मित्रता दिवस विशेष

श्रावण मॉस की काली रात का समय था चार दोस्त किसी कार्य के सिलसिले से निकले थे। कार्य पूर्ण कर के वापस घर के लिए लौटते वक़्त रास्ते में उनकी कार ख़राब हो जाती है चूँकि रात काफी हो चुकी होती है जब कार को बनवाने के लिए वे गैरेज की तलाश करते हैं लेकिन आसपास कोई साधन या व्यवस्था नहीं होती। बहुत कोशिश मशक्कत करने के बाद सभी आखिर में हार मान लेते हैं। फिर दूसरे विकल्प पर विचार करते हुए आसपास कहीं ठहरने की जगह देखते हैं तभी उन दोस्तों में से किसी को याद आता है कि अरे इसी गांव में तो शायद हमारे उस दोस्त का भी घर है.! उस दोस्त का घर है कहने का मतलब 4 साल पहले जब इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए हॉस्टल ज्वाइन किए थे। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान हॉस्टल में एक दोस्त रहता था जिसका गांव वही गांव रहता है जहां पर उनकी गाड़ी खराब हुई होती है। दोस्तों कहानी की शुरुआत यहीं से होती है 4 साल पहले जब अलग-अलग जगहों से निकल के छात्राएं उच्च शैक्षणिक संस्थान में पढ़ने के लिए जाते हैं और हॉस्टल में रहने के दौरान उनकी आपस में मुलाकात होती है। उस वक्त 2008-09 के पहले एंटी रैगिंग कमेटी नहीं होती थी तब हॉस्टल में सीनियर्स द्वारा काफी ज्यादा रैगिंग ली जाती थी। हॉस्टल में जब नए छात्र आते तो नियम होता था कि प्रथम वर्ष का हर छात्र अपने रूममेट के अलावा अपने क्लासमेट उसके बाद अपने सीनियर, सुपर सीनियर, सुपर मोस्ट सीनियर सभी के बारे में जो बेसिक जानकारी है वह एक डायरी में लिखा करते थे, लेकिन अपने रूममेट की जानकारी तो उनको मौखिक याद रखना होता था। यह हॉस्टल की एक सामान्य सी प्रक्रिया थी जिसे सब को मानना होता था और कुछ हद तक यह सही भी था। हॉस्टलों में जब पहले रैगिंग होती थी तो उसके पीछे का एक उद्देश्य होता था कि बच्चों को 4 साल में मानसिक रूप से मजबूत करना। हर छात्र जो हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करता था वह 4 साल में इतना मजबूत हो जाता था कि कहीं भी वह जीवन जी लेता चाहे परिस्थिति जैसी भी रहे सर्वाइव कर लेता हर चुनौती का मुकाबला कर लेता।

फिर चाहे प्राइवेट कंपनी में जॉब हो, सरकारी कार्यालय की नौकरी हो या किसी भी स्थान में नौकरी के दौरान मिलने वाली चुनौतियाँ हो, वह उस कार्मिक स्थल के तनाव को झेल सके इस लायक उसको मजबूत बनाया जाता था और इसमें रैगिंग का बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता था( बाद में इसका नकारात्मकता भी देखने को मिली जिसके चलते अब एंटी रैगिंग कमिटियों एक अस्तित्व है)। उसी प्रक्रिया के तहत हर छात्र को अपने रूममेट, क्लासमेट, सीनियर सभी की जानकारी याद रखने की प्रक्रिया के तहत वे लोग अपने बैचमेट के नाम पता कहां का रहने वाला है, क्या पढ़ा है, हर चीज लिख कर रखा करते थे। आज जब उनकी गाड़ी एक गांव में खराब हुई तब उनको याद आया कि यार यहां तो हमारे दोस्त का घर है। चलो उससे मदद मांगी जाए तब उनमें से एक ने अपने दोस्त को फोन लगाया और बोला कि यार हमारी गाड़ी तेरे गांव के ही पास में खराब हो गई है और क्योंकि हमने पता किया तो यहां पर ऐसा कोई साधन नहीं है कि गाड़ी बन सके और काफी रात भी हो चुकी है। भाई अपनी मदद कर देता यार , हमें अपने घर में आज रात रुकने दे देता, कल सुबह हम शहर से कार के लिए टोव मंगा कर फिर गाड़ी को ले जाएंगे। उनके दोस्त ने यह सब सुनकर बोला कि मुझे थोड़ा सा समय दो क्योंकि मैं अभी गांव में नहीं हूं कुछ काम के सिलसिले में शहर आया हूं। मैं करवाता हूं कुछ व्यवस्था फोन रखने के बाद उसका दोस्त जो गांव का था जिसको मदद करनी थी वह अपने पुराने दिनों को याद करने लगता है और सोच में पड़ जाता है। पुराने दिनों की याद में यह था कि वह जो चार दोस्त फंसे थे उनमें कुछ तो शराबी थे कुछ चेन स्मोकर थे किसी की नजर खराब थी, नजर खराब का तात्पर्य महिलाओं के प्रति लड़कियों के प्रति उनकी नजरें खराब थी। वह आपस में दोस्त तो अच्छे थे 4 साल हॉस्टल में रहकर पढ़ाई किए तो एक दूसरे की अच्छाई बुराई सब जानते थे। हॉस्टल के बारे में कहा भी गया है कि हॉस्टल ऐसी जगह होती है जहां पर दुर्गुण और अवगुण दोनों मिलते हैं। हॉस्टल में अच्छाई भी सीख सकते हैं बुराई भी सीख सकते हैं आप वहां मेहनत से लगन से पढ़कर अच्छी उपलब्धि पा सकते हैं या फिर गलत संगति में पड़कर बर्बाद भी हो सकते हैं,। यह आपके संस्कार पर निर्भर करता है कि आप की पारिवारिक पृष्ठभूमि से आपको कैसे संस्कार मिले हैं । उसके अनुरूप आप हॉस्टल में शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। वहां आपको पूरे देश भर के लोग मिलेंगे, अलग अलग बोली भाषा, अलग-अलग संस्कृति अलग-अलग चीजें सीखने को मिलती हैं। ऐसी ही स्थिति में और बैकग्राउंड में सभी ने समय बिताएं होते हैं अपनी स्टडी के दौरान। इस वज़ह से वह दोस्त इस कशमकश में उलझ जाता है कि इनकी आदत ऐसी है और इस स्थिति में जब मेरे घर में मेरी बुजुर्ग मां है और मेरी जवान बहन बस है तब मैं अपनी गैर-मौजूदगी में इनको कैसे रुकने के लिए कह दूँ । उसके दिल दिमाग से जो आवाज आती है, वह पूछ रहा था कि क्या मैं अपने दोस्तों को ऐसी स्थिति में रुकने दे सकता हूं…???? दोस्तों इस कहानी में फिलहाल जो सोच दोस्त की है वही सोच मेरी भी है और यही सोच को सवाल के माध्यम से आप सभी से कर रहा हूं। क्या हम किसी के जीवन में ऐसे मित्र बन पाए हैं जो अपनी गैर-मौजूदगी में हमें अपने घर में जब जरूरत पड़े तो आधी रात को भी रुकने की अनुमति दे सके या फिर हमारे जीवन में कोई ऐसे मित्र बन पाए हैं जिनको हम अपनी गैरमौजूदगी में अपने घर में आधी रात को रुकने का अनुमति दे सके खासकर जब स्थिति ऐसी हो कि घर पर केवल बुजुर्ग माँ और जवान बहन हो। दोस्तों अगर आप किसी के जीवन में ऐसे मित्र हो या फिर आपके जीवन में कोई ऐसे मित्र हैं तो यकीन मानिए आप बहुत खुशनसीब हैं और आप अच्छे संस्कारों में पले बढ़े हैं और अगर नहीं है तो यह विचार करने का विषय है कि क्या हमें मित्रता दिवस मनाने का अधिकार है और अगर हमें मित्रता दिवस मनाने का अधिकार है तो क्यों न किसी के जीवन में हम ऐसे मित्र बने या फिर अपने जीवन में ऐसे मित्र बनाएं जिनको हम अपनी गैर-मौजूदगी में बेझिझक अपने घरों में रुकने की अनुमति दे सकें।

बलवंत सिंह खन्ना
स्वतंत्र लेखक, कहानीकार

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