राष्ट्रीय आरोग्य निधि योजना के तहत राशन कार्ड अनिवार्य क्यों? हाईकोर्ट केंद्र और दिल्ली सरकार से मांगा जवाब

कोर्ट ने याचिका पर नोटिस जारी करते हुए प्रतिवादियों से जवाब मांगा है। एम्स ने याचिकाकर्ता महिला को इस योजना के तहत उसकी वित्तीय मदद के अनुरोध को राशन कार्ड ना होने की वजह से खारिज कर दिया था।

दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को पूछा कि राष्ट्रीय आरोग्य निधि (आरएएन) के तहत वित्तीय मदद हासिल करने के लिए एक नागरिक के पास राशन कार्ड होना आवश्यक क्यों है? इस मामले पर कोर्ट ने केंद्र तथा दिल्ली सरकार से अपना रुख स्पष्ट करने को भी कहा है।

गरीबी रेखा से नीचे आने वाली कैंसर की एक मरीज की ओर से दायर इस याचिका में इस अनिवार्यता को अवैध और असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया है। 

जस्टिस यशवंत वर्मा ने याचिका पर नोटिस जारी करते हुए प्रतिवादियों को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता 30 वर्षीय एक महिला है, एम्स ने इस योजना के तहत उसकी वित्तीय मदद के अनुरोध को राशन कार्ड ना होने की वजह से खारिज कर दिया था।

अदालत ने पाया कि बिना राशन कार्ड के याचिकाकर्ता को राष्ट्रीय आरोग्य निधि योजना का लाभ नहीं मिल सकता, जिससे की योजना का मकसद ही विफल हो जाएगा।

राष्ट्रीय आरोग्य निधि योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे आने वाले मरीजों को वित्तीय मदद मुहैया कराई जाती है, ताकि वे किसी भी ‘सुपर स्पेशियलिटी’ अस्पताल या अन्य सरकारी अस्पतालों में इलाज हासिल कर सकें। ये वित्तीय मदद संबंधित अस्पताल को ‘एक बारगी अनुदान’ के तौर जारी की जाती है।

जस्टिस वर्मा ने कहा कि दिल्ली में पहले ही तय सीमा के तहत राशन कार्ड जारी हो चुके हैं और पूछा, ”बिना राशन कार्ड के किसी का क्या होगा?”

अदालत ने पूछा, ”यह अनिवार्य क्यों है? अगर परिवार संबंधी जानकारी चाहिए तो इसके लिए अन्य कई दस्तावेज हैं। राशन कार्ड ही क्यों जरूरी है?”

वहीं, दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि राशन कार्डों जारी करने को लेकर तय की गई सीमा में वृद्धि के उसके अनुरोध को केंद्र सरकार ने खारिज कर दिया है। मामले पर आगे की सुनवाई अब 31 अगस्त को की जाएगी।

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