समुद्र में दुश्मनों के लिए खतरा बनेगी ‘सैंड शार्क’, नौसैना में शामिल हुई INS वागीर…

नई दिल्ली ,23 जनवरी  भारतीय नौसेना के बड़े में सोमवार को कलवरी श्रेणी की पनडुब्बी INS Vagir शामिल हुई। मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड द्वारा निर्मित आईएनएस वागीर को नौसेनाध्यक्ष एडमिरल आर हरि कुमार की उपस्थिति में कमीशन किया गया है। नौसेना के अनुसार यह पनडुब्बी भारतीय सेना की क्षमता को बढ़ावा देने का काम करेगी और दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देगी। यह खुफिया, निगरानी और टोही (आईएसआर) पर काम करती है।

‘वागीर’ का अर्थ सैंड शार्क है, जो किसी को भनक दिए बिना चुपके और निडरता से काम करती है। नौसेना ने कहा कि दुनिया के बेहतरीन सेंसर से लैस, इसके हथियार पैकेज में पर्याप्त वायर गाइडेड टॉरपीडो और सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलें शामिल हैं, जो दुश्मन के बड़े बेड़े तक को मात दे सकती है। नौसेना ने कहा कि पनडुब्बी में विशेष अभियानों के लिए समुद्री कमांडो को लॉन्च करने की क्षमता भी है, जबकि इसके शक्तिशाली डीजल इंजन गुप्त मिशन के लिए बैटरी को जल्दी से चार्ज कर सकते हैं। नौसेना ने बताया कि आत्मरक्षा के लिए इसमें अत्याधुनिक टारपीडो डिकॉय सिस्टम है। हिंद महासागर में चीनी नौसेना की बढ़ती उपस्थिति के बीच आईएनएस वगीर को शामिल किया गया है।

आईएनएस वागीर कलवारी क्लास की पांचवी पनडुब्बी है और इसमें कई बड़ी मिसाइल रखी जा सकती है। इसका रडार सिस्टम दुनिया से सबसे बेहतरीन में से एक है और इसकी स्पीड भी अच्छी मानी गई है। 67 मीटर लंबी डीजल इलेक्ट्रिक क्लास की सबमरीन आईएनएस वागीर समुद्र में 37 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से चल सकती है। यह सबमरीन समुद्र की सतह पर एक बार में 12 हजार किलोमीटर का सफर तय कर सकती है तो समुद्र के भीतर यह एक बार में एक हजार किलोमीटर की दूरी तय सकती है। आईएनएस वागीर समुद्र में अधिकतर 350 मीटर की गहराई तक जा सकती है और लगातार 50 दिन तक समुद्र के भीतर रह सकती है।

आईएनएस वागीर की खास बात ये है कि यह बेहद खामोशी से अपने मिशन को अंजाम देती है, यही वजह है कि इसे साइलेंट किलर कहा जा रहा है। यह सबमरीन स्टील्थ तकनीक से लैस है, जिसके चलते रडार भी आसानी से इसे नहीं पकड़ पाते। इस सबमरीन में 533 एमएम के 8 टारपीडो ट्यूब हैं, जिनमें मिसाइलें लोड की जा सकती हैं। यह सबमरीन समुद्र में बारूदी सुरंग बिछाने का भी काम कर सकती है, जिसकी वजह से यह दुश्मन को काफी नुकसान पहुंचा सकती है। इसकी खूबियों को देखते हुए इसे सैंड शार्क का नाम दिया गया है।