बिलाईगढ़ , 24 सितम्बर। ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती, मेरे देश की धरती..’ गाना हम सभी ने सुना है, लेकिन इस गाने को चरितार्थ करते हैं सारंगढ़–बिलाईगढ़ जिला के अंतर्गत आने वाले गाँव बोडाडीह के वनवासी, जो आज भी जंगल की मिट्टी से सोना निकाल कर अपना जीवन यापन करते हैं। वन क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी लोग रोजगार नहीं मिलने के कारण जंगल की मिट्टी में सोन तलाश करते हैं। और इनसे होने वाले आमदानी से ही घर परिवार का भरण-पोषण कर अपना जीवन यापन करते हैं।
दरसल हम बात कर रहें हैं सारंगढ़–बिलाईगढ़ जिला के अंतर्गत आने वाले गाँव बोडाडीह की । जहां के कुछ लोग बरसात के दिन में रोजगार नहीं मिलने के कारण आज भी जंगल की मिट्टी में सोना का तलाश करते हैं। जहां ये लोग सुबह 8 बजे से ही जंगल में चले जाते है जहाँ 5 घंटों तक कड़ी मेहनत कर सोना तलाशते है। इन लोंगों की माने तो लकड़ी के बने कठोले में जंगल के मिट्टी को खोदकर डालते है फिर पानी में मिट्टी को साफ करते है। मिट्टी के साफ होते ही मिट्टी में शामिल सोन के छोटे-छोटे कंण कठोले में उभरने लगता है। उन सोने के छोटे-छोटे कंणों को पत्तों से बना दोना में डालकर घर ले जाते हैं। फिर पारा की मदद से इकठ्ठा कर सुहागा डालकर गला लेते हैं। ऐसा करने से सोन के छोटे-छोटे कंण इकठ्ठा होकर सोन का एक बड़ा कंण बन जाता है। जिन्हें ही मार्केट में बेंचकर कुछ पैसों की कमाई कर लेते है।
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इन लोंगों ने आगे बताया कि सोना तलाशने के दौरान कभी-कभी 100 एमएल व रेत के कंण सहित छोटे-छोटे कंणों जैसे मिल जाते है या फिर कभी–कभी खाली हाथ ही घर वापस जाना पड़ जाता है। इन सभी कंणों को महीनों तक इकठ्ठा करने से सोन का बड़ा हिस्सा मिल जाता है जो लगभग 2000/- हजार रुपयों से लेकर 4000/– हजार रुपयों तक कि बन जाती हैं। इन्हीं पैसों से ही इनका घर–परिवार का भरण-पोषण सहित जीवन यापन करते हैं। इन लोंगों ने आगे बताया कि इस तरह का काम पहले इनके पूर्वज करते थे और आज स्वयं कर रहें हैं।
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