साहित्य-संस्कृति को आगे ले जाने की जरूरत : CM शिंदे

वर्धा ,04 फरवरी  महात्मा गांधी और विनोबा भावे की कर्मभूमि वर्धा में आयोजित 96वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन के उद्घाटन समारोह मैं संबोधित करते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि वर्धा नगरी साहित्य की पंढरी बन गई है। मराठी भाषा चमत्कार की भाषा है। मराठी में सांस्कृतिक विरासत के चलते यह विश्व भर में बोली जाती है ।हमें साहित्य, संस्कृति और परंपरा को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।

उन्होंने मराठी के जाने-माने साहित्यकार और कवियों का जिक्र करते हुए मराठी भाषा में उनके योगदान के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। मराठी भाषा एवं शालेय शिक्षण मंत्री दीपक केसरकर ने कहा कि साहित्य का दीप निरंतर जलाए रखने का काम करना है। वर्धा सामाजिक क्रांति की भूमि रही है, हमें इस भूमि से मराठी का बिगुल सर्वत्र बजाना चाहिए। केसरकर ने मराठी के संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, रामदास तथा साने गुरुजी, सावरकर, महात्मा ज्योतिबा फुले आदि का उल्लेख करते हुए मराठी भाषा में उनके योगदानों की चर्चा की।

हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास ने कहा कि साहित्य का काम है कि वह राजनीति को दिशा दिलाए। राजनीति जब जब लड़खड़ायी है तब-तब साहित्य ने मोर्चा संभाला है। उन्होंने एक प्रसंग पर प्रकाश डाला कि स्वातंत्र्य भारत में 1952 में लाल किले पर कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। मंच पर चढते समय पंडित नेहरू जी का पैर लड़खड़ा गया, तो पीछे से दिनकर जी ने हाथ का सहारा देकर बचा लिया था। उन्होंने कहा कि भारत का लोकतंत्र जब-जब अहंकार में डूबा है, वीर शिवाजी के जयकारों ने दिशा दी है l

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हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार पद्मश्री विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि भाषा का काम है मनुष्य को पशु से अलग करना। भाषा की शक्ति मनुष्य के सिवाय और किसी में नहीं है। मैं अभिभूत हूं कि मराठी साहित्य सम्मेलन के द्वारा भाषा की गरिमा का रक्षण करना चाहते हैं, आदर करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि रामायण और महाभारत ने पूरे देश को एकता के सूत्र में बांधा है। मराठी भाषा के संत एकनाथ, तुकाराम, गाडगे बाबा, ज्ञानेश्वर जैसे संतों ने हिंदी भाषा में बड़ा योगदान किया है।

भाषा की महत्ता को उल्लेखित करते हुए उन्होंने कहा कि लेखक का भाषा के साथ गहरा रिश्ता होता है। भाषा नहीं होती तो दुनिया का कोई भी आविष्कार संभव नहीं होता। इस पूरी सृष्टि में शब्द ही एक ऐसी रचना है, जिसने सारे अंधकार को तो तोड़कर चारों ओर उजाला फैलाया है। सम्मेलन के कार्याध्यक्ष प्रफुल्ल दाते ने कहा कि ऐतिहासिक भूमि वर्धा में 53वर्षों के बाद अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन हो रहा है। वर्धा कई साहित्यकारों, कला एवं संस्कृति कर्मियों की भूमि है। सम्मेलन में आप सभी साहित्य प्रेमी सहभागिता कर रहे हैं, हमारा प्रयास है कि यह सम्मेलन न केवल यशस्वी हो अपितु चिरस्मरणीय भी हो।

सम्मेलन के अध्यक्ष न्या. नरेंद्र चपळगावकर कहा कि साहित्य को राजनीति से दूर रहना चाहिए। हम सभी लेखक, वाचक और प्रकाशक स्वाधीन होने का प्रयास करें। हम लिखने की, पढ़ने की और प्रकाशित करने की स्वतंत्रता यहां बनाए रखेंगे। हम भाषा और सांस्कृतिक जीवन को समृद्ध करने का प्रयास करेंगे। इस अवसर पर सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष भारत सासणे ने भी संबोधित किया।

स्वागताध्यक्ष पूर्व सांसद दत्ता मेघे ने कहा कि आज आप सब साहित्य प्रेमी यहां आए हैं। इस क्षेत्र में तीन दिनों तक वैचारिक मंथन होगा। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, हम इन दो महान संतों की भूमि से नए विचारों, सार्वभौमिक उत्थान के विचारों को ले जाने की आशा करते हैं, जिन्होंने ‘सब को सन्मति दे भगवान’ और ‘जय जगत’ का नारा लगाया था। हम आशा करते हैं कि यह अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन फलदायी होगा आप सभी का स्वागत है।

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इस अवसर पर पूर्व राज्यमंत्री व भारती विद्यापीठ के कार्यवाह विधायक डॉ विश्वजीत कदम, डॉ डी वाई पाटिल डीम्ड यूनिवर्सिटी, पुणे के कुलपति डॉ पी डी पाटिल, विधायक डॉ. पंकज भोयर, सागर मेघे, नरेंद्र भोंडेकर, डॉ गिरीश गांधी,  कार्यवाह प्रदीप दाते, जिल्हाधिकारी राहुल कार्डिले, उषा तांबे, रमेश वंसकर, डॉ उज्ज्वला मेहेंदले, प्रकाश पागे, महेश मोकलकर,  रवींद्र शोभणे, विलास मानेकर, डॉ अभ्युदय मेघे, नरेंद्र पाठक, डॉ राजेंद्र मूंढे, विकास लिमये, डॉ विलास देशमुख, संजय इंगले तिगांवकर, आकाश दाते सहित देश-विदेश से आए हजारों मराठी साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे। सम्मेलन की शुरुवात रवींद्र शोभने के सम्मेलन गीत, अभियान गीत तथा दीप प्रज्वलित कर की गई। अतिथियों का स्वागत शाल, सूतमाला, प्रतीक चिह्न के रूप में चरखा ओर पुस्तकें प्रदान कर किया गया।

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