जम्मू,09 जनवरी । सीमा सुरक्षा बल ने जम्मू-क्षेत्र में भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पहली बार रडार ड्रोन तैनात किए हैं। इनसे आतंकवादियों द्वारा घुसपैठ में इस्तेमाल की जाने वाली सुरंगों की मौजूदगी का पता लगाया जा सकेगा। अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी। हाल ही में सुरक्षा बलों के द्वारा सुरंग का पता लगाने का अभ्यास किया गया। इसके तहत स्वदेश निर्मित तकनीकी उपकरण का इस्तेमाल किया गया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी आतंकवादी भारतीय क्षेत्र में घुसने में सक्षम न हो। इन सुरंगों का इस्तेमाल मादक पदार्थों, हथियारों, गोला-बारूद की तस्करी आदि के लिए भी किया जाता है। बीएसएफ ने पिछले तीन साल में भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर जम्मू मोर्चे के करीब 192 किलोमीटर में कम से कम पांच सुरंगों का पता लगाया है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, दो ऐसी सीमा-पार सुरंगों का पता 2020 और 2021 में लगाया गया था, जबकि 2022 में भी एक सुरंग मिली थी। ये सभी जम्मू के इंद्रेश्वर नगर सेक्टर में पाई गई थीं।
बीएसएफ के एक अधिकारी ने कहा, बल ने जम्मू मोर्चे पर सुरंगों का आए दिन पता चलने के मद्देनजर खतरे का मुकाबला करने के लिए एक स्मार्ट तकनीकी उपकरण खरीदा है। पाकिस्तान से भारत में घुसपैठ करने के लिए आतंकियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली इन गुप्त संरचनाओं की जांच के लिए क्षेत्र में एक से अधिक रडार युक्त ड्रोन तैनात किए गए हैं। यहां कार्यरत अधिकारियों ने कहा, भारतीय निर्माता द्वारा विकसित किए गए रडार तैनात किए जा रहे हैं। ये सुरंगों की मौजूदगी का पता लगाने तथा उनकी लंबाई को मापने के लिए मजबूत रेडियों तरंगों का प्रयोग करते हैं। अधिकारियों ने बताया कि रडार के विशिष्ट विवरण का खुलासा नहीं किया जा सकता है, लेकिन नए उपकरण सुरंग का पता लगाने में सैनिकों की काफी मदद मिलेगी। इसकी प्रभावशीलता का अभी अध्ययन किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि इस मोर्चे पर ऐसे इलाकों तक बेहतर पहुंच प्रदान करने के लिए ड्रोन पर रडार लगाए गए हैं, जहां तक जमीनी टीम का पहुंचना मुश्किल है। आमतौर पर छिपी सुरंगों की निगरानी सीमा बाड़ से करीब चार सौ मीटर दूर तक की जाती है। ड्रोन को बीएसएफ की सुरंग रोधी निगरानी दल द्वारा दूर से नियंत्रित किया जाता है। हाथ से इस्तेमाल होने वाले उपकरणों के साथ फ्लाइंग रडार की भी मदद ली जाती है। एक अधिकारी ने बताया, एक समस्या जो इन रडार के सामने आती है, वह धूल की मात्रा है जो ड्रोन के उड़ने के कारण उत्पन्न होती है और वे नीचे जमीन को स्कैन करने के लिए रडार से निकलने वाली रेडियो तरंगों से टकराते हैं। यह एख शुरुआत है। नए उपकरणों को भी सटीक बनाया जाना है।
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