हमारी संस्कृति में कर्म धर्म है, अनुबंध नहीं : मोहन भागवत

नागपुर,10 दिसम्बर । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भारतीय संस्कृति में कर्म को धर्म के बराबर माना जाता है और इसे लेन-देन के अनुबंध के रूप में नहीं देखा जाता है। वे यहां माधव नेत्रालय आई सेंटर में आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा, प्रचलित रवैया यह है कि यदि अनुबंध का एक पक्ष सौदे के अपने हिस्से को पूरा नहीं करता है, तो दूसरा पक्ष अपना हिस्सा करने से मना कर देगा। उन्होंने कहा, लेकिन यह दृष्टिकोण अब बदल रहा है और हमने अपने दम पर सोचना शुरू कर दिया है।

भागवत ने आगे कहा कि आज ब्रांड का युग है, लेकिन उनके अनुभव में जब कोई चीज ब्रांड में बदल जाती है तो उसकी गुणवत्ता में गिरावट आती है। उन्होंने कहा कि समाज सेवा बिना यह सोचे करनी चाहिए कि समाज के अन्य सदस्य मदद करेंगे या नहीं, और अगर ईमानदारी और नेक नीयत से यह की जाए तो लोग मदद के लिए उठ खड़े होंगे।

नागपुर (वीएनएस)।  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय संस्कृति में कर्म को धर्म के बराबर माना जाता है और इसे लेन-देन के अनुबंध के रूप में नहीं देखा जाता है। वे यहां माधव नेत्रालय आई सेंटर में आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा, प्रचलित रवैया यह है कि यदि अनुबंध का एक पक्ष सौदे के अपने हिस्से को पूरा नहीं करता है, तो दूसरा पक्ष अपना हिस्सा करने से मना कर देगा। उन्होंने कहा, लेकिन यह दृष्टिकोण अब बदल रहा है और हमने अपने दम पर सोचना शुरू कर दिया है।

भागवत ने आगे कहा कि आज ब्रांड का युग है, लेकिन उनके अनुभव में जब कोई चीज ब्रांड में बदल जाती है तो उसकी गुणवत्ता में गिरावट आती है। उन्होंने कहा कि समाज सेवा बिना यह सोचे करनी चाहिए कि समाज के अन्य सदस्य मदद करेंगे या नहीं, और अगर ईमानदारी और नेक नीयत से यह की जाए तो लोग मदद के लिए उठ खड़े होंगे।