गोरखपुर में पूजा अर्चना के बाद अयोध्या के लिए रवाना हुई देवशिलाएं…

अयोध्या ,01 फरवरी  नेपाल के काली गंडकी नदी से प्राप्त छह करोड़ वर्ष पुराने शालीग्राम शिलाएं बुधवार को गोरखपुर पहुंचीं। शालीग्राम पत्थर की दो देवशिलाओं का अयोध्या पहुंचने से पहले गोरखपुर में भव्य स्वागत हुआ। नेपाल से चलकर गोरखपुर पहुंची शालिग्राम शिलाएं बुधवार सुबह अयोध्या के लिए रवाना हो गई। अयोध्या जा रही शालीग्राम शिलाएं देर रात गोरखपुर पहुंची थीं।  पूजन दर्शन हेतु हजारों की संख्या में उपस्थित जन सैलाब में उमड़े उत्साह के आगे व्यवस्था बनाने के लिए प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। गोरखपुर जिले में शिला का प्रवेश रात करीब 11 बजे हुआ। कुसम्ही होकर शहर में आए शिला की पूजा और उसके स्वागत के लिए श्रद्धालुओं की लंबी भीड़ हाईवे के किनारे खड़ी रही। नंदानगर, मोहद्दीपुर, विश्वविद्यालय चौराहे पर शिलाओं का भव्य स्वागत किया गया।

गोरखनाथ मंदिर पहुंची शिला का मंदिर के मुख्य पुजारी कमलनाथ के नेतृत्व मे संतों ने भी पुष्प वर्षा कर आरती पूजन किया। इसके पूर्व गोरक्ष प्रांत के संगठन मंत्री परमेश्वर व प्रांत सह मंत्री सगुण श्रीवास्तव व प्रांत संपर्क प्रमुख डॉक्टर डीके सिंह के नेतृत्व में हजारों श्रद्धालुओं ने शिला का प्रांत में प्रवेश पर पूजन वंदन किया। वहीं गोरक्षनाथ मंदिर में रात्रि विश्राम के बाद सुबह आठ बजे संतों द्वारा पूजन अर्चन के बाद अयोध्या के लिए प्रस्थान कर गई। इससे पहले नेपाल के पूर्व गृहमंत्री तथा उप प्रधानमंत्री विमलेंद्र निधि ने पत्नी अनामिका के साथ शिला का भव्य पूजन अर्चन किया। शिला सहजनवां, संतकबीरनगर व बस्ती होते हुए शाम तक अयोध्या धाम पहुंचेगी।

नेपाल से लाया गया है दोनों पत्थर
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय ने बताया कि आध्यात्मिक महत्व रखने वाले और सदियों पुराने माने जाने वाले शिलाखंड राम कथा कुंज पहुंचेंगे जहां उन्हें भक्तों द्वारा पूजा के लिए खोला जाएगा। उन्होंने कहा कि नेपाल में काली गंडकी नाम का एक झरना है। यह दामोदर कुंड से निकलती है और गणेश्वर धाम गंडकी से लगभग 85 किमी उत्तर में है। ये दोनों पत्थर वहीं से लाए गए हैं। यह स्थान समुद्र तल से 6,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। लोग कहते हैं कि यह करोड़ों साल पुराना है। दोनों पत्थरों का वजन लगभग 30 टन है। उन्होंने बताया कि गोरखपुर में श्रद्धालुओं द्वारा पूजा किए जाने के बाद दोनों शिलाखंडों को दो फरवरी को अयोध्या मंदिर को सौंप दिया जाएगा।

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शिलाखंड रखने वाले स्थान की हो रही है सफाई
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव राय के मुताबिक, जिस जगह पत्थर रखे जाएंगे उसकी सफाई की जा रही है। उन्होंने आगे कहा कि मुझे शिलाखंडों के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की जानकारी नहीं है। मैंने सुना है कि गंडकी के पत्थर को शालिग्राम कहा जाता है, जिसे भगवान विष्णु का रूप माना जाता है। काली गंडकी जब नेपाल से बिहार आती है तो उसे नारायणी कहते हैं।