सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC IPO) अपना आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (IPO) लाने जा रही है. एलआईसी आने वाले समय में अपने कारोबार को नॉन-पार्टिसिपेटिंग पॉलिसी की दिशा में मोड़कर निजी बीमा कंपनियों को तगड़ी चुनौती दे सकती है. स्विस ब्रोकरेज फर्म क्रेडिट सुइस (Credit Suisse) ने आईपीओ की मंजूरी के लिए बाजार नियामक सेबी के पास दायर आवेदन ब्योरे का विश्लेषण करने के बाद तैयार एक रिपोर्ट में यह संभावना जताई गई है. रिपोर्ट कहती है कि एलआईसी की कारोबारी प्रमुखता में बदलाव का सबसे ज्यादा असर एसबीआई लाइफ (SBI Life), आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल (ICICI Prudential), एचडीएफसी लाइफ (HDFC Life) और मैक्स लाइफ (Max Life) जैसी जीवन बीमा कंपनियों को उठाना पड़ेगा.
रिपोर्ट के मुताबिक, LIC पहले ही अपने मार्जिन को 7 फीसदी बेहतर करते हुए 9.9 फीसदी पर पहुंचा चुकी है. सरकार ने एलआईसी के सरप्लस और प्रॉफिट डिस्ट्रीब्यूशन नियमों में बदलाव कर इसके मार्जिन में बढ़ोतरी का रास्ता आसान बनाया है. इसकी वजह से एलआईसी अपने कारोबार में भागीदार पॉलिसी के साथ नॉन-पार्टिसिपेटिंग पॉलिसी को भी 10 फीसदी जगह दे सकेगी जो फिलहाल महज 4 फीसदी है. इससे एलआईसी अपने मार्जिन को 20 फीसदी तक भी लेकर जा सकती है.
नए सरप्लस डिस्ट्रीब्यूशन पर ट्रांसफर हो जाएगा LIC का बीमा कारोबार
क्रेडिट सुइस का यह अनुमान इस संकल्पना पर आधारित है कि एलआईसी का बीमा कारोबार पूरी तरह नए सरप्लस डिस्ट्रीब्यूशन की तरफ स्थानांतरित हो जाएगा. वर्तमान में नॉन-पार्टिसिपेटिंग पॉलिसी 100 फीसदी और पार्टिसिपेटिंग पॉलिसी 10 फीसदी है.
पार्टिसिपेटिंग बीमा पॉलिसी के तहत पॉलिसीधारकों को बोनस या लाभांश वितरण के रूप में गारंटीड एवं बिना गारंटी वाले दोनों लाभ दिए जाते हैं. वहीं नॉन-पार्टिसिपेटिंग पॉलिसी में पॉलिसीधारक को अमूमन गारंटीड फायदे मिलते हैं लेकिन उन्हें लाभ या लाभांश नहीं दिया जाता है.
फिलहाल एलआईसी का अपने नए कारोबार प्रीमियम का सिर्फ 4 फीसदी ही नॉन-पार्टिसिपेटिंग पॉलिसी से आता है. इसके उलट निजी क्षेत्र की शीर्ष बीमा कंपनियों का यह अनुपात 20 से 45 फीसदी तक है.
रिपोर्ट कहती है कि एलआईसी का नॉन-पार्टिसिपेटिंग पॉलिसी का मार्जिन अपने ही पार्टिसिपेटिंग पॉलिसी कारोबार से अधिक है और निजी कंपनियां भी इस मामले में उससे पीछे हैं.
इंडिविजुअल कारोबार में LIC की हिस्सेदारी 43 फीसदी
व्यक्तिगत कारोबार में एलआईसी की बाजार हिस्सेदारी 43 फीसदी है. इसकी फाइलिंग इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे डिम्युचुअलाइजेशन के बाद इसकी लाभप्रदता बेकाबू हो गई है, जिसमें इसका एम्बेडेड मूल्य (EV) 5x बढ़कर 5.4 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जो नॉन-पार्टिसिपेटिंग वाले फंडों से सरप्लस में अपने शेयरधारक के हित को 14.6 लाख करोड़ रुपये तक ले गया है, जो कि इसके एयूएम का 37 फीसदी है.
देश में उदारीकरण की नीतियों की शुरुआत के 21 साल बाद भी एलआईसी का नई बीमा पॉलिसी कारोबार में बाजार हिस्सेदारी 66 फीसदी है. इसकी बड़ी हैसियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एलआईसी के बाद दूसरे स्थान पर मौजूद कंपनी से उसकी प्रबंधन के तहत परिसंपत्तियां 16 गुना अधिक है.
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