बेंगलुरु,31 मई । ‘यौन संबंध’ के प्रावधान में किसी व्यक्ति को मृत शरीर के साथ संभोग करने के आरोप में दोषी ठहराने की धारा नहीं है।’ कर्नाटक हाई कोर्ट ने यह कहते हुए केंद्र से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के संबंधित प्रावधानों में संशोधन करने को कहा है। इसके अलावा कोर्ट ने लाशों के साथ ‘यौन संबंध’ के लिए अपराधीकरण और सजा प्रदान करने वाले नए प्रावधान लाने के भी निर्देश दिए है।
आरोपी को किया बरी
हाई कोर्ट ने आईपीसी की धारा 376 के तहत एक व्यक्ति को बरी कर दिया है। आरोपी पर एक महिला की हत्या और फिर उसके मृत शरीर के साथ शारीरिक संबंध बनाने का आरोप था। घटना 25 जून 2015 की है और आरोपी तुमकुरु जिले के एक गांव के रहने वाला है। हालांकि, कोर्ट ने आईपीसी की धारा 302 हत्या के तहत आरोपी को कठोर आजीवन कारावास और 50,000 रुपये के जुर्माना देने का आदेश दिया है।
धारा 375 या धारा 377 के तहत एक अपराध है?
कोर्ट ने सवाल करते हुए पूछा कि आरोपी ने शव के साथ शारीरिक संबंध बनाए। लेकिन क्या यह भारतीय दंड संहिता की धारा 375 या धारा 377 के तहत एक अपराध है? न्यायमूर्ति बी वीरप्पा और वेंकटेश नाइक टी की खंडपीठ ने 30 मई को अपने फैसले में कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 और 377 के प्रावधानों को ध्यान से पढ़ने से यह स्पष्ट होता है कि मृत शरीर को मानव या व्यक्ति नहीं कहा जा सकता है। इसलिए, यह भारतीय दंड संहिता की धारा 375 या 377 के प्रावधान में शामिल नहीं हो सकते। भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत दंडनीय कोई अपराध नहीं है।
नेक्रोफिलिया बीमारी क्या होती है?
यूके और कनाडा सहित कई देशों के उदाहरणों का हवाला देते हुए, हाई कोर्ट ने सिफारिश की कि ऐसे प्रावधान भारत में पेश किए जाएं। नेक्रोफिलिया एक ऐसी बीमारी है, जिसमें शख्स शवों के साथ यौन संबंध बनाता है। एचसी ने अपने फैसले में कहा कि यहीं सही समय है जब केंद्र सरकार आईपीसी की धारा 377 के प्रावधानों में संशोधन कर सकती है। इसमें पुरुषों, महिलाओं या जानवरों के मृत शरीर को शामिल किया है।
कोर्ट ने सुझाव दिया की केंद्र सरकार उस व्यक्ति के खिलाफ जो नेक्रोफिलिया से ग्रस्त हो, इस संबंध में आईपीसी में नए प्रावधान में संशोधन करेगी। इसके साथ ही आरोपी को आजीवन कारावास या किसी एक अवधि के लिए कारावास के साथ दंडनीय जो 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना के लिए भी उत्तरदायी होगा। एचसी ने राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि छह महीने के भीतर शवों के खिलाफ अपराध को रोकने के लिए सभी सरकारी और निजी अस्पतालों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं।
सत्र न्यायालय ने आरोपी को ठहराया था दोषी
21 वर्षीय पीड़िता के भाई ने अपनी बहन की हत्या की शिकायत दर्ज कराई थी। भाई ने अपनी शिकायत में बताया था कि उसकी बहन कंप्यूटर क्लास से वापस नहीं लौटी और घर के रास्ते में उसका गला रेतकर हत्या कर दी गई। साथ ही उसका शव भी वहीं पड़ा हुआ मिला था। पुलिस ने आरोपी को घटना के एक हफ्ते बाद गिरफ्तार कर लिया था। दोषी ठहराते हुए सत्र न्यायालय ने उसे धारा 302 (हत्या) के तहत दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसमें उसे धारा 376 के तहत यौन संबंध का दोषी पाते हुए 14 अगस्त, 2017 को 10 साल कैद की सजा सुनाई गई थी।
आरोपी को दोषी ठहराना गलत
इसके बाद आरोपी ने सत्र न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की। इस मामले की सुनवाई डिवीजन बेंच ने की। आरोपी के अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि आरोपी का कार्य ‘नेक्रोफीलिया’ के अलावा और कुछ नहीं है और उक्त अधिनियम के लिए अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए भारतीय दंड संहिता में कोई विशेष प्रावधान नहीं है। एचसी ने आरोपी को हत्या का दोषी पाया लेकिन उसे यौन संबंध के आरोपों से बरी कर दिया।
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