कमीशन का खेल,सीबीएसई पैटर्न, केवी में कक्षा 6वीं में 10 किताबें तो प्राइवेट स्कूलों में 20 से ज्यादा

कोरबा,11 अप्रैल। स्कूलों में सीबीएसई पैटर्न से पढ़ाई को एक आदर्श मानक माना जाता है। यही वजह है कि ज्यादातर मध्यम वर्गीय परिवार सीबीएसई संबद्ध स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं। इस बात का फायदा उठाते हुए प्राइवेट स्कूल के संचालक बच्चों के कंधे का बोझ बढ़ाते ही चले जा रहे हैं। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि केंद्रीय विद्यालय की कक्षा 6वीं में एनसीआरटी की महज 10 पुस्तकें ही पढ़ाई जाती हैं जबकि शहर के अन्य प्राइवेट स्कूलों में इसी कक्षा के लिए यहां पढ़ रहे बच्चों को 20 से ज्यादा पुस्तकें खरीदनी पढ़ रही है।

इन सीबीएसई स्कूलों में एनसीआरटी की किताबों से पढ़ाने के निर्देश कई बार दिए जा चुके हैं लेकिन इसके बाद भी निजी प्रकाशकों की किताबों से ही पढ़ाई कराई जा रही है। बस्तों के बोझ बढ़ाने के पीछे की बड़ी वजह किताबों की आड़ में कमीशनखोरी का खेल है, क्योंकि निजी प्रकाशन की एक पुस्तक और एनसीआरटी की एक किताब की कीमत में करीब 300 से 400 रुपए का अंतर है।सीबीएसई से संबद्ध स्कूलों में अप्रैल से नए सत्र की पढ़ाई हो चुकी है। इसके लिए बच्चों को पढ़ाई जाने वाली पुस्तकों की सूची भी दे गई है। केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय जैसे सरकारी स्कूलों में एनसीआरटी की किताबें ही पढ़ाई जाती है इसलिए यहां बेहद ही कम पुस्तकों की जरूरत होती है।

वहीं निजी स्कूलों में एनसीआरटी की किताबें गायब हैं और यहां निजी प्रकाशन की पुस्तकें ही पढ़ाई जा रही है। ये पूरा खेल कमीशनखोरी के लिए किए जा रहा है क्योंकि एनसीआरटी की जो किताब 65 रुपए में मिलती है, निजी प्रकाशक की वही किताब की कीमत 500 से ऊपर है। इससे निजी स्कूलों की प्राइमरी व मिडिल कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों को किताबें खरीदने में ही 3 हजार से लेकर 6 हजार तक खर्च करने पड़ते हैं। इसके अलावा कॉपियों का खर्च अलग होता है।

प्रकाशकों की पुस्तकों लंबी सूची
कोरबा के पास एक निजी स्कूल की पुस्तकें बुक डिपो में ही मिलती है। इसके लिए स्कूलों से निजी प्रकाशकों की पुस्तकों लंबी सूची दे दी जा रही है। यही हाल कोरबा से दूर-दराज स्थित कई स्कूलों की किताबें शहर के दूसरे कोने पर मौजूद बुक डिपो में ही मिलती है।

इधर बढ़ाते ही जा रहे वजन

केंद्र से लेकर राज्य सरकार लगातार छोटे बच्चों के बस्ते के बढ़ते वजन को लेकर चिंता जाहिर कर चुके हैं। वहीं दूसरी ओर निजी स्कूलों की मनमानी के कारण ये संभव नहीं हो पाया है।

ऐसे समझे…. कमीशनखोरी का पूरा खेल

1. किताब प्रकाशकों और स्कूलों के बीच हो रही डील

बताया जा रहा है कि निजी प्रकाशकों व सीबीएसई से संबद्ध निजी स्कूलों के बीच सीधे डील हो रही है। इसमें स्कूलों को मोटी रकम दी जाती है। यही वजह है कि एनसीआरटी की किताबों की जगह निजी प्रकाशकों की किताबें पढ़ाई जा रही है। साथ ही उनके अनुसार कॉपियां का निर्धारण भी किया जाता है और इसके जरिए भी कमीशन लिया जाता है।

2. हर साल दो साल में बदल दी जाती हैं किताबें

ज्यादातर प्राइवेट स्कूलों में साल दो साल में किताबें बदल दी जाती हैं। यानी उन्हीं किताबों में एक चैप्टर जोड़ या घटा दिया जाता है। इसके बाद छात्रों को नई किताबों को लेने का दबाव बनाया जाता है। इससे अभिभावकों पर दबाव आर्थिक बोझ बढ़ जाता है जबकि दूसरी ओर निजी स्कूल व प्रकाशक इसके जरिए मोटी कमाई कर रहे हैं।

3. हाउस और दिन के हिसाब से ड्रेस कोड प्राइवेट

स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चाें को अलग-अलग हाउस में बांटा जाता है। साथ ही हफ्ते में दो दिन ऐसे तय किए जाते हैं जिनका ड्रेस कोड तय रहता है। बच्चों को हाउस के अनुसार ही लोवर-टी शर्ट और जूते पहनकर आना होता है। यही नहीं ये लोवर-टी शर्ट भी स्कूलों के द्वारा बताए गए दुकानों से खरीदने होते हैं, जो काफी महंगे होते हैं।

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