जैन संत ने बीते 98 दिनों से ग्रहण नहीं किया आहार, गर्म पानी पीकर किया 500 किमी का सफर

रायपुर । इस झुलसा देने वाली गर्मी से राहत पाने लोग ज्यादा पानी पीने से लेकर एसी में दुबके रहने तक तमाम उपाय कर रहे है वहीं दूसरी ओर एक जैन संत ने बीते 98 दिनों से आहार ग्रहण नहीं किया है। वहीं इस अवधि में करीब 500  किमी का लंबा सफर पैदल तय किया।

वह सिर्फ एक बार गर्म पानी का सेवन कर न सिर्फ विहार कर रहे हैं, बल्कि धार्मिक क्रियाकलापों के जरिये लोगों को आत्मकल्याण की राह दिखा रहे हैं। आधुनिकता के दौर और सुविधा भोगी जीवनशैली के बीच जैन साधु संत पुरातन परंपरा पर चलते हुए धर्म की अलख जगा रहे हैं।

नगर में विराजमान विरागमुनि श्री ने बीते 98 दिनों से आहार वाहण नहीं किया है और वह बिना विचलित हुए दैनिक एवं धार्मिक क्रियाकलापों को नियमित रूप से संपादित कर रहे हैं। जानकारी के 22 अप्रैल 2013 को पॉली राजस्थान में मनोज डाकलिया, उनकी पत्नी मोनिका डाकलिया, पुत्री खुशी डाकलिया और पुत्र भव्य डाकलिया ने गणाधीश पंन्यास प्रवर श्री विनय कुशल मुनि जी मसा के सानिध्य में दीक्षा ग्रहण किया था।

बाद में मनोज डाकलिया विराग मुनि, मोनिका डाकलिया वीरती यशा श्रीजी, खुशी डाकलिया विनम्र यशा श्रीजी और भव्य डाकलिया भव्य मुनिश्री के रूप में जैन धर्म की अलख जगा रहे हैं।

भव्य मुनिश्री विराग मुनि श्री के साथ नगर से करीब 500 किलोमीटर दूर स्थित चंद्रपुर में विहार करते थे। इसके बाद वह राजनांदगांव में करीब एक माह रूकने के बाद रविवार को रायपुर के लिए विहार किया।

चंद्रपुर से विहार करने  के पूर्व उन्होंने उपवास करने का संकल्प लिया था। जिसके 98 दिन पूरे हो गए हैं। इन 98 दिनों में उन्होंने अन्न ग्रहण नहीं किया, किन्तु मुनि श्री प्रतिदिन अन्य संतों के लिए गोचरी लाने निकलते हैं।

धार्मिक गतिविधियां जारी: लगातार उपवास के बाद भी विराग मुनि प्रतिदिन प्रात: 3;30 बजे शमन त्याग का जाप, नित्य कार्य से निवृत होने के बाद 4.30 बजे से प्रतिक्रमण, पडिलेहन, वंदन विधि, देवदर्शन, देववंदन, 6.45 से 7.45 बजे तक स्वाध्याय के बाद लोगों की शंका का समाधान, 7.45 बजे गोचरी के लिए निकलते हैं। सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक प्रवचन के माध्यम से धर्म का पाठ पढ़ाते है।

रिकार्ड लोगों ने किया अनुमोदना: मुनिश्री के उपवास की अनुमोदना के लिए बीते दिनों शहर के करीब 1100 से अधिक लोगों ने भी उपवास किया था। वहीं राज्य के कई लोगों ने उपवास कर अनुमोदन किया था। विदेश में भी जैन समाज के लोगों ने उपवास रख अनुमोदना की।

राजधानी के लिए विहार: मुनिश्री अपने उपवास के 99वें दिन राजनांदगांव से रायपुर के लिए विहार किया। रविवार शाम चार बजे मुनिश्री जैन बगीचे से युगांतर स्कूल के लिए रवाना हुए और यहां विश्राम के बाद उन्होंने रायपुर प्रस्थान किया।

विराग मुनि श्री ने 98 दिन पहले तीन अभिग्रह लेकर उपवास की शुरूआत की थी। बताया कि उन्होंने शुरूआत में पानी तक नहीं लिया था, किन्तु कुछ दिनों से एक-दो बार ही पानी पी रहे हैं, जब तक उनका अभिग्रह पूर्ण नहीं होगा, तब तक उपवास जारी रहेगा। जानकारी के अनुसार, जैन धर्म की साधना में अभिग्रह का बड़ा महत्व है। उपवास तोड़ने के लिए कई बार अभिग्रह लिए जाते हैं। यह अभिग्रह द्वव्य, क्षेत्र, काल एवं बाहु के संबंध में होते हैं। अभिग्रह पालने वाला व्यक्ति मन में जो संकल्प लेता है, उसके पूरा होने पर ही उपवास तोड़ता है।

जानकारी के अनुसार विराग मुनि श्री ने उपवास के पहले दो साल वर्षीतप किया था। वर्षीतप में एक दिन उपवास और दूसरे दिन पारणा फिर तीसरे दिन उपवास करने के बाद चौथे दिन पारणा किया जाता है और यह क्रम जारी रहता है। विराग मुनि ने धीरे-धीरे अपने शरीर को तपा और फिर अपने को मजबूत कर तीन अभिग्रह के साथ उपवास शुरू किया, जो अब तक जारी है।