पखांजुर (कांकेर), 24 फरवरी (वेदांत समाचार)। जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए और भाजपा-कांग्रेस की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के खिलाफ छत्तीसगढ़ किसान सभा आदिवासियों के संघर्षों के साथ है। देशव्यापी किसान आंदोलन ने दिखा दिया है कि इस देश के किसान और आदिवासी इन किसान-मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ लड़ सकते हैं और जीत भी सकते हैं और जनविरोधी सरकारों को घुटने टेकने के लिए मजबूर भी कर सकते हैं।
उक्त बातें छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने पखांजुर में एक आदिवासी प्रदर्शन को संबोधित करते हुए कही। सर्व आदिवासी समाज द्वारा आयोजित यह विरोध प्रदर्शन बेचाघाट में प्रस्तावित पुल और सैनिक छावनी निर्माण के विरोध के साथ-साथ भाजपा-कांग्रेस की जनविरोधी, आदिवासीविरोधी नीतियों के खिलाफ भी आयोजित किया गया था। रैली में परलकोट किसान कल्याण संघ के नेता पवित्र घोष भी शामिल थे, जिन्होंने इस क्षेत्र में बसे बंगाली समुदाय की ओर से आदिवासियों की मांगों का समर्थन किया।
आदिवासियों की मांगों के प्रति अपना समर्थन और एकजुटता व्यक्त करते हुए किसान सभा नेता ने प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा की लड़ाई को सबसे बड़ा राजनैतिक संघर्ष बताते हुए कहा कि पूरे देश की जनता के साथ ही छत्तीसगढ़ की जनता भी देश में संविधान, लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों को बचाने की लड़ाई लड़ रही है। पेसा और वनाधिकार कानूनों को लागू करने की उसकी मांग इसी लड़ाई का हिस्सा है और आम जनता को उनके कर्तव्यों की याद दिलाने के बजाय इन सरकारों को पहले अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों को पूरा करना चाहिए।
पराते ने कहा कि भाजपा-कांग्रेस की कॉर्पोरेटपरस्त विकास की अवधारणा के कारण पूरे छत्तीसगढ़ के आदिवासी विस्थापन की चपेट में है और उनकी संस्कृति और अस्तित्व खतरे में है। अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए जब वे आवाज उठा रहे हैं, तो ये सरकारें उनका निर्मम दमन कर रही है और उन पर गोलियां चला रही है। उन्होंने कहा कि हम मर जायेंगे, लेकिन अपनी जमीन को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। इन सरकारों को संविधान द्वारा आदिवासियों को दिए गए अधिकारों और उनके मानवाधिकारों को मान्यता देनी ही होगी।
पिछले दस महीनों से सिलगेर में चल रहे आदिवासी आंदोलन का जिक्र करते हुए किसान सभा नेता ने भाजपा राज में हुए आदिवासी जन संहारों के खिलाफ आई जांच रिपोर्टों पर कोई कार्यवाही न करने पर कांग्रेस सरकार की तीखी आलोचना की। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के लिए न्याय की लड़ाई एक अंतहीन लड़ाई बन गई है और आदिवासी समाज इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि अपनी एकता और संगठन को मजबूत करके ही न्याय की इस लड़ाई को जीता जा सकता है।
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