रायपुर । छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग ने मापदंडों काे पूरा नहीं करने वालों निजी स्कूलों को रेवड़ियों की तरह मान्यता बांटी रही है। हालात ऐसे हैं कि स्कूलों के पास न तो खुद का भवन है और न ही खेल का मैदान। इसके बावजूद इन्हें शिक्षा विभाग द्वारा धड़ल्ले से मान्यता दी जा रही है। इतना ही नहीं, मान्यता देने के बाद इनका नवीनीकरण भी किया जा रहा है। जबकि नियमानुसार निजी स्कूलों को अस्थायी तौर पर तीन वर्ष के लिए मान्यता दी जाती है।
साथ ही उक्त अवधि के भीतर ही अधूरे मापदंडों को पूरा करना निजी स्कूलाें की जिम्मेदारी होती है लेकिन इसके बावजूद राजधानी में ही कई ऐसे स्कूल संचालित हो रहे हैं, जिनके पास खुद का भवन तक नहीं है। वे किराए के भवनों में संचालित हो रहे हैं और उनके पास खेल के लिए मैदान तक नहीं है। फिर भी उन स्कूलों काे हर तीन वर्ष में मान्यता नवीनीकरण कर के जारी की जा रही है।
इसकी वजह से बच्चों काे स्कूलों में पर्याप्त सुविधाएं व संसाधन नहीं मिल रहे हैं।जांच भी कागजों तक ही रह जाती है सीमितस्कूलों द्वारा मान्यता के लिए आवेदन के दौरान सारी जानकारियां आनलाइन भरना होता है, इसके बाद उन्हें सशर्त मान्यता जारी की जाती है। वहीं, इसके बाद नवीनीकरण के लिए आवेदन करने के बाद जिला शिक्षा कार्यालय द्वारा उनकी जांच तक नहीं की जाती है और बिना निरीक्षण व मापदंड पूरा किए ही मान्यता रिन्यू कर दी जाती है।
शासकीय स्कूलों में भी हालात बदतरनिजी स्कूलों के अलावा शासकीय स्कूलों में भी हालात बदतर हैं। लगभग 30 प्रतिशत से ज्यादा स्कूलों में खेल का मैदान तक नहीं है। वहीं, जिसमें बढ़ईपारा, खोखाे पारा सहित कई स्कूल शामिल हैं। इसके अलावा कई स्कूलों में तो स्कूल के मैदानों पर ही अतिक्रमण कर लिया जा रहा है। जिसकी वजह से बच्चों को सुविधाएं नहीं मिल रही हैं।जिले में 855 से ज्यादा निजी स्कूलजिले में 855 निजी स्कूलों का संचालन किया जा रहा है।
जिनमें से आधे स्कूलों के पास खुद का भवन ही नहीं है। वहीं, शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत बनाए गए मापदंडों का पालन भी नहीं किया जा रहा है। ऐसे में नियमों के उल्लंघन से सीधे तौर पर छात्रों का ही नुकसान हो रहा है।स्कूलों में खेल का पीरियड ही नहींस्कूलों में अध्यापन कार्य करवाने के साथ ही खेल के लिए भी अलग से पीरियड लगाना अनिवार्य किया गया है।
इसके लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी निर्देशित किया गया है, लेकिन फिर भी ज्यादातर स्कूलों में खेल के लिए अलग से पीरियड तक नहीं लगाया जाता है। फिर वो चाहे सरकारी स्कूल हों या फिर निजी। सभी जगह यही हाल है।
रायपुर डीईओ आरएल ठाकुर के मुताबिक मान्यता देने से पहले जांच की जाती है। मापदंड पूरे नहीं होने पर अगली बार इसे पूरा करने का मौका दिया जाता है। कितने स्कूलों में खेल मैदान नहीं है, इसकी सूची मंगवाई जा रही है। इसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।
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