मुंबई,24 फरवरी । Selfiee Movie Review: सेल्फी वर्ष 2019 में रिलीज मलयालम फिल्म ड्राइविंग लाइसेंस की रीमेक है। मूल फिल्म देख चुके दर्शक सही-सही बता सकेगे कि हिंदी संस्करण् में क्या छूटा है या क्या जोड़ा गया है? हिंदी में बनी यह फिल्म खुद में मुकम्मल है। तो चलिए जानते हैं कि कैसी है अक्षय कुमार की सेल्फी…
ये है कहानी
कहानी सुपरस्टार विजय कुमार (अक्षय कुमार) और उनके प्रशंसक ओम प्रकाश अग्रवाल (इमरान हाशमी) की है। विजय कुमार अपनी फिल्म की शूटिंग के लिए भोपाल आता है। क्लामेक्स की शूटिंग की अनुमति के लिए उसे ड्राइविंग लाइसेंस चाहिए होता है। वहां की कारपोरेटर विमला (मेघना मलिक) भी अभिनेता की प्रशंसक होती है। विजय उनसे ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने में मदद मांगता है। आरटीओ सब इंस्पेक्टर ओम प्रकाश चाहता है कि विजय उसके आफिस आए ताकि वो अपने बेटे के साथ सेल्फी ले सके।
ड्राइविंग लाइसेंस से शुरू हुआ किस्सा
ड्राइविंग का शौकीन विजय ड्राइविंग लाइसेंस के लिए सुबह खुद गाड़ी चलाकर आरटीओ आफिस पहुंचता है। वहां बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी मौजूद होते हैं। वे विजय से सवाल पूछने लगता है कि वह बिना ड्राइविंग लाइसेंस के गाड़ी चलाकर आया है। गलतफहमी के चलते विजय का गुस्सा ओम प्रकाश पर फूट पड़ता है। वह ओम प्रकाश की उसके सीनियर्स और बेटे के सामने बेइज्जती कर देता है।
इमरान हाशमी को चाहिए अक्षय की सेल्फी
ओम प्रकाश तय कर लेता है कि बिना टेस्ट दिए विजय को लाइसेंस नहीं मिलेगा। उधर विजय का प्रतिद्वंद्वी कलाकार सूरज कुमार (अभिमन्यु सिंह) इस बात से परेशान है कि विजय की फिल्में हिट हो रही। उसका करियर गर्त में जा रहा है। वह चाहता है कि दीवाली पर उसे सोलो रिलीज मिले। क्या विजय लाइसेंस टेस्ट पास कर पाएगा? सूरज किस प्रकार से विजय और ओम की आपसी अहंकार की लड़ाई का फायदा उठाता है। इसी रस्साकशी पर कहानी आगे बढ़ती है।
बायकॉट के मुद्दे को भी छूआ
सेल्फी इस साल रिलीज होने वाली अक्षय कुमार की पहली फिल्म है। फिल्मी सितारे हमेशा कहते हैं कि उनका स्टारडम उनके प्रशंसकों की वजह से है। फिल्म की शुरुआत में अक्षय इस फिल्म को प्रशंसकों को ही समर्पित करते हैं। राज मेहता निर्देशित इस फिल्म में अस्थायी लोकप्रियता, इंटरनेट मीडिया के जमाने में इसका अर्थ और असली स्टारडम की महत्ता, मीडिया में छाने की कीमत, सितारों को अहंकार के चलते होने वाले नुकसान जैसे पहलुओं को भी कहानी में पियोरा गया है। बायकाटबालीवुड जैसे हैशटैग से निर्माता और कलाकारों को होने वाली दिक्कतों का संक्षिप्त में जिक्र है। खुद को निर्माता का एक्टर कहने वाले विजय की वजह से फिल्म का बजट काफी बढ़ चुका है।
मीडिया कैसे मचाता है सनसनी
फिल्म को पूरी कराने के लिए निर्माता की दिक्कत को निर्देशक ने हल्के फुल्के अंदाज में दशार्या है। हालांकि फिल्म में सूरज की विजय की सफलता से जलन बेमेल है। सूरज की फिल्में सी ग्रेड की लगती है जबकि विजय सुपरस्टार है। फिल्म में विजय और ओम की टक्कर जैसे-जैसे आगे बढ़ती है यह दिलचस्पी जगाती है। हालांकि उसे थोड़ा और दमदार बनाने की गुंजाइश थी। सुपरस्टार के पास ड्राइविंग लाइसेंस न होने के मुद्दे को इलेक्ट्रानिक मीडिया कैसे उछालता है? उसे कितनी सनसनीखेज खबर बनाता है उस पहलू को राज मेहता ने बहुत अच्छे से दर्शाया है।
ज्यादा नहीं है डायना का रोल
रील और रियल लाइफ में अक्षय कुमार सुपरस्टार हैं। ऐसे में पर्दे पर सुपरस्टार दिखने के लिए उन्हें किसी प्रकार की मशक्कत नहीं करनी पड़ी। वह अपने किरदार में बेहद सहज नजर आते हैं। 55 साल की उम्र में उनकी फुर्ती देखते ही बनती हैं। कामेडी में वह बेजोड़ हैं। वहीं प्रशंसक और आरटीओ सब इंस्पेक्टर की भूमिका में इमरान का काम उल्लेखनीय है। नुसरत भरुचा कामेडी करती हुई जंची हैं। डायना पेंटी के हिस्से में कुछ खास नहीं आया है। अभिमन्यु सिंह, मेघना मलिक, महेश ठाकुर और पारितोष त्रिपाठी सेल्फी के अहम किरदार हैं।
अगर दिमाग न लगाएं तो फिल्म एंटरटेनिंग हैं
छोटी और सहयोगी भूमिका में आए इन कलाकारों ने अपनी भूमिकाओं से फिल्म को संवारा और प्रभावशाली बनाया है। सभी की संक्षिप्त भूमिकाएं हैं, लेकिन वे अपने दृश्यों में रमे हैं। खास कर अभिमन्यु सिंह और मेघना मलिक अपने सीन में छाप छोड़ते हैं। नुसरत के किरदार को कुछ और सीन मिलते तो वह और निखरतीं। अक्षय कुमार की ही 1994 में प्रदर्शित फिल्म मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी के गाने मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी के रीमिक्स को प्रमोशनल गाने के तौर पर इस्तेमाल किया गया है। अगर दिमाग न लगाएं तो फिल्म एंटरटेनिंग हैं।
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