पॉक्सो अधिनियम के तहत युवा प्रेमी-प्रेमिका के बीच पारस्परिक प्रेम ‘यौन उत्पीडन’ नहीं : हाई कोर्ट

डेस्क । यौन अपराधों के खिलाफ बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो अधिनियम) के तहत किसी युवा प्रेमी जोड़े के बीच आपसी प्रेम के कृत्यों को यौन हमला नहीं माना जाएगा। मेघालय हाई कोर्ट के जस्टिस डब्ल्यू डिएंगदोह की पीठ ने पॉक्सो के आरोपी और पीड़िता की मां की ओर से दायर याचिका पर ये अहम फैसला दिया है।

जस्टिस डब्ल्यू डिएंगदोह ने कहा कि हालांकि जहां तक यौन उत्पीड़न के कथित अपराध के लिए अभियोजन का संबंध है, नाबालिग की सहमति महत्वहीन है।

न्यायमूर्ति डब्ल्यू डिएंगदोह की पीठ ने आरोपी के खिलाफ पॉक्सो मामले को खारिज करते हुए कहा कि ऐसे मामले में जहां एक बच्चे और एक बालिग के बीच आपसी प्यार और स्नेह होता है, यौन उत्पीड़न के अपराध का अभियोजन चलाया जा सकता है। लेकिन किसी विशेष मामले और परिस्थितियों में, जैसे कि प्रेमी और प्रेमिका अगर बहुत युवा हों और उनमें स्नेह हो तो यौन हमला का केस नहीं माना जा सकता है।

क्या है मामला?

दरअसल, नाबालिग लड़की एक स्कूल में रहती थी। यहां नाबालिग लड़की के कमरे से गायब होने के बाद मां ने शिकायत दर्ज कराई थी। यह पता चलने पर कि आरोपी प्रेमी लड़की के साथ शारीरिक संबंध बना रहा है, पुलिस ने लड़के के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम की धारा 5(स)/6 के तहत मामला दर्ज किया।

मजिस्ट्रेट के सामने दी गई अपनी गवाही में नाबालिग लड़की ने स्वीकार किया कि उसके आरोपी के साथ शारीरिक संबंध थे और उसके साथ उसका संबंध सहमति से और उसकी अपनी मर्जी से था। हालांकि, जांच अधिकारी ने आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया सबूत मिलने पर उसके खिलाफ आरोप पत्र दायर किया।

मामले की सुनवाई विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो), शिलांग के सामने हुई, जब याचिकाकर्ताओं ने आपसी सहमति से आरोपी के खिलाफ मामले को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय का रुख किया। अदालत ने स्वीकार किया कि विधायिका ने नाबालिग पीड़ितों पर यौन हमले के कृत्यों से निपटने के लिए पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों को सख्त बनाया है।