चैत्र मास के नवरात्र का आरंभ 22 मार्च, बुधवार से हो रहा है। साल में ४ नवरात्रियाँ होती हैं, जिनमे से २ नवरात्रियाँ गुप्त होती हैं। नवरात्रियों में उपवास करते, हैं तो एक मंत्र जप करें ……..ये मंत्र वेद व्यास जी भगवान ने कहा है ….इससे श्रेष्ट अर्थ की प्राप्ति हो जाती है……दरिद्रता दूर हो जाती है । “ॐ श्रीं ह्रीं क्लिं ऐं कमल वसिन्ये स्वाहा”
नवरात्रि में रोज देवी को अलग-अलग भोग लगाने से तथा बाद में इन चीजों का दान करने से हर मनोकामना पूरी हो जाती है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तिथि तक वासंतिक नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस बार वासंतिक नवरात्रि का प्रारंभ 22 मार्च, बुधवार से हो रहा है, धर्म ग्रंथों के अनुसार, नवरात्रि में हर तिथि पर माता के एक विशेष रूप का पूजन करने से भक्त की हर मनोकामना पूरी होती हैं । जानिए नवरात्रि में किस दिन देवी के कौन से स्वरूप की पूजा करें-
हिमालय की पुत्री हैं मां शैलपुत्री
चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि पर मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, देवी का यह नाम हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा। हिमालय हमारी शक्ति, दृढ़ता, आधार व स्थिरता का प्रतीक है। मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिन योगीजन अपनी शक्ति मूलाधार में स्थित करते हैं व योग साधना करते हैं।
हमारे जीवन प्रबंधन में दृढ़ता, स्थिरता व आधार का महत्व सर्वप्रथम है। इसलिए इस दिन हमें अपने स्थायित्व व शक्तिमान होने के लिए माता शैलपुत्री से प्रार्थना करनी चाहिए। शैलपुत्री की आराधना करने से जीवन में स्थिरता आती है। हिमालय की पुत्री होने से यह देवी प्रकृति स्वरूपा भी हैं । स्त्रियों के लिए उनकी पूजा करना ही श्रेष्ठ और मंगलकारी है।
घटस्थापना (देवी आह्वान) के लिए देवी पुराण व तिथि तत्व में प्रातः काल का समय ही श्रेष्ठ बताया गया है अतः इस दिन प्रातः काल में द्विस्वभाव लग्न में घट स्थापना करनी चाहिए.
इस वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा बुधवार को सूर्योदय 6:23 बजे होगा और द्विस्वभाव लग्न प्रातः 7:31 बजे तक रहेगा, अतः 6:23 से 7:31 बजे तक घट स्थापना कर नवरात्र शुरू करने का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त रहेगा.
इसके बाद भी द्विस्वभाव मिथुन लग्न में दिन में 11:14 से 12:00 बजे तक भी घटस्थापना की जा सकती है. चौघड़िया के हिसाब से घट स्थापना करने वाले प्रातः 6:23 से 9:28 बजे तक लाभ व अमृत के चौघड़िया में व दिन में 11:14 से 12:00 बजे तक शुभ चौघड़िये में के पूर्वार्ध में घट स्थापना कर सकते हैं।
नवरात्रि कलश स्थापित करने की दिशा और स्थान-:
कलश को उत्तर या फिर उत्तर पूर्व दिशा में रखें। जहां कलश बैठाना हो उस स्थान पर पहले गंगाजल के छींटे मारकर उस जगह को पवित्र कर लें इस स्थान पर दो इंच तक मिट्टी में रेत और सप्तमृतिका मिलाकर एक सार बिछा लें कलश पर स्वास्तिक चिह्न बनाएं और सिंदूर का टीका लगाएं कलश के गले में मौली लपेटें.
कैसे करें कलश स्थापना-:
नवरात्रि की पूजा में कलश स्थापना का विशेष महत्व है. कलश को श्रीविष्णु का रूप माना जाता है, इसलिए नवरात्रि से पहले घटस्थापना या कलश स्थापना की जाती है। कलश स्थापना अगर शुभ मुहूर्त में की जाए तो इसका विशेष फल मिलता है.
कलश स्थापना से पहले घर के मंदिर को अच्छी तरह से साफ कर लें. इसके बाद पूजा के स्थान पर लाल कपड़ा बिछाएं. कलश के लिए वैसे तो मिट्टी का कलश सबसे शुभ होता है लेकिन अगर वो नहीं है तो तांबे का कलश भी चलेगा. इसे लगातार 9 दिनों तक एक ही स्थान पर रखा जाता है. कलश में गंगा जल या स्वच्छ जल भर दें. अब इस जल में सुपारी, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत और सिक्का डालें. इसके बाद कलश के किनारों पर अशोक या आम के पत्ते रखें और कलश को ढक्कन से ढक दें. एक नारियल पर लाल कपड़ा या चुन्नी लपेट दें. अब नारियल और चुन्नी को रक्षा सूत्र या मोली से बांधें. इसे तैयार करने के बाद चौकी या जमीन पर जौ वाला पात्र (जिसमें आप जौ बो रहे हैं) रखें. अब जौ वाले पात्र के ऊपर मिटटी का कलश और फिर कलश के ढक्कन पर नारियल रखें.
उसके बाद आप विधि विधान से पाठ- पूजा उपासना करें, माता का ध्यान स्मरण करें व मंत्र जप करें, माता के प्रसाद का भोग लगाएं और माता की आरती करें।
चैत्र नवरात्रि का महत्व
चैत्र नवरात्रि हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है भक्त इस दौरान ब्रह्मांडीय शक्ति की देवी मां शक्ति की पूजा करते हैं और देवी से दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं उपवास और प्रार्थना नवरात्रि समारोह को चिह्नित करते हैं देवी शक्ति स्वयं को देवी लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा के रूप में तीन अलग-अलग आयामों में प्रकट करती हैं सर्वोच्च देवी या देवियों के तीन अलग-अलग पहलुओं की पूजा करने के लिए नवरात्रि को तीन दिनों के सेट में बांटा गया है.
पहले तीन दिन दुर्गा या ऊर्जा की देवी की पूजा की जाती है अगले तीन दिन लक्ष्मी या धन की देवी और आखिरी तीन दिन सरस्वती या ज्ञान की देवी को समर्पित हैं आठवें और नौवें दिन, दुर्गा माता का सम्मान करने और उन्हें विदाई देने के लिए यज्ञ (अग्नि को दी जाने वाली आहुति) किया जाता है इन दिनों कन्या पूजन किया जाता है देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करने वाली नौ युवा लड़कियों (जो यौवन अवस्था में नहीं पहुंची हैं) की पूजा की जाती है कुछ क्षेत्रों में एक युवा लड़का भी उनके साथ जाता है जो भैरव का प्रतीक है, जिसे सभी बुराइयों से बचाने वाला माना जाता है जो बिना किसी अपेक्षा या इच्छा के देवी की पूजा करते हैं, वे सभी बंधनों से परम मुक्ति के रूप में उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
नवरात्रि, आत्मनिरीक्षण और शुद्धि की अवधि होने के अलावा, नए उद्यम शुरू करने के लिए एक शुभ समय भी माना जाता है।
पहला दिन
पहला दिन देवी दुर्गा को समर्पित होता है जिसे हिमालय की पुत्री शैलपुत्री कहा जाता है वह शक्ति का एक रूप है, जो भगवान शिव की साथी है.
दूसरा दिन
दूसरा दिन देवी दुर्गा को समर्पित होता है जिसे ‘ब्रह्मचारिणी’ के नाम से जाना जाता है। नाम ‘ब्रह्मा’ शब्द से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ है ‘तप’ या तपस्या। वह भी माता शक्ति का ही एक रूप हैं.
तीसरा दिन
तीसरा दिन देवी चंद्रघंटा को समर्पित है, जो सुंदरता और बहादुरी का प्रतीक है.
चौथा दिन
चौथा दिन संपूर्ण ब्रह्मांड की निर्माता देवी कुष्मांडा को समर्पित है.
पाँचवाँ दिन
पाँचवाँ दिन देवी स्कंद माता को समर्पित है, जो देव सेना के प्रमुख योद्धा स्कंद की माँ हैं.
छठा दिन
छठा दिन तीन आंखों और चार हाथों वाली देवी कात्यायनी को समर्पित है.
सातवाँ दिन
सातवाँ दिन देवी ‘कालरात्रि’ को समर्पित है, जिसका अर्थ भक्तों को निर्भय बनाना है.
आठवां दिन
आठ दिन माता रानी या ‘महा गौरी’ को समर्पित है, शांति का प्रतिनिधित्व करता है और ज्ञान प्रदर्शित करता है.
नौवां दिन
नौवां दिन दुर्गा को समर्पित होता है जिसे सिद्धिदात्री भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि उनके पास सभी आठ सिद्धियाँ हैं और सभी ऋषियों और योगियों द्वारा उनकी पूजा की जाती है।