सकारात्मक विचारों से मिलती है-खुशी और उत्साह : डॉ. दिलीप नलगे

रायपुर ,15 नवंबर। मुम्बई के हेल्थ कौसिलर डॉ. दिलीप नलगे ने कहा कि सदैव खुश रहने के लिए अपने दृष्टिकोण को सकारात्मक बनाएँ तथा यह सोचें कि जो हो रहा है वह कल्याणकारी है। उन्होंने कहा कि तनाव को पूरी तरह खत्म करना सम्भव नहीं है किन्तु तनाव प्रबन्धन के द्वारा तनाव को कम करके इसके दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।

डॉ. नलगे प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा शान्ति सरोवर में आयोजित कर लो स्वास्थ्य मुठी  में के दूसरे दिन तनाव प्रबन्धन कला विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने तनाव को खत्म करने का सबसे बढिय़ा इलाज राजयोग मेडिटेशन को बतलाते हुए कहा कि इससे आत्मा को पूरा आराम मिलता है।  इसलिए तनाव से बचने के लिए हर परिस्थिति में खुश रहना सीखें और मेडिटेशन के माध्यम से अपनी आन्तरिक क्षमता को बढ़ाएँ।

उन्होंने बतलाया कि तनाव दो प्रकार के होते हैं- पाजिटिव और निगेटिव। पाजिटिव स्ट्रेस जीवन के लिए आवश्यक है क्योंकि यह हमें मोटिवेट करता है। हम प्रेरणादायी स्लोगन्स और महापुरूषों के फोटो अपने सामने रख सकते हैं ताकि दिन भर हमें प्रेरणा मिलती रहे। पाजिटिव स्ट्रेस के कारण हमारी रचनात्मक क्षमता बढ़ जाती है।

उन्होंने आगे बतलाया कि हमारा मन चार चीजों से मिलकर बना है- विचार, भावनाएँ, दृष्टिकोण और स्मृति अथवा यादें। मन और शरीर के बीच गहरा अन्तर्सम्बन्ध है। इसीलिए मन के विचारों के साथ -साथ जीवन की विभिन्न परिस्थितियों, घटनाओं, व्यक्ति और वस्तुओं के प्रति हमारा दृष्टिकोण तथा पुरानी यादें हमारे स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करती हैं।

उन्होंने अवगत कराया कि मन में विचार उत्पन्न होने पर हायपोथेलामस जो कि मस्तिष्क का मुख्य भाग है, से रसायन निकलने लगते हैं। इन्हीं रसायनों के माध्यम से हायपोथेलामस द्वारा संकल्पों की सूचना बहुत ही तीव्र गति से शरीर के विभिन्न अंगों में संचारित होती है। इस प्रकार मन और शरीर के बीच हायपोथेलामस संचार माध्यम की तरह काम करता है।

उन्होंने कहा कि नाकारात्मक विचार उत्पन्न होने पर हायपोथेलामस से स्ट्रेस हार्मोन्स निकलते हैं, जो कि मात्र एक सेकण्ड मे शरीर की विभिन्न कोशिकाओं तक पहुँच जाते हैं। जिससे लीवर में आपात स्थिति के लिए संचित कर रखे गए ग्लूकोज का क्षय होता है। फलस्वरूप व्यक्ति थकान, उदासी और हताशा महसूस करता है। मन में बार-बार नकारात्मक विचार आने पर अधिक बार लीवर से ग्लूकोज निकल जाने की दशा मे व्यक्ति गम्भीर बिमारियों का शिकार बन जाता है।

इसके विपरीत सकारात्मक विचारों के परिणामस्वरूप हायपोथेलामस से नैसर्गिक रूप से इण्डोर्फिन नामक द्रव्य स्त्रावित होता है, जो कि जीवन मे कार्य क्षमता को बढ़ाने के साथ-साथ उमंग-उत्साह और खुशी का संचार करता है। यही कारण है कि बहुत से लोग १८-२० घण्टे काम करने के बाद भी थकते नहीं हैं बल्कि उर्जा से भूरपूर रहते हैं क्योंकि वे अपने काम में रूचि लेते हैं और घटनाओं के प्रति सकारात्मक होते हैं। इसलिए हमें प्रत्येक दिन की शुरूआत रूचिकर, सकारात्मक ओर उर्जा प्रदान करने वाले कार्यों से करना चाहिए।

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