Makar Sankranti 2023 : मकर संक्रांति मनाने के पीछे का रहस्य, क्यों कहा जाता है इसे दान पर्व का त्यौहार, और भीष्म पितामाह ने क्यों चुना था देह त्याग के लिए आज का दिन…

नई दिल्ली : 14 जनवरी I हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का बहुत खास महत्व होता है. इस खास पर्व पर महिलाएं सज-संवर कर पूजा-पाठ करती हैं. नई दुल्हनों के लिए भी ये पर्व बहुत स्पेशल होता है. संक्रांति के लिए कई दिनों पहले से तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं. ससुराल में बेटियों के लिए कपड़े, तिल-गुड़ आदि भेजे जाते हैं. इस दिन तिल और खिचड़ी की सामग्री भी दान की जाती है. कई लोग इसे खिचड़ी के पर्व के नाम से भी जानते हैं.

भीष्म पितामाह ने चुना था देह त्याग के लिए मकर संक्रांति का दिन

मान्यता है कि इस अवसर पर दिया गया दान 100 गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कंबल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।

मकर संक्रांति पौराणिक कथा

श्रीमद्भागवत एवं देवी पुराण के मुताबिक, शनि महाराज का अपने पिता से वैर भाव था क्योंकि सूर्य देव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद-भाव करते देख लिया था, इस बात से नाराज होकर सूर्य देव ने संज्ञा और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था इससे शनि और छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया था।

मकर संक्रांति दान और स्‍नान का विशेष महत्‍व

शास्‍त्रों में मकर संक्रांति के दिन स्‍नान, ध्‍यान और दान का विशेष महत्‍व बताया गया है। पुराणों में मकर संक्रांति को देवताओं का दिन बताया गया है। मान्‍यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर वापस लौटता है

मकर संक्रांति और यमराज की तपस्या

पिता सूर्यदेव को कुष्ट रोग से पीड़ित देखकर यमराज काफी दुखी हुए। यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवाने के लिए तपस्या की। लेकिन सूर्य ने क्रोधित होकर शनि महाराज के घर कुंभ जिसे शनि की राशि कहा जाता है उसे जला दिया। इससे शनि और उनकी माता छाया को कष्ठ भोगना पड़ रहा था। यमराज ने अपनी सौतली माता और भाई शनि को कष्ट में देखकर उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य को काफी समझाया। तब जाकर सूर्य देव शनि के घर कुंभ में पहुंचे