जिले के गोठान खोखरा एवं तिलई में गौमूत्र से जीवामृत एवं ब्रम्हास्त्र निर्माण की विधि का प्रशिक्षण

दिनांक 04.08.2022 को जिला कलेक्टर श्री तारण प्रकाश सिन्हा के निर्देशानुसार श्री एम.आ.तिग्गा, उप संचालक कृषि एवं श्री पी.के.पटेल अनुविभागीय कृषि अधिकारी पामगढ़, श्री एन.के.भारद्वाज अनुविभागीय कृषि अधिकारी जांजगीर, श्री कृतराज कुर्रे अनुविभागीय कृषि अधिकारी सक्ती, श्री मनीष मरकाम सहायक मृदा परीक्षण अधिकारी सह एन.जी.जी.बी. जिला नोडल अधिकारी जांजगीर द्वारा जिले के गोठान खोखरा एवं तिलई में गौमूत्र से जीवामृत एवं ब्रम्हास्त्र निर्माण की विधि से गौठान समिति के सदस्यों को प्रशिक्षित किया गया।

ब्रम्हास्त्र निर्माण

कीट नियंत्रक उत्पाद- इसका उपयोग सभी प्रकार के कीटों के नियंत्रण में किया जा सकता है। यह तना छेदक जैसे अधिक हानि पहुंचाने वाले कीटों के प्रति अधिक लाभकारी है।

बनाने की विधि

  • 10 लीटर गोमूत्र, नीम पत्ती 2-3 कि.ग्रा. + सीताफल की पत्तियां 2 कि.ग्रा.+ पपीता की पत्तियां 2 कि.ग्रा. + अमरूद की पत्तियां 2 कि.ग्रा. + करज की पत्तियां 2 कि.ग्रा. (स्थानिय उपलब्धता एवं अनुभव के आधार पर उपरोक्त उल्लेखित सामग्रियां एवं उनकी मात्राओं में आवश्यकता अनुसार बदलाव हो सकते है।)
  • गर्म करना ( उबालना) आधी मात्रा होते तक (5 लीटर )
  • छानना

*तापमान समान्य करना

*बोतल में पैकिंग करना

कुल निर्मित मात्रा – उपरोक्त विधि से तैयार कीट नियंत्रक की मात्रा लगभग 5 लीटर होगी।

शेल्फ लाईफ – जैविक कीट नियंत्रक को 6 महीने तक बोतलों में संग्रहित किया जा सकता|

शेल्फ लाईफ जैविक कीट नियंत्रक को 6 महीने तक बोतलों में संग्रहित किया जा सकता उपयोग :- उपरोक्त विधि से 5 लीटर कीट नियंत्रक बनाया जा सकता है एवं 2-2.5 लीटर कीटनियंत्रक को 100 लीटर पानी मिलाकर सुबह शाम खड़ी फसल में (10-15 दिनों के अंतराल में) छिड़काव करें।

सावधनियाँ

  1. जैव नियंत्रकों का भण्डारण, सुरक्षित स्थान पर कमरे के अंदर करें। बच्चों और जानवरों की पहुँच से दूर रखें।
  2. छिड़काव सुबह 11 बजे तक या शाम को 4 बजे के बाद करें। 3. अधिक नम खेतों में छिड़काव प्रभावकारी नहीं रहता, नमी कम होने पर छिडकाव करें।
  3. जैव कीट रोग नियंत्रकों को आपस में या जैविक टॉनिक के साथ मिलाया जा सकता है।
  4. इनका उपयोग कीट आने के पूर्व करने पर अधिक प्रभावशाली पाया गया है।
  5. जैब नियंत्रकों का इस्तेमाल 20-30 दिन की पौध अवस्था से करें बाद में आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिवस के अन्तराल पर करें। 7. जैविक कीट, रोग नियंत्रक बायोडिग्रेडेबल हैं, अतः वातावरण के लिए पूर्णतः सुरक्षित है।
  6. कीटों में इसके प्रतिरोधिता उत्पन्न नहीं होती है, चूंकि ये मल्टिपल एक्शन से कीट नियंत्रण करते हैं।
  7. अधिकांश जैव नियंत्रक, मित्र कीटों को नष्ट नहीं करते हैं।

वित्तीय आंकलन – उपरोक्तानुसार उल्लेखित विधि से कीट नियंत्रक तैयार करने पर निम्नानुसार लागत अनुमानित है

प्रति लीटर कीट नियंत्रक निर्माण में लगभग राशि रु 39 /- की आवर्ती लागत संभावित है (गौमूत्र रू8/-, अन्य सामाग्री रू 16/- एवं पैकिंग -रु 15/-)। बडे केन में पैकिंग किये जाने पर उत्पाद की लागत राशि रू. 39/- से भी कम हो सकती है। इसके अतिरिक्त अनावर्ती लागत जैसे- प्लास्टिक ड्रम. मिक्सर ग्राइन्डर / खलबत्ता सीलपट्टी, बर्तन आदि की भी आवश्यकता होगी। तैयार उत्पाद को बोतल में भरकर विकय किया जा सकता है।

विक्रय मूल्य प्रदेश के कृषकों को जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए गौमूत्र कीट नियंत्रक उत्पाद का विक्रय रू. 50/- प्रति लीटर में किये जाने का सुझाव दिया जाता है। स्थानीय स्तर पर उत्पाद की लागत मूल्य अनुसार उत्पादो की विकय दर संबंधित गोठान प्रबंधन समिति द्वारा निर्धारित की जायेगी।

परिशिष्ट-02

जीवामृत उत्पाद

जीवामृत- यह एक बायोस्टिमुलेट हैं, जो मिट्टी में सूक्ष्म जीवों तथा पत्ते पर छिड़के जाने पर फाइलोस्फेरिक सूक्ष्म जीवों की गतिविधि को बढ़ाता है। यह माइक्रोबियल गतिविधि के लिए प्राइमर की तरह काम करता है और देशी केंचुओं की आबादी को भी बढ़ाता है।

सामग्री: गाय का गोबर- 10 कि.ग्रा. गौमूत्र -10 लीटर, गुM 1 किग्रा, चने का आटा (बेसन) – 1 कि.ग्रा., बड़ या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी – 250 ग्राम जल 200 लीटर

बनाने की विधि :

एक प्लास्टिक/ सीमेंट की टंकी में 200 लीटर पानी ले, उसमें 10 किलो देसी गाय का गोबर एवं 10 लीटर गौमूत्र डालने के उपरांत किलो गुड मिलायें। तत्पश्चात 1 किलो बेसन (दलहन का आटा) तथा बढ़ / पीपल के पेड़ के नीचे की 250 ग्राम मिट्टी मिलायें। गुड़ के विकल्प के रूप में 1 किलो पपीता, 1 किलो केला या गन्ने के रस का प्रयोग कर सकते हैं। उत्पाद तैयार करने में स्थानिय उपलब्धता एवं अनुभव के आधार पर उपरोक्त उल्लेखित सामग्रियां एवं उनकी मात्राओं में आवश्यकता अनुसार बदलाव हो सकते है। इस मिश्रण को 48 घंटे तक छाया में रखते हैं। टंकी को बोरे से ढक देते हैं। 48 घंटे के बाद जीवामृत तैयार हो जाता है। 48 घंटे में जीवामृत को 4-5 बार (10-12 घंटे के अंतराल मे) डंडे से चलाया जाना चाहिए। सात दिनों तक जीवामृत का इस्तेमाल किया जा सकता है।

     * कुल निर्मित मात्रा उपरोक्त विधि से तैयार जीवामृत की मात्रा लगभग 200 लीटर होगी।

     * शेल्फ लाईफ जीवामृत का उपयोग केवल 7 दिन तक किया जा सकता है।

      *उपयोग- प्रति एकड़ 200 लीटर जीवामृत को पानी की सिंचाई के साथ 15-20 दिनों के अंतराल पर खड़ी फसल में 5-6 बार इस्तेमाल करना फसलों के उत्पादन के लिए अपेक्षित है। जीवामृत का प्रयोग करने से फसलों को उचित पोषण मिलता है और दाने एवं फल स्वस्थ होते हैं।

सावधानियाँ 1. प्लास्टिक एवं सीमेंट की टंकी को छाया में रखें जहाँ धूप नहीं लगती हो।

  1. गोमूत्र को धातु के बर्तन में न रखें।
  2. ताजा गोबर अथवा 7 दिन तक छाया में रखे हुए गोबर का ही इस्तेमाल करें।
  3. जीवामृत बीज बोने के 21 दिन बाद पहली सिंचाई के साथ डाल दें।

वित्तीय आंकलन -उपरोक्तानुसार उल्लेखित विधि से जीवामृत तैयार करने पर निम्नानुसार लागत अनुमानित है

इस प्रकार प्रति लीटर जीवामृत निर्माण में लगभग रु. 21/- की आवर्ती लागत संभावित है (गौमूत्र रू0.20/-, अन्य सामाग्री- रू 5.80/- एवं पैकिंग – रू 15/- ) । बड़े केन में पैकिंग किये जाने पर उत्पाद की लागत राशि रू. 21/- से भी कम हो सकती है। इसके अतिरिक्त अनावर्ती लागत जैसे- प्लास्टिक ड्रम, बर्तन आदि की भी आवश्यकता होगी। तैयार उत्पाद को बोतल में भरकर विकय किया जा सकता है।

प्रदेश के कृषकों को जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए गौमूत्र वृद्धि वर्धक (ग्रोथप्रमोटर) उत्पाद का विक्रय रू. 40/- प्रति लीटर में किये जाने का सुझाव दिया जाता है। स्थानीय स्तर पर उत्पाद की लागत मूल्य अनुसार उत्पादों की विक्रय दर संबंधित गोठान प्रबंधन समिति द्वारा निर्धारित की जावेगी।

विक्रय मूल्य — विक्रय मूल्य प्रदेश के कृषकों को जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए गौमूत्र वृद्धि वर्धक (ग्रोथ प्रमोटर) उत्पाद का विक्रय रू. 40/- प्रति लीटर में किये जाने का सुझाव दिया जाता हैं। स्थानीय स्तर पर उत्पाद की लागत मूल्य अनुसार उत्पादो की विक्रय दर संबंधित गोठान प्रबंधन समिति द्वारा निर्धारित की जावेगी।

  उपरोक्त प्रशिक्षण प्राप्त कर महिला स्व सहायता समुह द्वारा कृषि विभाग को धन्यवाद ज्ञापित किया तथा निर्मित उत्पादों को कृषकों के खेत में उपयोग किया जावेगा। उक्त प्रशिक्षण में विकासखण्ड स्तर से वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी एवं विभागीय अमला उपस्थित रहे।