महासमुंद. रंगों का पर्व होली पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है. रंगों के इस पर्व पर छतीसगढ़ के महासमुंद जिले के तीन गांव हमेशा की तरह आज भी बेरंग हैं. सरायपाली ब्लॉक में कई ऐसे भी गांव हैं, जहां न तो होली खेली जाती है और ना ही होलिका दहन किया जाता है. सरायपाली ब्लॉक के सहजपानी, सरगुनाभांठा, बम्हनीद्वार, गौरबहाली, पतेरापाली में कई वर्षों से होली नहीं खेली जाती और नहीं होलिका दहन किया जाता है.
होली पर्व के दिन गांव में सन्नाटा छाया रहता है. ब्लॉक के अंतिम छोर में बसे ग्राम पंचायत पतेरापाली के आश्रित ग्राम सहजपानी के ग्रामीण सुरेंद्र प्रधान ने बताया कि उनके दादा-परदादा के समय से उनके गांव में होली नहीं खेली जाती और न ही होलिका दहन किया जाता है. सहजपानी के अलावा उनके ही पंचायत के पतेरापाली, बम्हनीद्वार, गौरबहाली, सरगुनाभाठा में भी होली नहीं खेली जाती है. उनके पंचायत के एकमात्र ग्राम समदरहा में होली खेली जाती है.
गांव के मनीराम यादव ने बताया कि घर-घर पूजा के लिए गुलाल का उपयोग किया जाता है. जिसे तिलक के रूप में लगाते हैं, लेकिन गांव में ना तो होली खेली जाती है और नहीं होलिका दहन होता है.
तीन पीढ़ी को पता नहीं क्यों नहीं मानते होली
ग्रामीण बताते हैं कि होलिका दहन के दिन कुछ घटना घटी होगी, जिसकी जानकारी 3 पीढ़ी के लोगों को भी नहीं है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि लगभग डेढ़ सौ वर्षों से गांव में होली नहीं खेली जा रही है. ग्रामीणों ने कहा कि अगर वह किसी कार्य से बाहर या अन्य गांव जाते हैं तो उनके ऊपर पिचकारी मारी जाती है और गुलाल भी लगाया जाता है, लेकिन गांव में होली पर्व के दिन सन्नाटा छाया रहता है. गांव से बाहर रखकर नौकरी, पेशा करने वाले लोग होली पर गांव नहीं जाते, क्योंकि गांव में होली नहीं खेली जाती. वे अन्य त्योहारों में गांव तो जरूर पहुंचते हैं लेकिन एकमात्र होली यह एक ऐसा त्योहार है, जिसे गांव में नहीं मनाया जाता.
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