-मोहनथाल, 34-लौंगपूरी, 35-खुरमा, 36-गेहूं दलिया, 37-पारिखा, 38-सौंफ़लघा, 39-लड़्ड़ू, 40-दुधीरुप, 41-खीर, 42-घी, 43-मक्खन, 44-मलाई, 45-शाक, 46-शहद, 47-मोहनभोग, 48-अचार, 49-सूबत, 50-मंडक़ा, 51-फल, 52-लस्सी, 53-मठ्ठा, 54-पान, 55-सुपारी, 56-इलायची।

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