असम के 500 से अधिक गांवों में धान की खेती पर छाया संकट, वजह जानकर चौंक जाएंगे आप

असम में देश के सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित धेमाजी जिले के मेधिपामुआ और 500 से अधिक गांवों में पानी बेशक कम हो गया है, लेकिन अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगे इस इलाके में लोगों का संकट दूर नहीं हुआ है. ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों में जमा रेत अब धान की खेती के लिए गंभीर खतरा बन गया है. असम में बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित धेमाजी जिले का मुख्य आधार कृषि है. इस जिले को कभी राज्य और इसके जनजातीय समुदाय के लोगों के लिए ‘चावल का कटोरा’ माना जाता था.

इस जिले में ज्यादातर मिसिंग जनजाति के लोग रहते हैं. हालांकि कुछ क्षेत्रों में नेपालियों के साथ हजोंग, बोडो और सोनोवाल जनजातियों की मिश्रित आबादी है जो नदी के किनारे स्थित गांवों में बसती है. इस साल तीन बार आयी बाढ़ से जिले में 100,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए थे. बाढ़ के कारण फसलों को नुकसान पहुंचा और यह मवेशियों को बहा ले गयी तथा घरों को भी इसमें काफी नुकसान हुआ था.

निरंतर भूमि का क्षरण होता है

इस गांव के एक किसान खगेंद्र डोले ने पीटीआई-भाषा से कहा, हमने पहले आपदा का सामना इस आशा से किया था कि बाढ़ के पानी द्वारा छोड़ी गई जलोढ़ गाद से भरपूर फसल होगी, लेकिन अब केवल रेत जमा हो गई है जिसने धान की फसल को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. उन्होंने कहा कि नदी के किनारे के गांवों में, विशेष रूप से धान के खेतों में रेत का जमाव, बाढ़ का एक दीर्घकालिक प्रभाव है, जो जलग्रहण क्षेत्रों में हर बारिश के साथ बढ़ता है. साथ ही बिना पोषक तत्वों और कम उपजाऊ गाद के साथ अधिक रेत आता है, जिसके परिणामस्वरूप निरंतर भूमि का क्षरण होता है.

विशेषज्ञों ने बताया कि अरुणाचल प्रदेश के पहाड़ों पर और नदी के रास्ते में सड़कों, पुलों, बांधों और अन्य विकास परियोजनाओं के बड़े पैमाने पर निर्माण के कारण रेत जमा होने की घटनाओं में भी वृद्धि हुई है. ग्रामीण स्वयंसेवी केंद्र के निदेशक लुइत गोस्वामी ने पीटीआई-भाषा से कहा, तिब्बत में 3,000 मीटर की ऊंचाई से पासीघाट में 150 मीटर से भी कम की ऊंचाई से गिरने वाली ब्रह्मपुत्र नदी के ढलान में अचानक गिरावट, और इसकी सहायक नदियां जिले के बाढ़ के मैदानी इलाकों में जबरदस्त दबाव डालती हैं.

धान की खेती नहीं हो सकती
किसान विकास केंद्र (केवीके) के आंकड़ों के अनुसार, जिले में कुल खेती योग्य परती भूमि 12,490 हेक्टेयर है, जबकि गैर-खेती योग्य बंजर भूमि 10,430 हेक्टेयर है, जिसमें अतिरिक्त 3,830 हेक्टेयर भूमि ऐसी है जहां हाल ही में रेत जमा हुआ है, जिसके कारण वहां धान की खेती नहीं हो सकती.