Raipur News : पुरानी बस्ती की दीवारों में ऐतिहासिक हस्तियों की तस्वीरें, गली को खूबसूरत पेंटिंग से किया कवर, देखिये…

रायपुर, 05 जनवरी । रायपुर शहर के सबसे पुराने मोहल्ले ‘पुरानी बस्ती’ को नया लुक दिया गया है। वह अब छत्तीसगढ़ का सबसे कलरफुल मोहल्ला बन चुका है। पुरानी बस्ती की ऐतिहासिक गलियां अब नए अंदाज में नजर आ रही है इनकी दीवारों पर देश की ऐतिहासिक हस्तियों की तस्वीरें हैं देवी देवताओं की छवियां हैं और कला संस्कृति को दिखाते आर्टवर्क सजे हुए हैं।

नीले हरे गुलाबी पीले सफेद चटक रंगों से पूरे मोहल्ले की गलियों को सजाया गया है। कहीं भगवान कृष्ण की लीला दिखती है तो कहीं विशाल हनुमान, कहीं राम और सीता स्नेह बंधन में बंधे नजर आते हैं तो कहीं दीवारों पर बना चित्र लोगों का ध्यान खींचता है।

जैतू साव मठ और इसके आसपास की गलियों तक जाने वाली सड़कों को नया रूप दिया गया है आसपास बने 200 से ज्यादा मकानों की दीवारों को खूबसूरत पेंटिंग से सजाया गया है। पुरानी बस्ती के सबसे ऐतिहासिक गलियों के लगभग 2 किलोमीटर के इलाके को पेंट की नए अंदाज में पेंट किया गया है।

पुराने जमाने में इन गलियों में स्वतंत्रता संग्राम की रणनीतियां तैयार की जाती थी । आसपास रहने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इन्हीं गलियों में आसपास जुटा करते थे और आजादी के आंदोलन की तैयारियां किया करते थे।

इस इलाके का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि जब महात्मा गांधी छत्तीसगढ़ दौरे पर आए थे तो इसी गली में उन्होंने जैतू साव मठ में सभा भी ली थी।

22 लाख रुपए आया खर्च

इस क्षेत्र के पार्षद और एमआईसी मेंबर जितेंद्र अग्रवाल ने दैनिक भास्कर को बताया कि पेंटिंग के काम में लगभग 22 लाख रुपए खर्च आए हैं । इस पूरे हेरिटेज इलाके को नई तरह से पर्यटन स्थल के स्वरूप में विकसित करने का काम किया जा रहा है । पेंटिंग के अलावा जगह-जगह पर बेंच भी लगाई गई हैं जहां खूबसूरत कलाकृतियों के पास बैठकर शाम बिताई जा सके।

इन सभी कलरफुल पेंटिंग के आसपास नए सिरे से लाइटिंग की जाएगी। लैंडस्कैपिंग की जाएगी पाथ वे भी बनाया जाना, प्रोजेक्ट में शामिल है लगभग 40000 वर्ग फीट इलाके में पेंटिंग की गई है । 2 किलोमीटर की गली को खूबसूरत पेंटिंग से कवर किया गया है।

महात्मा गांधी से जुड़ा है ऐतिहासिक महत्व

जब देश में आजादी की अलख महात्मा गांधी जगा रहे थे तो उस वक्त छुआछूत और जातिवाद भी एक बड़ी समस्या थी मंदिरों में दलितों को प्रवेश नहीं दिया जाता था। साल 1933 में रायपुर आने के दौरान महात्मा गांधी ने पुरानी बस्ती की इन्हीं गलियों में स्थित जैतू साव मठ में सभा ली।

मठ में हुई सभा में महात्मा गांधी ने लोगों को छुआछूत मिटाने और दलितों के साथ मिल जुलकर रहने प्रेरित किया। यहीं पास में स्थित है बावली वाले हनुमान। सालों पहले यहां एक कुंड से भगवान हनुमान की तीन मूर्तियां निकलीं थीं। यह मूर्तियां यहां के मंदिरों में स्थापित हैं।

स्थानीय निवासी और रिटायर शिक्षक डॉ रेवा राम यदु ने बताया कि सभा के बाद भीड़ के साथ महात्मा गांधी आगे बढ़े, हनुमान मंदिर में प्रवेश किया। यहां उन्होंने दलितों को भी प्रवेश दिलाया। तब से यह मान्यता खत्म हुई अब मंदिर के दरवाजे हर वर्ग के लिए खुले हैं।

यहीं नजदीक एक कुआं भी है। इस कुंए से किसी भी दलित को पानी लेने की इजाजत नहीं थी। जब महात्मा गांधी को यह पता चला तो वह इस कुएं की तरफ भी बढ़े। एक दलित बच्ची से उन्होंने पानी निकालने को कहा। बच्ची ने पानी निकाला और पास ही मौजूद लोगों से इस पानी के पीकर छुआछूत का भेद खत्म किया। माना जाता है इस तरह से देश के बहुत से हिस्सों में लोगों के बीच मौजूद जाति के भेदभाव को खत्म करने गांधी ने आंदोलन किए। इतिहासविद डॉ रमेंद्र नाथ मिश्र का मानना है कि इसकी शुरुआत यहीं से हुई।

जैतूसाव मठ का इतिहास वैसे तो 200 साल से भी ज्यादा पुराना है। इसे कोमा बाई साव ने बनवाया था। यहीं पर अविभाजित मध्यप्रदेश के जमाने में रामचन्द्र संस्कृत उ.माध्य. विद्यालय की शुरुआत इस उद्देश्य के लिए की गई। ताकि संस्कृत की शिक्षा से बच्चों को जोड़ा जा सके।

इसके लिए गुरुकुल व्यवस्था के तहत एक अच्छी पहल की गई। जो आज के आधुनिक दौर में भी कायम है। हां, पहले की अपेक्षा अब पढ़ने वालों की संख्या में कमी आई है, लेकिन यहां अब भी 60 से ज्यादा किशोर संस्कृत की शिक्षा हर साल ले रहे हैं। जबकि 98 सालों में एक हजार से ज्यादा किशोर वेदाचार्य बनकर निकल चुके हैं।

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