उपराष्ट्रपति ने प्रशासन में स्थानीय भाषाओं के प्रयोग की आवश्यकता पर बल दिया

नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने आज इस बात पर जोर दिया कि शासन का अंतिम उद्देश्य लोगों को सशक्त बनाना और न्यूनतम सरकार की ओर बढ़ना होना चाहिए, जो उनके अनुसार तभी होगा जब अंतिम लक्ष्‍य प्राप्‍त कर लिया गया हो और निचले पायदान पर खड़े लोग वहां पहुंच चुके हों। उन्होंने यह भी कहा कि सुशासन की सफलता मेहनतकश जनता को विकास की प्रक्रिया में शामिल करने और समान हितधारक बनाने में निहित है।

भारतीय लोक प्रशासन संस्थान द्वारा आज नई दिल्ली में आयोजित 48वें एडवांस्ड प्रोफेशनल प्रोग्राम इन पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि सुशासन की कुंजी समावेशिता, प्रौद्योगिकी का उपयोग और उच्च नैतिक मानकों को बनाए रखने में निहित है। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी पारदर्शिता को बढ़ावा देती है और इस तरह जवाबदेही तय होती है जो सुशासन की मूल विशेषता है, जबकि नैतिक मानक वैधता प्रदान करते हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि ये दोनों मिलकर परिवर्तनकारी सुधार लाने के लिए जमीन तैयार करने वाली एक नई राजनीतिक संस्कृति की शुरुआत करेंगे।

राम-राज्य की अवधारणा का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति श्री नायडु ने कहा कि भारतीय परंपरा में यह परिभाषित करने के लिए राम-राज्य एक रूपक है कि एक अच्छी तरह से शासित कल्याणकारी राज्य कैसा दिखना चाहिए। उन्होंने प्रशासकों को गरीबी, भेदभाव और असमानता से मुक्त समाज का निर्माण करने के लिए इन उदात्त आदर्शों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया। इस कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति के सचिव आई वी सुब्बाराव, आईआईपीए के महानिदेशक सुरेंद्र नाथ त्रिपाठी, कार्यक्रम निदेशक (एपीपीपीए) डॉ. वी. एन. आलोक, रजिस्ट्रार अमिताभ रंजन, संकाय सदस्य, पाठ्यक्रम प्रतिभागी और अन्य गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए।

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