नई दिल्ली। कांग्रेस पार्टी ने ‘2024’ के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपने नाम के साथ एक बदलाव किया है। मकसद है भाजपा के राष्ट्रवाद को टक्कर देना। आज देश में जब भी कुछ ऐसा होता है कि जिसमें केंद्र सरकार और भाजपा, घिरती हुई दिखती है तो वहां ‘राष्ट्रवाद’ का नाम लेकर विपक्षी दलों के विरोध को शांत कर दिया जाता है। हर जगह भाजपाई राष्ट्रवाद, कांग्रेस पार्टी पर भारी पड़ रहा है। इसी को देखते हुए कांग्रेस पार्टी ने जनता के बीच अपने नाम के आगे ‘इंडियन नेशनल कांग्रेस’ या ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ शब्द का इस्तेमाल करना शुरु कर दिया है।
हालांकि मूल स्वरूप में ‘कांग्रेस’ को ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ ही कहा जाता है। स्थापना के समय यही नाम रखा गया था। बाद में पार्टी नेता ‘कांग्रेस’ नाम का इस्तेमाल करने लगे। कांग्रेस पार्टी को समझने वाले जानकारों का कहना है कि ‘कांग्रेस’ ने अब भाजपाई ‘राष्ट्रवाद’ की काट खोज निकाली है। आजादी के अलावा 1948, 1965 व 1971 की लड़ाई कांग्रेस सरकार के नेतृत्व में जीती गई थी, मगर आज ‘डंका’ पीएम मोदी का बज रहा है। कांग्रेस पार्टी की सोच है कि ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ नाम का ‘मंत्र’ उसे न केवल भाजपाई राष्ट्रवाद के साथ मुकाबले में ला देगा, बल्कि 2024 की राह भी दिखा सकता है।
कांग्रेस में हो रहे कई तरह के बदलाव ….
बता दें कि कांग्रेस के उदयपुर नव संकल्प शिविर के बाद पार्टी में कई तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं। पार्टी अध्यक्षा सोनिया गांधी ने मंगलवार को कई नेताओं को नई जिम्मेदारी सौंपी है। ‘पॉलिटिकल अफेयर ग्रुप’ का गठन किया गया है। हालांकि इसकी कमान खुद सोनिया गांधी ही संभालेंगी। इसके अलावा ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के समन्वय के लिए ‘टास्क फोर्स 2024’ और ‘सेंट्रल प्लानिंग ग्रुप’ बनाया गया है।
कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी अपने वरिष्ठ सहयोगियों के साथ महात्मा गांधी की जयंती दो अक्टूबर को कश्मीर से कन्याकुमारी तक ‘भारत जोड़ो यात्रा’ शुरु करेंगे। अभी यह तय किया जा रहा है कि इस यात्रा में प्रतिदिन राहुल गांधी कितने किलोमीटर पैदल चलेंगे। यात्रा किन राज्यों से होकर गुजरेगी। कहां पर कौन सा नेता यात्रा का स्वागत करेगा, क्या बीच में कहीं पर कोई जनसभा रखी जाएगी या राहुल गांधी कहां पर ब्रेक लेंगे, इन सबकी रूपरेखा तैयार की जा रही है। संभव है कि इस यात्रा को पूरा करने में कांग्रेस पार्टी को आधा वर्ष लग जाए।
अनुच्छेद 370 की समाप्ति पर घिर गई थी कांग्रेस ….
कांग्रेस पार्टी की राजनीति को बारीकी से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक रशीद किदवई कहते हैं, कांग्रेस पार्टी का अपना एक इतिहास रहा है। यह पार्टी आजादी से पहले की है। इस पार्टी से जुड़े लोगों ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपना अहम योगदान दिया है। मौजूदा दौर में पार्टी अपनी कमियों के चलते सत्ता की दौड़ से बाहर हो गई है। 2014 में जब मोदी ने देश की कमान संभाली तो उसके बाद अधिकांश मुद्दे राष्ट्रवाद के चारों तरफ घूमते रहे। जब 2019 में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति हुई तो कांग्रेस पार्टी के पास कोई जवाब नहीं था।
पार्टी के कई नेता अलग अलग बयान दे रहे थे। कांग्रेस के कई नेताओं ने इस मामले में भाजपा का समर्थन किया था। इससे भाजपा की राष्ट्रवाद पर मजबूत पकड़ को समझा जा सकता है। सीएए का आंदोलन रहा हो या एनआरसी का मुद्दा, यहां पर भी भाजपा ने राष्ट्रवाद की आड़ लेकर खुद का बचाव कर लिया। कांग्रेस पार्टी को भाजपाई राष्ट्रवाद की सही समझ, 2019 के चुनाव में समझ आई। अब पार्टी उन्हीं गलतियों को नहीं दोहराना चाहती। यूपी के चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी मंदिर मस्जिद मुद्दे से खुद को अलग रखती आई है, लेकिन भाजपा की भगवा लहर के सामने कांग्रेसी नेताओं को भी मंदिरों में जाना पड़ा। रशीद किदवई ने बताया, कांग्रेस ने दरअसल अपने इतिहास को ही भुला दिया।
कांग्रेस के शासन में तीन बड़ी लड़ाई हुई थी
भाजपा की सत्ता के दौरान तो कारगिल युद्ध हुआ था, जबकि कांग्रेस के शासन में तीन बड़ी लड़ाई हुई थी। 1971 के युद्ध को कौन भूल सकता है। पाकिस्तान के 93 हजार सैनिक बंदी बना लिए गए थे। कांग्रेस इसे भुना नहीं सकी। देश के युवाओं को ये सब बातें निरर्थक लगने लगी। उन्हें मोदी का राष्ट्रवाद ‘घुस कर मारा’ नजर आने लगा। हर जगह पर भाजपाई राष्ट्रवाद की बल्ले बल्ले होने लगी। अब पार्टी को लगा कि उससे बड़ी चूक हो गई है।
यही वजह है कि अब पार्टी ने अपने नाम को पूरा बोलने का प्रयास किया है। पार्टी में सभी नेताओं से कहा गया है कि वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, शब्द का इस्तेमाल करें। राहुल गांधी की यात्रा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, इन प्रयासों से पार्टी को उम्मीद है कि उसे उसका खोया हुआ जनाधार वापस मिल सकता है। कांग्रेस पार्टी, लोगों को 2024 से पहले यह महसूस कराना चाहती है कि उसका तो सारा इतिहास ही राष्ट्रवाद से भरा पड़ा है। उसके तो नाम में भी राष्ट्रीयता झलकती है। अब ये नाम का हेरफेर कितना कारगर होगा, यह तो 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे ही बता पाएंगे।
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