हिंदी विश्‍वविद्यालय में दिनभर चलता रहा मेधोमन्थन कार्यक्रम

वर्धा ,07 जनवरी  महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के 26वें स्थापनोत्सव  पर  7 जनवरी को मेधोमन्थन सत्रों में विश्‍वविद्यालय के विभिन्‍न विद्यापीठों और विभागों ने उपलब्धियों को गिनाते हुए आगामी वर्षों में अपनी-अपनी योजनाओं का ब्‍यौरा प्रस्‍तुत किया। कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल की संकल्‍पना के तहत शनिवार को सभी विद्यापीठों और विभागों ने  प्रात: 10 से सायं 5 बजे के दौरान महादेवी वर्मा सभागार, गालिब सभागार, माधवराव सप्रे सभागार एवं कस्तूरबा सभागार में मेधोमन्थन कार्यक्रम के अंतर्गत विभाग की स्थापना के मूल लक्ष्य, वर्तमान में लक्ष्य प्राप्ति की स्थिति, लक्ष्य प्राप्ति में आयी बाधाएँ, विगत 25 वर्षों में संकाय सदस्यों तथा शोधार्थियों के प्रकाशन की स्थिति, पेटेन्ट एवं कॉपीराइट के क्षेत्र में योगदान, सामाजिक उत्तरदायित्व के क्षेत्र में योगदान, महत्वपूर्ण शोध परियोजनाएँ तथा आगामी वर्षों में विभाग एवं विद्यापीठों की योजनाएँ आदि महत्‍वपूर्ण विषयों पर मेधोमन्‍थन किया गया।

मेधोमन्‍थन कार्यक्रम के दौरान कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने सहभागिता करते हुए महत्‍वपूर्ण सुझाव दिये कि किस प्रकार से हिंदी तकनीक और संचार प्रौद्योगिकी की भाषा बने। उन्‍होंने कहा कि युवा पीढ़ी के समक्ष आ रही चुनौतियों को ध्‍यान में रखते हुए ई-प्‍लेटफॉर्म का उपयोग किया जाना चाहिए। कृत्रिम बुद्धिमता जैसे नवाचारी  विषयों को  पाठ्यचर्या मे शामिल किया जाना चाहिए। उन्‍होंने अध्‍यापकों तथा शोधार्थियों को प्रेरित करते हुए विश्‍वविद्यालय को आगे बढ़ाने की दिशा में मिलकर काम करने की अपील की।

 कार्यक्रम में विश्‍वविद्यालय के अधिष्‍ठाता, विभागाध्‍यक्ष, अध्‍यापक तथा शोधार्थियों ने सहभागिता कर अपने सुझाव भी प्रस्‍तुत किए। मेधोमन्थन सत्रों में भाषा विद्यापीठ, साहित्य विद्यापीठ, संस्कृति विद्यापीठ, अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ, मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ, शिक्षा विद्यापीठ, प्रबंधन विद्यापीठ, विधि विद्यापीठ, दूर शिक्षा निदेशालय एवं वर्धा समाज कार्य संस्थान आदि ने सहभागिता की। इस कार्यक्रम में विश्‍व‍विद्यालय के क्षेत्रीय केंद्र प्रयागराज, कोलकाता और रिद्धपुर के अध्‍यापक एवं शोधार्थी ऑनलाइन सहभागी हुए। इस दौरान मेधोमन्थन के केंद्र में राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भी रही। प्रतिकुलपति द्वय प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्‍ल और  प्रो. चंद्रकांत रागीट सहित अधिष्‍ठाताओं ने प्रत्‍यक्षत: उपस्थित रहकर सत्रों का संचालन किया।

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