साल्हि 18 अगस्त । छत्तीसगढ़ राज्य में सरगुजा जिले के आदिवासी गांवों से घिरे एक दूरस्थ ग्राम साल्हि में स्थित अदाणी विद्या मंदिर (एवीएम) ने 2013 में शुरू होने के साथ ही अपने लिए एक बड़ा लक्ष्य लिया था। लक्ष्य था सरगुजा के खनन प्रभावित गांवों के ग्रामीण जरूरतमंद और उपेक्षित बहुसंख्यक बच्चों को शिक्षित करना। और अब 9 साल बाद, ऐसा स्कूल, जो प्रतिभाशाली बच्चों को प्रवेश प्रदान करता है, और सरगुजा के आसपास के स्थानीय बच्चे, जिनमें से कई आदिवासी समुदाय से हैं, जिले के लिए वरदान साबित हुआ है।
अपने ऑल-राउंड इंफ्रास्ट्रक्चर और समर्पित फैकल्टी मेंबर्स के साथ, यह स्कूल ऐसे स्टूडेंस की मदद करने के लिए कठोर परिश्रम कर रहा है, जो खासकर फर्स्ट जनरेशन लर्नर्स हैं, और अपनी सम्पूर्ण क्षमता बाहर लाने में सक्षम हैं। इस वर्ष, सीबीएसई बोर्ड अंग्रेजी माध्यम स्कूल में कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा में 28 छात्र शामिल हुए, और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके अपनी काबिलियत साबित की।
हालांकि अब भी काफी चुनौतियां हैं। पहली चुनौती यह है कि 80% छात्र आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जिन्हें अपने माता-पिता से समुचित शैक्षणिक मार्गदर्शन नहीं मिल पाता है। दूसरी चुनौती महामारी है, जिसने दैनिक जीवन पर ब्रेक लगा दिया है और पिछले कुछ वर्षों में क्लासरूम लर्निंग पर भारी असर डाला है। इसके अलावा खनन परियोजनाओं के लिए अनुमोदन और देरी के मामले में विस्तार योजना भी स्पष्ट नहीं है। लेकिन कर्मचारियों ने यह सुनिश्चित किया है कि हालात कुछ भी हों, शिक्षा कभी नहीं रुकेगी, खासकर बोर्ड परीक्षा में बैठने वालों के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। इस पर खरे उतरने के लिए ऑनलाइन कक्षाओं का आयोजन भी किया गया, लेकिन कुछ अभिभावकों के पास स्मार्ट फोन नहीं होने के कारण, ये बच्चे इससे वंचित रह गए। इसके बावजूद सरगुजा स्थित एवीएम के कर्मचारियों और शिक्षकों ने प्रखरता से इसका समाधान निकाला। ऐसे छात्रों की सहायता के लिए स्कूल द्वारा सरकारी मानदंडों के अनुसार, मोहल्ला कक्षाओं का आयोजन किया गया है। शिक्षकों ने छोटे-छोटे वीडियो क्लिप्स, कॉन्टेंट की पीडीएफ और स्टडी मटेरियल्स के नोट्स बनाए हैं और उन्हें व्यक्तिगत रूप से छात्रों को वितरित किया है।
एवीएम के प्रिंसिपल दिलीप पांडे ने कहा कि, “परिणाम संतोषजनक है, क्योंकि हमारे स्कूल के अधिकांश छात्र, ग्रामीण क्षेत्रों और आदिवासी समुदायों से ताल्लुक रखते हैं। वे सभी पहली पीढ़ी के विद्यार्थी हैं। उनके माता-पिता पढ़े-लिखे नहीं हैं, इसलिए वे चाहकर भी उनकी मदद नहीं कर सकते हैं। हमारे शिक्षकों ने विशेष रूप से महामारी के कठिन समय में छात्रों के लिए बहुत कुछ किया है। उन्होंने छात्रों को उनकी स्टडी मटेरियल्स की आपूर्ति के लिए डोर-टू-डोर सेवाएँ भी प्रदान की हैं।”
पिछले शैक्षणिक वर्ष में कक्षा 10 के छात्रों के लिए डॉउट क्लासेज़ के साथ-साथ रेगुलर एक्स्ट्रा क्लासेज़ की व्यवस्था की गई थी। जिसके लिए छात्रों को निर्धारित समय से एक घंटे पहले बुलाया गया, और उन्हें एक्स्ट्रा क्लासेज़ के लिए स्कूल के समय के एक घंटे बाद छोड़ा गया।
वहीं शाम की कक्षाओं का आयोजन, प्रत्येक गाँव के पंचायत भवन में किया गया। इतना ही नहीं, परीक्षा अंतराल के दौरान, छात्रों को किसी भी विषय के बारे में अपने प्रश्नों को हल करने के लिए स्कूल बुलाया जाता था। छात्रों को उनकी पढ़ाई में सहायता करने के अलावा, स्कूल ने यह सुनिश्चित किया कि परीक्षा से पहले या उसके दौरान, किसी भी स्तर पर छात्रों में आत्मविश्वास की कमी न हो और शिक्षकों ने यह सुनिश्चित किया कि सभी छात्र हर समय प्रेरित हों।
दिलीप पांडे ने बताया, “दो शिक्षकों को परीक्षा केंद्र पर छात्रों के मनोबल को बढ़ाने और उन्हें भावनात्मक समर्थन देने के लिए भेजा गया था।”
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