इमाम हुसैन की याद में मोहर्रम पर निकाला गया ताजिया का जुलूस

कोरबा (रामपुर) । इमाम हुसैन व उनके 72 साथियों की शहादत पर मनाए जाने वाले गमी के पर्व मोहर्रम पर मंगलवार को ग्राम रामपुर एवं जोगीपाली के मुस्लिम बंधुओं द्वारा ताजिया मातमी जुलूस के साथ निकाला गया।

इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार, करीब 1400 साल पहले अशुरा के दिन इमाम हुसैन का कर्बला की लड़ाई में सिर कलम कर दिया था और उनकी याद में इस दिन जुलूस और ताजिया निकालने की रिवायत है। अशुरा के दिन तैमूरी रिवायत को मानने वाले मुसलमान रोजा-नमाज के साथ इस दिन ताजियों-अखाड़ों को दफन या ठंडा कर शोक मनाते हैं।

भव्य तरीके से इस्लामिक कैलेंडर की 10 वी तारीख मंगलवार को गाजे बाजे के साथ (अलम) जुलूस ताजिया के साथ निकाली गई।इस दौरान ग्राम पंचायत जोगीपाली के मोहल्ला मांझीपारा में गली गली से तीन ताजिया भव्य रूप सजाकर जुलूस निकाली गई, जिसमें सभी धर्म के लोग शामिल हुए। इस क्रम में जुलूस को पूरे गांव में भ्रमण कराया गया। वहीं, इस दौरान हसन या हुसैन गूंजमान रहा।

मातमी पर्व मोहर्रम पर हुआ ताजिये का दीदार बड़ी संख्या में लोगों ने अकीदत पेश कर मांगी मन्नत

मातमी पर्व मोहर्रम के अवसर पर मुस्लिम समुदाय के द्वारा भव्य ताजिया निकाला गया । ताजिये का दीदार करने लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी । ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी तादाद में यहां पहुंचकर ताजिये का दीदार करते हुए मन्नत मांगी । मोहर्रम के अवसर पर कई स्थानों पर शहीदाने करबला की याद में जलसे का आयोजन किया गया । अकीदतमंदों द्वारा ताजियादारी की गई । याँमे अशुरा की फातिहा ख्वानी के बाद शाम को ताजिया निकाली गई । जो के विभिन्न स्थानों से गुजरते हुए भ्रमण किया । इस दौरान जगह जगह मुस्लिम समुदाय द्वारा शरबतए लंगर का एहतेमाम किया गया । आज के दिन लंगर व शरबत बांटने को मुस्लिम समाज पुण्य का काम मानता है । मुस्लिम समाज मुर्हरम को मातमी पर्व के साथ धर्म व सत्य के लिए पैगाम देने वाला पर्व के रूप में मनाते हैं । मोहर्रम को शहादत के तौर पर मनाया जाता है । इस अवसर पर दस दिनों तक शहीदाने करबला का आयोजन कर इमाम हुसैन व इस्लाम को बचाने जंग के दौरान शहीदों की याद के तौर पर मनाया जाता है करबला के मैदान में इमाम हुसैन व उनके साथियों द्वारा जिस शिद्दत के साथ हजरत पैगम्बर साहब के दीन की खातिर अपनी जान दी । मुस्लिम समाज इन दिनों में रोजा रखकर अपनी अकीदत पेश करता है । ताजियादारी करते हैं इस दिन को यौमे अशुरा भी कहा जाता है । मोहर्रम पर शाम को आदि क्षेत्रों से हसन हुसैन के नारों के साथ ताजिया की जुलूस निकाला गया । जुलूस विभिन्न क्षेत्रों का भ्रमण कर पहुंचा । इस दौरान जगह जगह शरबत व लंगर का वितरण किया गया । इसके लिए युवाओं की टोली सप्ताह भर से तैयारी करती है । हालांकि अब धीरे धीरे अखाड़ेबाजी का चलन कम हो रहा है लेकिन इस परंपरा जीवित रखा गया है । मौजूदा दौर में अखाड़े में लाठियों के खेल की पैतरेबाजी सिखाने वालों की संख्या भी नहीं के बराबर है । मोहर्रम को न सिर्फ मुस्लिम समुदाय द्वारा मनाया जाता है । बल्कि मौके पर हिन्दुओं द्वारा भी अकीदत पेश की जाती है । बड़ी संख्या में हिन्दु पहुंचकर अपनी अपनी तरह से इमाम हुसैन के प्रति श्रद्धा अर्पित करते हैं । जुलूस के दौरान जगह जगह फातिहा कराने लोग पहुंचे और अपनी अकीदत पेश किया कुल मिलाकर शहर में बड़े ही सौहार्द के साथ मोहर्रम मनाया गया ।

ताजिया के जुलूस के दौरान लोगों द्वारा मन्नते मांगी जाती है माना जाता है कि हमेशा मन्नते पूरी हो जाती है। जोगीपाली मांझीपारा मे निकाली गई ताजिया जुलूस को सफल बनाने में मुस्लिम समाज के प्रमुख मौलाना सहित राष्ट्रीय मानवाधिकार एवं सामाजिक न्याय आयोग अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष फिरोज खान, सहजाद, गुलजार खान, सुल्तान खान, रहीम, सम्मू, सैफ अली, गुलाम दरबार, असर, नसर, वसीम, गोलू, रमजान, मुस्ताक, जुम्मन, साहिल खान, अमीर खान, रसूलखान, मजीद, फरीद खान, लालू, ईमरान खान, इनायत, अमजद, अफजल, सलीम, शहजाद, साजिद खान , इशाहक खान, जलील, जब्बार खान, सहित बड़ी संख्या में मुस्लिम बंधुओं का योगदान रहा।