संस्कृत शिक्षा को पुनः प्रचलित करने के लिए एक जन आंदोलन की आवश्यकता : उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु ने संस्कृत शिक्षा पुनः प्रचलित करने के लिए एक जन-आंदोलन की जरूरत बताई, जहां सभी हितधारकों को भारत के समृद्ध प्राचीन साहित्य और सांस्कृतिक विरासत की फिर से खोज करने में योगदान देना चाहिए। उन्होंने कहा, एक भाषा को केवल संवैधानिक प्रावधानों या सरकारी सहायता या संरक्षण द्वारा संरक्षित नहीं किया जा सकता है।

बेंगलुरु स्थित कर्नाटक संस्कृत विश्वविद्यालय के 9वें दीक्षांत समारोह और दशवार्षिक समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने आज कहा कि परिवारों, समुदायों और शैक्षणिक संस्थानों द्वारा अगर भाषा को महत्व दिया जाता है तो वह जीवित रहती है और प्रचारित होती है। तेजी से हो रहे तकनीकी बदलाव का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी ने संस्कृत सहित हमारी प्राचीन भाषाओं को संरक्षित और प्रचारित करने के नए अवसर खोले हैं। उन्होंने कहा, प्राचीन पांडुलिपियों, अभिलेखों और शिलालेखों का डिजिटलीकरण, वेदों के पाठ की रिकॉर्डिंग, प्राचीन संस्कृत ग्रंथों के अर्थ और महत्व को उजागर करने वाली पुस्तकों का प्रकाशन संस्कृत ग्रंथों में निहित हमारी संस्कृति को संरक्षित करने के कुछ तरीके होंगे।

उपराष्ट्रपति ने संस्कृत को हमारे देश की अमूर्त विरासत बताते हुए कहा कि यह हमारे ज्ञान और साहित्यिक परंपराओं का स्रोत रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा, संस्कृत हमें भारत की आत्मा को समझने में मदद करता है। अगर किसी को भारत के वैश्विक दृष्टिकोण को समझना है तो उसे संस्कृत सीखनी होगी। श्री नायडु ने आगे कहा कि भारतीय कवियों की साहित्यिक प्रतिभा की सराहना करने और हमारे महान देश की सभ्यतागत समृद्धि पर शोध करने के लिए संस्कृत का छात्र बनना पड़ेगा।

उपराष्ट्रपति ने रेखांकित किया कि संस्कृत का उपयोग केवल दार्शनिक और धार्मिक विषयों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि आयुर्वेद, योग, कृषि, धातु विज्ञान, खगोल विज्ञान, राज्य शिल्प और नैतिकता जैसे विषयों की एक विस्तृत शृंखला पर संस्कृत में कई ग्रंथ हैं। जिनकी समकालीन प्रासंगिकता है। उन्होंने छात्रों से ज्ञान के इन क्षेत्रों का पता लगाने और हमारे प्राचीन ग्रंथों के नए पहलुओं की खोज करने के लिए कहा।

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